नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्र सरकार के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें सरकार ने रोहिंग्या वापस भेजने का फ़ैसला किया है.
आयोग ने अपनी याचिका में कहा है रोहिंग्या वर्मा में प्रताड़ित हो रहे है और उनकी हत्या की जा रही है. ऐसे में रोहिंग्या बच्चों को वापस भेज गया तो इनके अधिकारों का हनन होगा क्योंकि जीने का अधिकार केवल भारतीयों के पास ही नही विदेश से आये नागरिकों के लिए भी है.
आयोग ने अपनी याचिका में कहा है कि केंद्र सरकार का फैसला मानवता के खिलाफ है. पश्चिम बंगाल के अलग अलग शेल्टर होम में रह रहे रोहिंग्या माँ और बच्चों को वापस भेजना उन्हें मौत के मुंह में भेजने के समान है.
आयोग ने अपनी याचिका में कहा है कि इसी हफ़्ते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि उनको केंद्र सरकार की तरफ से सूचना आई है कि वो पश्चिम बंगाल में राह रहे रोहिंग्या की लिस्ट तैयार करे ताकि उन्हें वापस भेजा जा सके.
बता दें कि 16 सितंबर को रोहिंग्या मुस्लिम को वापस बर्मा भेजने के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि रोहिंग्या भारत में नहीं रह सकते. केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा कि सरकार को ये खुफिया जानकारी मिली है कि कुछ रोहिंग्या आतंकी संगठनों के साथ मिले हुए हैं.
केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि रोहिंग्या मुस्लिमों को ISIS इस्तेमाल कर सकता है इतना ही नही रोहिंग्या मिलीटेंट ग्रुप दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद और मेवात में सक्रिय। केंद्र सरकार ने कहा कि राष्ट्रहित में उन्हें वापस भेजना जरूरी.
केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा कि अवैध रूप से आए लोगों को भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि ये मौलिक अधिकारों के तहत नहीं आता.
केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में ये भी कहा कि ये संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत नहीं आता. देश में करीब 40 हजार रोहिंग्या मुस्लिम अवैध तौर पर रह रहे हैं. भारत सरकार संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों के अनुरूप कारवाई करने के लिए स्वतंत्र है.