ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा: कपड़े सिलने वाली कल्पना सरोज कैसे बनीं कमानी ट्यूब्स की मालकिन

कल्पना सरोज की गिनती हिन्दुस्तान के उन सफल उद्ममिओं औऱ उद्मोगपतियों में होती है जिन्होंने अपनी मेहनत और ईमानदारी के बूते करोडों की मिल्कियत खडी की है.

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ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा: कपड़े सिलने वाली कल्पना सरोज कैसे बनीं कमानी ट्यूब्स की मालकिन

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  • September 11, 2017 8:54 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: खुदी को कर बुलंद इतना, कि हर तक़दीर से पहले खुदा बन्दे से ये पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है.’ कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी तकदीर अपने हाथों से लिखने का माद्दा रखते हैं. आज हम आपको ऐसी ही एक शख्सियत से मिलवाने जा रहे हैं जिन्होंने जीरो से शुरूआत की और आज हजारों करोड़ के टर्न ओवर वाली कंपनी कमानी ट्यूब्स की मालकिन हैं. हम बात कर रहे हैं कल्पना सरोज की. कल्पना सरोज की गिनती हिन्दुस्तान के उन सफल उद्ममिओं औऱ उद्मोगपतियों में होती है जिन्होंने अपनी मेहनत और ईमानदारी के बूते करोडों की मिल्कियत खडी की है. 
 
कल्पना सरोज की जिंदगी में आज सब कुछ है, बंगला, गाड़ी शोहरत, दौलत लेकिन ये कल्पना सरोज की जिंदगी का सिर्फ एक पहलू है. उनकी जिंदगी का दूसरा पहलू  उससे भी ज्यादा प्रेरणादायक है. वो लोग जो जिंदगी के संघर्ष से हारकर मायूस हो जाते हैं कल्पना सरोज उनके लिए एक मिसाल हैं.कल्पना सरोज की जिंदगी के जज्बे की खुद पीएम मोदी भी सराहना कर चुके हैं. 
 
कल्पना सरोज की जिंदगी के वर्तमान को तो सब जानते हैं लेकिन उनकी जिंदगी के अतीत के पन्नों को पलटा जाए तो उसमें गरीबी, दलित होने का दंश, पति का अत्याचार, समाज के ताने और खून पसीना बहाकर रोजाना दो रुपये कमाने के वो अंश छिपे हैं जो हिन्दुस्तान के करोडों लोगों के लिए प्रेरणादायक है. 
 
इस तरह संघर्षों को पार कर मिसाल बनीं कल्पना सरोज
 
कल्पना सरोज का जन्म साल 1961 में महाराष्ट्र के अकोला में एक दलित परिवार में हुआ था. उनके पिता पुलिस हवलदार थे हिलाजा घर में आर्थिक तंगी रहती थी. ऐसे में कल्पना गोबर के उपले बनाकर बेचती और घर का खर्च चलाने में हाथ बंटाती थीं. पांचवी क्लास में पढ़ने वाली महज 12 साल की कल्पना की शादी उनसे दस साल बड़े शख्स से कर दी गई
शादी के बाद जब वो अपने ससुराल पहुंचीं तो उनके पति छोटी-छोटी बातों पर उनके साथ मारपीट करने लगे. कल्पना चुपचाप ये सारे अत्याचार झेलती रहीं. इस बीच एक बार उनके पिता उन्हें मिलने ससुराल पहुंचे तो अपनी बेटी की हालत उनसे देखी नहीं गई और वो उसे लेकर अपने घर लौट आए.  
 
जब कल्पना ने लिया जिंदगी खत्म करने का फैसला
 
ससुराल में इतना कुछ झेल चुकीं कल्पना को समाज से दो प्यार भरे बोल की बजाय ताने सुनने को मिले. अपनी हालत के लिए उन्हें ही जिम्मेदार बताया जाने लगा. एक वक्त ऐसा भी आया जब कल्पना सरोज ने आत्महत्या करने का फैसला किया लेकिन शायद किस्मत में उनके लिए कुछ और ही लिखा था, उन्हें बचा लिया गया और यहीं से शुरू हुआ कल्पना की कल्पनाओं का सफर
 
रोज के दो रूपये से कमाई से की जीवन की नई शुरूआत
 
16 साल की उम्र में कल्पना सरोज ने दोबारा जिंदगी जीने का हौंसला सहेजा और वो अपने पिता के साथ मुंबई अपने चाचा के पास आ गईं. मुंबई में उन्होंने जिंदगी की नई शुरुआत एक सिलाई मिल में बतौर हेल्पर शुरु की. शुरु में उन्हें रोजाना दो रुपये मेहनताना मिलता था. कुछ महीने बाद उन्होंने मिल में कपड़े सिलने शुरु किये जिसके बदले उन्हें 100 रुपये वेतन मिलने लगा. इसके बाद कल्पना सरोज ने सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर एक बुटीक और फर्नीचर का काम भी शुरु किया.
 
यहां से बदली कल्पना सरोज की जिंदगी
 
इसी बीच उन्होंने मुंबई में ढाई लाख रुपये में एक विवादित जमीन खरीदी. कोर्ट के चककर लगाकर उन्होंने उसका निपटारा किया और फिर उस जमीन को 50 लाख रुपये में बेचा. कल्पना के कदम यहीं नहीं रुके उन्होंने एक बिल्डर के साथ साझेदारी कर बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन की दुनिया में भी कदम रखा. धीरे-धीर मुंबई में उन्हें एक नई पहचान मिलने लगी. एक ऐसी महिला की पहचान जो मिट्टी को भी हाथ लगाए तो सोना हो जाए और इसी पहचान की बदौलत एक रोज कल्पना सरोज से कर्जे में डूबी कंपनी कमानी ट्यूब्स के उन कर्मचारियों ने मुलाकात की जो रोजी रोटी के लिए मोहताज थे.
 
कमानी ट्यूब्स की नई शुरुआत
 
कल्पना सरोज जी के सामने 17 साल से बंद पड़ी कंपनी में नई जान फूंकने का चैलेंज था. कंपनी पर 116 करोड का कर्ज था और कंपनी के 93 कर्मचारी भुखमरी से अपनी जान गंवा चुके थे. कल्पना सरोज के पास ना कंपनी चलाने का कोई तर्जुबा था ना कोई टेक्निकल नॉलेज लेकिन फिर भी उन्होंने ये प्रस्ताव कुबूल किया और बुलंद हौंसले के साथ कमानी ट्यूब्स के साथ नई पारी की शुरुआत की. 
 
कोर्ट ने कल्पना सरोज को वर्करों का बकाया देने के लिए तीन साल और बैकों की कर्ज अदायगी के लिए सात साल का समय दिया. लेकिन ये कल्पना जी की नेकनियति और ईमानदारी ही थी कि उन्होंने वर्करों का बकाया 3 महीने में जबकि बैंकों की कर्ज अदायगी एक साल में ही पूरी करके एक मिसाल कायम की. साल 2006 में कोर्ट के आदेश के बाद कल्पना सरोज को कमानी ट्यूब्स का मालिक बना दिया गया. कल्पना सरोज के बुलंद हौंसले, ईमानदारी और मेहनत का ही नतीजा है कि जो कंपनी कभी कर्जे में डूबी थी आज वो हजारों करोड की कंपनी है.
 
कल्पना सरोज को मिला पद्मश्री सम्मान
 
एक सफल उद्ममी होने के साथ-साथ कल्पना सरोज का समाज सेविका के तौर पर भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. साल 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कल्पना सरोज को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा साथ ही भारत सरकार ने उन्हें भारतीय महिला बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल किया. इतना ही नहीं कल्पना सरोज को भारत सरकार की ओर से एक बुद्धिष्ठ समाजसेविका और उद्मोगपति के तौर पर महाउपासिका की ख्याति भी दी गई.
 
एक और बात है जो शायद कम ही लोग जानते हैं और वो ये कि ये कल्पना सरोज ही हैं जिनकी जिद औऱ लगन के चलते दलितों के मसीहा बाबा साहेब अंबेडकर के लंदन स्थित घर को खरीदकर भारत सरकार ने अंतराष्ट्रीय स्मारक के तौर पर समर्पित किया. इसी समाज के कमजोर वर्ग से निकलकर सफलताओं की बुलंदियां छूने वाली कल्पना सरोज ने साबित कर दिया है कि अगर नीयत साफ हो, मेहनत करने का जज्बा हो,  इरादे मजबूत हों तो कामयाबी इंसान के कदम चूमती है. 
 

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