जन्मदिन विशेषः पंडित दीन दयाल उपाध्याय एक ‘अजातशत्रु’ नेता

नई दिल्लीः आज यानी 25 सितंबर, 2017 को भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती मना रही है. आज ही के दिन साल 1916 में उत्तर प्रदेश के मथुरा में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म हुआ था. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ‘एकात्म मानववाद’ के पुरोधा थे और आज यही भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा का आदर्श बना हुआ है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपने जीवन की भावी दिशा के लिए चुना था. 1937 में वह संघ से तब जुड़े, जब वह कानपुर में बी.ए. की पढ़ाई कर रहे थे. उस दौर में कानपुर कांग्रेस, कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट आंदोलनों का गढ़ माना जाता था. पंडित जी का औरेया से भी बेहद विशेष लगाव रहा.
दरअसल पंडित दीन दयाल ने औरैया से ही कांग्रेस सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका था. 1957 में जब संपत्ति कर अधिनियम बना तो पं. दीन दयाल उपाध्याय जनसंघ की ओर से भूमि भवन कर के विरोध में चलाए जा रहे आंदोलन की शुरुआत करने औरैया ही आए थे. पंडित जी द्वारा लिखी किताबों और नाटकों में वैचारिकी का तत्व हमें सामाजिक जीवन में इसे आत्मसात करने की प्रेरणा देता है. 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद होने के बाद जब भारत का संविधान लिखा जा रहा था, तब कांग्रेस, समाजवादी और वाम नेताओं ने संविधान सभा का बहिष्कार किया, लेकिन उन्हीं दिनों उपाध्याय जी ने संविधान पर जो लिखा, उससे स्पष्ट होता है कि वे बहिष्कार के पक्ष में नहीं थे, बल्कि वे समझते थे कि यह संविधान भारत की भावी पीढ़ियों के लिए ऐसा दस्तावेज बन रहा है, जिससे देश संचालित होगा और उसे नवनिर्माण में नई दिशा मिलेगी. पंडित दीन दयाल उपाध्याय संतुलित विचारों वाले व्यक्ति थे.
1953 में जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमय मृत्यु के बाद संगठन का पूरा दायित्व पंडित दीन दयाल उपाध्याय के कंधों पर आ गया था. दीन दयाल के गुण-कौशल से प्रभावित होकर ही 1953 में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था, ‘यदि मेरे पास और दो दीन दयाल हों तो मै भारत का राजनीतिक रूप बदल दूंगा.’ पंडित दीन दयाल उपाध्याय भारत के उन नेताओं में से एक हैं, जिनके बारे में बहुत कम पढ़ा-लिखा गया.
पहली बार 1968 में बौद्धिकों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर देखना शुरू किया था. जनसंघ के अध्यक्ष बनने और उनकी मृत्यु तक का समय इतना कम है कि उनके विचारों की छाप भारतीय राजनीति में व्यापक रूप से नहीं पड़ सकती. यही वजह है कि आज की युवा पीढ़ी पंडित जी को विस्तृत रूप से जानने में असमर्थ है. कम ही लोग जानते हैं कि उस दौर में देश में गैर-कांग्रेसवाद की जो नींव पड़ी, उसके दो ही निर्माता हैं. पहले डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और दूसरे पंडित दीन दयाल उपाध्याय.
अजातशत्रु पंडित जी की मौत भी आज एक रहस्य बनी हुई है. दरअसल यह कम ही लोग जानते हैं कि 1955 में पंडित जी ने अपने एक लेख में खोजी वर्णन किया था कि एक विशेष विचारधारा के लोग किस तरह से सुनियोजित हत्याएं करवाते हैं. करीब-करीब उनकी हत्या भी उसी तर्ज पर हुई, जिसका जिक्र उन्होंने अपने लेख में किया था.
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