सुसाइड या डिप्रेशन पर गूगल करने वालों को खोज लेते हैं ब्लू व्हेल गेम वाले

ब्लू व्हेल गेम अब खूनी खेल बन चुका है. इस खेल के आतंक से सभी परेशान हैं. लोगों को समझ नहीं आ रहा कि आखिर इस मौत के खेल का रहस्य कब सुलझेगा. मगर इसे लेकर जो अब नई बात सामने आई है वो काफी हैरान करने वाला है. कारण कि इस खेल का संबंध वैसे लोगों से है, जो अक्सर डिप्रेशन और चिंता में खोये रहते हैं.

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सुसाइड या डिप्रेशन पर गूगल करने वालों को खोज लेते हैं ब्लू व्हेल गेम वाले

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  • September 11, 2017 4:40 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली. ब्लू व्हेल गेम अब खूनी खेल बन चुका है. इस खेल के आतंक से सभी परेशान हैं. लोगों को समझ नहीं आ रहा कि आखिर इस मौत के खेल का रहस्य कब सुलझेगा. मगर इसे लेकर जो अब नई बात सामने आई है वो काफी हैरान करने वाला है. कारण कि इस खेल का संबंध वैसे लोगों से है, जो अक्सर डिप्रेशन और चिंता में खोये रहते हैं. 
 
ऐसा कहा जाता है कि जो लोग दिमागी तौर पर कमजोर होते हैं, या फिर डिप्रेशन में होते हैं वो हर उस चीज की ओर आकर्षित होते हैं जो उन्हें बेहतर होने का अहसास कराती है या फिर उन्हें खुद को साबित करने का मौका देती है. और सच कहूं तो ये ब्लू व्हेल गेम का क्यूरेटर व्यक्ति को यही मौका देता है और लोग इस गेम के झांसे में आ जाते हैं.
 
दरअसल, ब्लू व्हेल गेम को बनाने वाले ने इंसान के कमजोर नस को पकड़ा है. ये गेम कुछ इस कदर खतरनाक है कि इसके जाल में एक बार जो फंस जाता है, उसका निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है. इस गेम के संपर्क में आने के बाद खेलने वाले के पास दो ही विकल्प बचते हैं, पहला या तो वो क्यूरेटर के मुताबिक आत्म हत्या कर ले या फिर वो अपने मोबाइल के सारे डेटा को खोने के लिए तैयार रहे. 
 
 
ब्लू व्हेल गेम का एल्गोरिदम यानी सिस्टम कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इस गेम का क्यूरेटर वैसे लोगों को टारगेट करता है, जिसकी इंटरनेट पर यानी कि गूगल पर ब्राउजिंग हिस्ट्री संदेहास्पद होती है. मतबल कि अगर कोई शख्स गूगल पर सुसाइड, मौत, डर और डिप्रेशन जैसे शब्द ब्राउज करता है तो उस शख्स की भनक इस गेम के क्यूरेटर को लग जाती है. 
 
इसी के आधार पर गेम का क्यूरेटर वैसे शख्स को फॉलो करता है, जो डिप्रेशन यानी कि अवसाद में नजर आता है या फिर वो आत्म हत्या के रास्ते तलाशता है. ब्लू व्हेल गेम का टारगेट वैसे ही लोग होते हैं जो अपने जीवन से थके होते हैं, जिनके मन में मरने का ख्याल आता है, जिन्हें लगता है कि उनके जीने का अब कोई मतलब नहीं. 
 
कुछ लोग अभी भी ये मानते हैं कि इस गेम कोई एप है. मगर ऐसा कुछ भी नहीं है. यह महज एक लिंक है. इस गेम के एल्गोरिथ्म को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि व्यक्ति के ब्राउजिंग हिस्ट्री के आधार पर उसके पास इस खेल के लिंक भेजे जाते हैं. अगर गूगल पर किसी शख्स के ब्राउजिंग हिस्ट्री से गेम के क्यूरेट को लगा कि शख्स अपनी जिंदगी से परेशान है या फिर वो कभी मरने के बारे में सोचता भी है, तो ऐसे लोगों से क्यूरेटर अप्रोच करता है और उसके बाद कुछ शर्त भी भेजे जाते हैं. अगर शख्स उस शर्त को पूरा कर लेता है तो उसे चैट रूम या पॉपअप विज्ञापनों के माध्यम से इस गेम का लिंक भेजा जाता है.
 
 
अब सवाल आता है कि ब्लू व्हेल गेम तो बच्चों को भी टारगेट करता है. तो इसका जवाब ये है कि बच्चे गेम का सॉफ्ट टारगेट होते हैं. यानी कि बच्चों का मन अचेतन होता है. उनके भीतर ज्यादा सोचने-समझने की शक्ति नहीं होती है. उन्हें नहीं पता होता है कि क्या सही है और क्या गलत. बच्चे गेम के रोमांच में इस खूनी खेल के चक्कर में फंस जाते हैं और अंतत: क्यूरेटर की भी इच्छा यही होती है कि उनके इस खूनी खेल में जितने ज्यादा से ज्यादा लोग फंसे. 
 
जम्मू के तकनीक विशेषज्ञ मृदुल थपलू के मुताबिक, गेम की शुरुआत काफी आसान चुनौतियों से होती है. यही वजह है कि लोगों को लगता है कि उनके लिए ये रोमांच जैसा है. खेल के शुरुआत में क्यूरेटर संबंधित व्यक्ति को हॉरर फिल्मे देखने को कहता है और हर टास्क की तस्दीक भी करता है. इसके बाद से धीरे-धीरे गेम को काफी रोमांचित तरीके से मुश्किल बनाया जाता है, ताकि व्यक्ति का खेल के प्रति रोमांच बना रहे. 
 
इस गेम के क्यूरेटर ने ऐसा शातिर दिमाग लगाया है कि कोई व्यक्ति इस गेम को बीच में छोड़ भी नहीं सकता. कारण कि यह गेम व्यक्ति के फोन से सभी डेटा हैक कर लेता है जिसमें उसके कॉन्टेक्ट्स, मैसेजेज ,फोटोज, वीडियोज, पासवर्डस, ब्राउज़िंग हिस्ट्री, उसके ईमेल खाते और कई पर्सनल फोटोज या वीडियोज भी शामिल होते हैं. मतलब कि व्यक्ति के मोबाइल पर किये गये अच्छे-बुरे सारे कर्मों का हिसाब गेम का क्यूरेटर रख लेता है. 
 
ब्लू व्हेल गेम मामले में शुक्रवार को सुनवाई करेगा SC
 
अब उसके बाद गेम का क्यूरेटर असली खेल शुरू करता है. मतलब कि अगर कोई व्यक्ति इस गेम को बीच में छोड़ने की कोशिश करता है तो गेम के क्यूरेटर के लिए व्यक्ति के सारे डेटा हथियार का काम करते हैं. इन सभी डेटा के आधार पर वो व्यक्ति को ब्लैकमेल करता है. गेम को जारी रखने पर मजबूर करता है. इतना ही नहीं, उसके परिवार, संबंधी और कॉन्टेक्ट्स के लोगों को कॉल करके परेशान किया जाता है और तो और धमकाया भी जाता है. 
 
इसलिए इस गेम से बचने का सबसे सटिक उपाय यही है कि खुश रहा जाए. गूगल पर सुसाइड और डिप्रेशन से संबंधित चीजें सर्च न किया जाए. क्योंकि जैसे ही आपके ऐसे व्यवहार और विचार की जानकारी ब्राउजिंग हिस्ट्री के जरिये गेम के क्यूरेटर को पता चलेगा, वैसे ही वो आपको अपना टारगेट बना लेगा. 
 

ब्लू व्हेल गेम मामले में शुक्रवार को सुनवाई करेगा SC

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