नई दिल्ली : लोक प्रहरी एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ये तय करेगा कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी को अपनी और अपने परिवार की आय के स्रोत का खुलासा करना होगा या नहीं.
लोक प्रहरी एनजीओ ने याचिका दाखिल कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधारों को लेकर आदेश दे कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और अपने परिवार की आय के स्त्रोत का खुलासा भी करे.
वहीं मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सांसद और विधायकों की संपत्ति में 500 गुना बढ़ोतरी को लेकर सुनवाई करते हुए सवाल उठाया कि अगर सांसद और विधायक ये बता भी दें कि उनकी आय में इतनी तेजी से बढ़ोतरी बिज़नेस कर से हुई तो यहां सवाल उठता है कि सांसद और विधायक होते हुए आप कोई भी बिजनेस कैसे कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि आज से 30-40 साल पहले एन एन वोरा की रिपोर्ट आई थी, आप ने उस पर क्या काम किया. समस्या आज भी वैसी की वैसी ही है. आपने रिपार्ट को लेकर कुछ नहीं किया.
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उस सील बंद लिफाफे को खोला जिसमें सात लोकसभा सांसदों और 98 विधायकों की ओर से चुनावी हलफनामे में संपत्तियों के बारे में दी गई जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में दी गई जानकारी से अलग है.
सरकार ने बताया है कि इन सभी के खिलाफ जांच चल रही है. जानकारी देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नामों को सार्वजनिक नहीं किया बल्कि कोर्ट स्टॉफ को कहा कि वापस इसे सील बंद कर दे.
इससे पहले सीबीडीट की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि इन सांसदों और विधायकों के चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न के वेरिफिकेशन का जो परिणाम होगा उसे निर्वाचन आयोग के साथ साझा किया जाएगा.
सीबीडीटी ने कहा कि सूचना के अधिकार के तहत इसे साझा नहीं किया जा सकता. सीबीडीटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 26 लोकसभा सांसदों, 215 विधायकों और दो राज्यसभा सांसदों के वेरिफिकेशन रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है.
हलफनामे में कहा गया कि इन नेताओं के चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में अपनी संपत्तियों के बारे में दी जानकारी का वेरिफिकेशन निर्वाचन आयोग और सीबीडीटी द्वारा तय किए गए मानकों के तहत हो रहा है.
हलफनामे में कहा गया है कि चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में संपत्तियों के बारे में दी गई जानकारी के वेरिफिकेशन रिपोर्ट केबाद अगर और जांच की जरूरत होगी तो उसे असेसिंग ऑफिसर के पास भेजा जाएगा.
सीबीडीटी ने अपना जवाब लोक प्रहरी नामक संगठन की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर दिया है. याचिकाकर्ता संगठन ने आरोप लगाया था कि कई सांसदों और विधायकों की संपत्ति में भारी वृद्धि हुई है. संगठन के मुताबिक, 26 लोकसभा सांसद, 257 विधायक और 11 राज्यसभा सांसदों के पूर्व और वर्तमान चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्तियों के बारे में दी गई जानकारी में बहुत अंतर है. इन सभी की संपत्तियों में खासी वृद्धि दर्ज की गई है.
सीबीडीटी ने अपने हलफनामे में हालांकि यह भी कहा कि हर उम्मीदवारों की ओर से चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में दी गई संपत्तियों की जानकारी को वेरिफाई करना संभव नहीं है. जहां जरूरत हो तभी जांच की जाती है.
सीबीटीडी ने यह भी कहा कि चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में संपत्तियों के बारे में दी जाने वाली जानकारी का स्वरूप अलग-अलग होता है. जहां चुनावी हलफनामे में बाजार भाव के हिसाब से उनकी संपत्ति और देनदारी की जानकारी होती है जबकि इनकम टैक्स रिटर्न में आय से संबंधित जानकारी होती है. उसमें संपत्तियों और देनदारी के बारे में जानकारी नहीं भी हो सकती है.
अप्रैल 2017 में अपने हलफनामे में चुनाव सुधारों को लेकर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी द्वारा अपनी, अपने जीवन साथी और आश्रितों की आय के स्त्रोत की जानकारी जरूरी करने को केंद्र तैयार है. केंद्र ने कहा कि काफी विचार करने के बाद इस मुद्दे पर नियमों में बदलाव का फैसला लिया गया है.
जल्द ही इसके लिए नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा. इससे पहले चुनाव आयोग भी इस मामले में अपनी सहमति जता चुका है. चुनाव आयोग ने कहा था कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए नियमों में ये बदलाव जरूरी है.
अभी तक के नियमों के मुताबिक प्रत्याशी को नामांकन के वक्त अपनी, जीवनसाथी और तीन आश्रितों की चल-अचल संपत्ति व देनदारी की जानकारी देनी होती है, लेकिन इसमें आय के स्त्रोत बताने का नियम नहीं है.
इसी को लेकर NGO लोकप्रहरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधारों को लेकर आदेश दे कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और परिवार की आय के स्त्रोत का खुलासा भी करे. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.