नई दिल्ली. म्यांमार से घुसपैठ कर देश मे अड़े-पड़े रोहिंग्या मुसलमानों पर मोदी सरकार की सख्त कार्रवाई का हलफनामा भी हलक में ही अटक गया है. सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच कर सरकार ने कदम खींच लिए. अधूरा हलफनामा पक्षकारों तक पहुंचाकर सरकार को अहसास हुआ कि काफी कसर रह गई है. कई कानूनी दांव पेंच तो किताबों से निकल के हलफनामे तक पहुंचे ही नहीं.
एक तो शाम ढले गृह मंत्रालय का हलकारा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. उसने सोचा रजिस्ट्री से लौट कर पक्षकारों को हलफनामे की प्रति देने के बजाय रास्ते से ही काम निपटाता चलूं. बस चूक यहीं हुई. पक्षकारों ने मीडिया को लीक कर दिया और चीख-चीख कर हलफनामा तो मानो चौराहे पर खड़ा हो गया.
इसी बीच सरकार के आला कानूनी अधिकारियों को अपने ही हलफनामे की खामियां मुंह चिढ़ाने लगीं. कल को अदालत में किरकिरी हो इससे बचने के लिए चुपचाप हलफनामा कोर्ट की सीढ़ियां चढ़ने से पहले ही उल्टे पैरों लौट आया. लेकिन तब तक तो ख़बर आम हो चुकी थी. सिर्फ देर ही नहीं रात भी काफी हो चुकी थी. अंधेरा आसमान पर ही नहीं गृह मंत्रालय की कानूनी टीम की आंखों के आगे भी गहरा गया.
अब डिप्टी गवर्नमेंट एडवोकेट ने फटाफट सफाई की चिट्ठी पक्षकारों को लिखी और बताया कि जो हलफनामा भेजा गया वो अधूरा है. हलफनामे के फाइनल ड्राफ्ट तो अभी फाइनल हो ही रहा है. यानी पसोपेश में पड़ी सरकार बंगलादेशी घुसपैठियों की तरह रोहिंग्या मुसलमानों पर भी सीधा हलफनामा न दे सकी. इसमें भी दो कदम आगे और चार कदम पीछे.
बता दें कि रोहिंग्या मुसलमानों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताने के चंद घंटों के बाद केन्द्र सरकार ने कहा है कि इस मसले पर उसकी ओर से अंतिम निर्णय नही लिया गया है.
सरकारी वकील की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि हलफनामा गलती से याचिकाकर्ता के वकील को भेज दिया गया. पत्र में कहा गया है कि हलफनामे को अंतिम रूप देने से पहले ही गलती से इसकी प्रति याचिकाकर्ता को दे दी गयी. साथ ही इस पत्र में यह भी दावा किया गया है कि हलफनामा सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में दाखिल नहीं की गई है. हालांकि उस हलफनामे में समंधित अधिकारी का हस्ताक्षर भी है.