राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ पर किसका हक? शुक्रवार को हो सकता है फैसला

नागपुर: कल नागपुर के चैरिटी कमिश्नर के कार्यालय में डिप्टी रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटीज एक दिलचस्प फैसला ले सकते हैं, वो ये कि ‘राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ’ पर आखिर किसका हक है.
ये केस अपने आप में दिलचस्प है कि जब राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ यानी आरएसएस अपने 92 साल पूरे कर चुका है, एक पूर्व पार्षद ने दावा किया है कि अभी तक राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ रजिस्टर्ड संस्था ही नहीं है तो ये नाम उनके संगठन को दे दिया जाए. दिलचस्प बात ये है कि ये मांग उसी शहर में हुई है, जिस शहर में कभी 1925 में डा. हेडगेवार ने आरएसएस की नींव रखी थी और उसी शहर में संघ का मुख्यालय भी है.
ये दिलचस्प मांग करने वाले शख्स का नाम है जनार्दन मून, जो नागपुर में पार्षद रह चुका है. उसने तो ये नाम अपने पक्ष में रजिस्टर्ड होने का इंतजार भी नहीं किया और उसी नाम से अपने संगठन में नियुक्तियां भी करनी शुरू कर दीं.
अब तक वो 13 पदाधिकारियों के नाम का ऐलान भी कर चुका है, जिनमें रवीन्द्र डोंगरे, किरण पाली, अनिल सहारे आदि शामिल हैं. इसकी सुनवाई चैरिटी कमिश्नर के ऑफिस में 14 सितम्बर को होनी थी, लेकिन जिस अधिकारी को सुनवाई करनी थी, उसको किसी विभागीय मीटिंग में पुणे जाना पड़ गया.
अब तक मून के इस दावे के खिलाफ दो लोगों ने आपत्तियां जताई हैं. एक हैं राजेन्द्र गुंडलवार, जिनका दावा है कि दिल्ली में इस नाम से संगठन पहले ही रजिस्टर्ड है. जबकि दूसरी आपत्ति दो लोगों ने मिलकर दर्ज करवाई है, दीपक बराड और प्रशांत बोपार्डीकर, इनके वकील का नाम एसडी अभ्यंकर है. इनकी आपत्ति रजिस्ट्रेशन ऑफ सोसायटी एक्ट 1860 के सेक्शन तीन के बारे में है, जिसके तहत किसी भी संस्था का नाम ‘नेशनल’ और ‘राष्ट्रीय’ से शुरू करने के खिलाफ है.
इधर मामला गरमाता भी जा रहा है, जनार्दन मून ने जहां राजेन्द्र के खिलाफ पुलिस में ये शिकायत दर्ज करवा दी है कि ये व्यक्ति गौरी लंकेश, नरेन्द्र डाभोलकर और कलबुर्गी की हत्याओं से जुड़ा हो सकता है तो राजेन्द्र ने चेतावनी दी है कि वो मून के खिलाफ मानहानि का केस दाखिल कर सकता है.
सुनवाई डिप्टी रजिस्ट्रार करुणा पत्रे को करनी है और उन्होंने मून से अपने संगठन के बारे में तमाम तरह की जानकारिया मांगी है और बाकी दोनों पक्षों से भी कुछ सवालों के जवाब मांगे हैं. 22 सितम्बर यानी कल करुणा पत्रे इस दिशा में कोई फैसला ले सकते हैं.
हालांकि उनके लिए ये आसान नहीं होगा, क्योंकि एक तो संघ समर्थित सरकार इस देश को चला रही है, सो वो फूंक फूंक कर कदम रखेंगे, और दूसरे संघ अब तक अगर एक सामाजिक संस्था के रूप में काम कर रहा था तो कहीं ना कहीं तो रजिस्टर्ड होगा. संघ की तरफ से क्लेरीफिकेशन मांगा जा सकता है. इसलिए 22 सितम्बर का दिन इस विवाद से जुड़े लोगों के लिए ही नहीं आम लोगों के लिए भी काफी दिलचस्प हो सकता है.
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