गुरुग्राम: हर दिन की तरह प्रद्युम्न की मां ज्योति ठाकुर ने बड़े प्यार से अपने बेटे को तैयार किया होगा, उसे स्कूल की ड्रेस पहनाई होगी. उसके बाल संवारे होंगे. बड़े लाड़ से उसे दूध का गिलास दिया होगा जिसे उसने पीने से मना कर दिया होगा लेकिन ज्योति ठाकुर ने पड़े प्यार से अपने बेटे को लालच देकर दूध पीने के लिए मनाया होगा. प्रद्युम्न के पिता अपने बेटे को स्कूल छोड़ने के लिए उठे होंगे. फिर अपनी मम्मी को बाय बोलकर प्रद्युम्न पिता के साथ स्कूल जाने के लिए निकला होगा. ये एक प्रद्युम्न नहीं ऐसे कई प्रद्युम्न की कहानी है जिनके माता-पिता हर रोज बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए जिंदगी की जंग लड़ते हैं.
हर माता-पिता के सपने, उनकी खुशियां बच्चों से जुड़ी होती है जिसे वो हर हाल में पूरा करना चाहते हैं. इसके लिए चाहे उन्हें खुद की जरूरतों को त्यागना ही क्यों ना पड़े, वो हंसते हंसते ऐसा करते हैं. मिडिल क्लास हो या अपर क्लास हर परिवार की ख्वाहिश होती है कि उसका बच्चा सरकारी की बजाय प्राइवेट स्कूल में पढ़े. उन्हें लगता है कि प्राइवेट स्कूल पैसे जरूर लेते हैं मगर उनके बच्चे को अच्छी शिक्षा और सुरक्षा देते हैं. लेकिन क्या वाकेई ऐसा है. क्या सचमुच प्राइवेट स्कूलों में आपके बच्चे सुरक्षित हैं? क्या सचमुच उनका ख्याल रखा जाता है?
बच्चे के नाम पर प्राइवेट स्कूल जितनी भी फीस मांगते हैं, माता-पिता सारी जरूरतों में कटौती कर बच्चों की खातिर स्कूल की हर डिमांड को पूरा करते हैं ऐसे में क्या स्कूल प्रशासन की बच्चे की देखभाल के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? जिस भरोसे से माता-पिता अपने बच्चे को स्कूल छोड़कर निश्चिंत हो जाते हैं कि मेरा बच्चा तो स्कूल में है ठीक ही होगा, क्या गुरुग्राम की घटना के बाद माता-पिता बेफिक्र हो पाएंगे? सवाल कई हैं लेकिन जवाब किसी के पास नहीं.
अब जरा सोचिए उस मां के बारे में जो अपने बेटे पर एक खरोंच तक बर्दाश्त नहीं कर पाती थी, उस मां पर क्या गुजरी होगी जब उसने अपने बेटे की गर्दन कटी हुई लाश देखी होगी. जरा सोचिए उस मंजर को कैसे कलेजा छलनी-छलनी हो गया होगा. क्या गुजरी होगी उस पिता पर जिसने अपने सात साल के बेटे के लिए ना जाने कितने ख्वाब देखे होंगे. बेटे को क्या बनाएंगे, उसे वो सब कुछ देंगे जो शायद उन्हें नहीं मिल सका होगा. सोचिए उस पिता के बारे में जिसके बेटे की डैड बॉडी उसके हाथों में दी गई होगी? आप और हम उस दर्द का अंदाजा तक नहीं लगा सकते उस माता पिता के दर्द का जिसने अपने सात साल के बच्चे के गर्दन कटी लाश देखी होगी.
इस दुख की घड़ी में इंडिया न्यूज़/इनखबर पीडित परिवार से मिलने पहुंचा और उनका दर्द बांटने की कोशिश की. प्रद्युम्न की मां ने बताया कि कैसे वो अपने जरूरी खर्चे भी दो-दो महीने तक रोक लिया करती थीं क्योंकि सीमित आमदनी के बीच उनके पति नहीं चाहते थे कि बच्चों की पढ़ाई में कोई दिक्कत आए. ज्योति ठाकुर ने कहा कि कई बार ऐसा होता था कि वो अपने पति से किसी चीज को लाने के लिए कहती थीं लेकिन पति ये कहते थे कि उन्हें बच्चों की फीस देनी है. आपको ये शायद अपने घर की कहानी लगे क्योंकि अमूमन ये हर घर की कहानी है. उम्मीद करते हैं कि इस मामले में मुजरिम को कड़ी से कड़ी सजा मिले जो दूसरे अपराधियों के लिए नजीर बन सके.