बारिश के कारण बहस को तीन बार रोकना पड़ा लेकिन तमाम संगठनों के समर्थक स्टुडेंट्स बारिश में भींगकर नारे लगाते वहीं डटे रहे. जेएनयू के इस प्रेसिडेंशियल डिबेट की लोग तमाम चुनावों में नजीर देते हैं कि लोकतांत्रिक तरीके से विरोधी कैसे आमने-सामने तर्क से टकराते हैं.
प्रेसिडेंशियल डिबेट में आइसा-एसएफआई-डीएसएफ की लेफ्ट यूनिटी कैंडिडेट गीता कुमारी, एआईएसएफ कैंडिडेट अपराजिता राजा, बाप्सा कैंडिडेट शबाना अली, एबीवीपी कैंडिडेट निधि त्रिपाठी, एनएसयूआई कैंडिडेट वृष्णिका सिंह यादव और निर्दलीय फारूख आलम ने हिस्सा लिया.
बहस में सारे वक्ताओं ने अपने-अपने छात्र संगठन के एजेंडे के मुताबिक देश-दुनिया और कैंपस के मसलों पर अपनी राय रखी और अपने अलावा अपने पैनल के सारे कैंडिडेट्स के लिए वोट मांगे. निर्दलीय फारूख आलम ने चुटीले तरीके से बाकी तमाम संगठनों पर हमला बोला इसलिए महफिल लूट गए.
जेएनयू छात्रसंघ पर इस समय आइसा और एसएफआई का कब्जा है जो क्रमशः सीपीआई-एमएल और सीपीएम की छात्र यूनिट हैं. इस समय आइसा के मोहित पांडे अध्यक्ष, एसएफआई की शत्रुपा चक्रवर्ती महासचिव, एसएफआई के अमल उपाध्यक्ष और आइसा के तबरेज़ संयुक्त सचिव हैं.
सेंट्रल पैनल के 4 पदों के लिए किस संगठन से कौन-कौन कैंडिडेट
लेफ्ट यूनिटी- एसएफआई, आइसा और डीएसएफ
अध्यक्ष- गीता कुमारी, आइसा
उपाध्यक्ष- सिमॉन ज़ोया खान, आइसा
महासचिव- डुग्गीराला श्रीकृष्णा, एसएफआई
संयुक्त सचिव- सुभांशु सिंह, डीएसएफ
एआईएसएफ
अध्यक्ष- अपराजिता राजा
संयुक्त सचिव- मेंहदी हसन
बाप्सा
अध्यक्ष- शबाना अली
उपाध्यक्ष- सुबोध कुंवर
महासचिव- करम विद्यानाथ
संयुक्त सचिव- विनोद कुमार
एबीवीपी
अध्यक्ष- निधि त्रिपाठी
उपाध्यक्ष- दुर्गेश
महासचिव- निकुंज मकवाना
संयुक्त सचिव- पंकज केसरी
एनएसयूआई
अध्यक्ष- वृष्णिका सिंह यादव
महासचिव- प्रीति ध्रुवे
उपाध्यक्ष- फ्रैंसिस लालरेमसियामा
अलीमुद्दीन- जेएस
निर्दलीय
अध्यक्ष- फारूख
2016 के चुनाव में एबीवीपी को रोकने के लिए आइसा और एसएफआई का गठबंधन
तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के नारेबाजी को लेकर विवाद के बाद 2016 में जब चुनाव हुआ था तो इससे पहले एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले आइसा और एसएफआई ने हाथ मिलाया ताकि एबीवीपी को रोका जा सके. कन्हैया कुमार के संगठन एआईएसएफ ने चुनाव नहीं लड़ा था जो सीपीआई की छात्र विंग है.
लेफ्ट के दोनों बड़े छात्र संगठनों के साथ आने की वजह 2015 के चुनाव में एबीवीपी के सौरभ शर्मा का संयुक्त सचिव पद जीत जाना था जिससे उन्हें महसूस हुआ कि एबीवीवी लेफ्ट के गढ़ में तेजी से पैठ बना रहा है. सेंट्रल पैनल के चार पदों में किसी भी पद पर 14 साल एबीवीपी की वापसी सौरभ शर्मा ने कराई थी.
ये बात लेफ्ट वाले भी दबी जुबान से कबूल करते हैं कि एबीवीपी वो काडर वोट मिलता है जो 1000 के आस-पास हैं. एबीवीपी को अध्यक्ष पद के लिए 2015 में 956 और 2016 में 1100 वोट मिले थे. मतलब साफ है कि एबीवीपी का वोट बढ़ रहा है लेकिन 2016 में वोट बढ़ने के बाद भी आइसा और एसएफआई ने साथ आकर उसे रोक दिया.
इस बार आइसा-एसएफआई के साथ हाथ मिलाकर लड़ रहा है डीएसएफ
इस बार आइसा और एसएफआई के साथ डीएसएफ (डेमोक्रेटिक स्टुडेंट्स फेडरेशन) भी आ गया है जो 2016 में इनके खिलाफ लड़ा था. डीएसएफ भी लेफ्ट छात्र संगठन है जो एसएफआई से अलग हुए लोगों ने बनाया है. डीएसएफ पिछले चुनाव में ज्वाइंट सेक्रेटरी पोस्ट पर दूसरे नंबर पर रही थी.
2016 के चुनाव में उतरे आंबेदकरवादी छात्र संगठन बाप्सा (बिरसा आंबेडकर फुले स्टुडेंट्स एसोसिएशन) ने कड़ी टक्कर दी थी. बाप्सा सेंट्रल पैनल के चार पद में कोई पद निकाल तो नहीं सकी लेकिन अध्यक्ष पद का चुनाव वो महज 400 वोट से हार गया. बाप्सा कैंडिडेट उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर तीसरे नंबर पर रहे थे.
2016 में एबीवीपी के कैंडिडेट अध्यक्ष पद पर तीसरे, उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर दूसरे और संयुक्त सचिव पद पर तीसरे नंबर पर रहे थे. मतलब साफ था कि एबीवीपी का वोट बैंक मजबूती के साथ उसके साथ खड़ा था. यही वजह है कि इस बार आइसा और एसएफआई की लेफ्ट यूनिटी में डीएसएफ भी शामिल हो गई है.
सीपीआई नेता डी. राजा की बेटी अपराजिता हैं एआईएसएफ की अध्यक्ष उम्मीदवार
एआईएसएफ की बात लेफ्ट यूनिटी के नाम पर जुटे आइसा, एसएफआई और डीएसएफ से नहीं बनी इसलिए वो अलग लड़ रही है. हालांकि उसने सिर्फ अध्यक्ष और ज्वाइंट सेक्रेटरी पोस्ट के लिए कैंडिडेट दिया है.
उसने अध्यक्ष पद पर सीपीआई के वरिष्ठ नेता डी. राजा की बेटी अपराजिता राजा को उतारा है. महासचिव और उपाध्यक्ष पद पर उसने कोई कैंडिडेट नहीं उतारकर अपने समर्थकों को इन दो पदों पर अपने विवेक से वोट करने कहा है.
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव का संचालन 35 छात्रों की संचालन समिति करती है जिसमें ज्यादातर गैरराजनीतिक छात्र रखे जाते हैं. यही समिति चुनाव से पहले तीन तरह से प्रेसिडेंशियल डिबेट कराती है जिसमें सबसे पहले सत्र के बहस में हर पैनल का अध्यक्ष उम्मीदवार अपनी बात रखता है और फिर दूसरे सत्र में कैंडिडेट आपस में बारी-बारी से सबसे सवाल-जवाब करते हैं. तीसरे सत्र में उम्मीदवार छात्रों के सवाल का जवाब देता है.
कैंपस में सीटों की कटौती और यूजीसी-नेट की साल में एक परीक्षा बड़ा मसला
इस साल का प्रेसिडेंशियल डिबेट झेलम लॉन में रात 10.30 बजे के करीब शुरू हुआ जो सुबह तकरीबन 5 बजे तक चला. बीच-बीच में बारिश के कारण बहस को तीन बार रोकना पड़ा लेकिन बारिश में भींगकर भी जेएनयू के स्टुडेंट्स नारेबाजी के बीच बहस सुनने के लिए डटे रहे.
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव का मुद्दा कैंपस के अलावा देश और दुनिया के तमाम मसलों से संचालित होता रहा है. इस बार भी वैसा ही माहौल है. देश भर में जो लेफ्ट और राइट का वैचारिक संघर्ष चल रहा है उसका पूरा असर कैंपस में चुनाव प्रचार पर दिख रहा है.
कैंपस के अंदर की बात में सबसे बड़ा मसला है सीटों की कटौती. इस बार एम.फिल और पीएचडी की करीब 85 परसेंट सीटें कम कर दी गईं जिस वजह से 970 स्टुडेंट्स के बदले मात्र 102 का ही दाखिला हो पाया. सीटों की कटौती लेफ्ट के पास सबसे बड़ा हथियार है जिस सवाल से एबीवीपी को जूझना पड़ रहा है क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है.
सीट कटौती के साथ-साथ कैंपस के बजट में कटौती भी एक मसला है. यूजीसी-नेट की परीक्षा को साल में दो बार से एक बार कर देना भी एक बड़ा मसला है क्योंकि इससे रिसर्च फील्ड में जाने वाले स्टुडेंट्स के पास मौके कम हो गए हैं.
पहले यूजीसी-नेट के जरिए 15 परसेंट कैंडिडेट्स को जेआरएफ मिलता था उसे भी घटाकर 6 परसेंट कर दिया गया है. लेफ्ट का सवाल है कि जब जेएनयू जैसे और संस्थान देश में खुलना चाहिए तो सरकार उल्टे सीट और रिसर्च के मौके घटा रही है.
प्रेसिडेंशियल डिबेट में देश-दुनिया के मसलों से लेकर नजीब तक की चर्चा
जेएनयू के छात्र नजीब के गायब होने पर हर संगठन बोल रहा है लेकिन उसके गायब होने के बाद के घटनाक्रम में लेफ्ट यूनिटी के कुछ नेताओं की भूमिका को लेकर इस बार आक्रोश है और इस सवाल को निर्दलीय कैंडिडेट फारूख बखूबी उठा रहे हैं.
बुधवार की रात प्रेसिडेंशियल डिबेट में जहां लेफ्ट वालों ने बोलने की आजादी पर खतरे को जोर-शोर से उठाया और हिन्दूवादी ताकतों को रोकने के लिए लेफ्ट के एकजुट होने का आह्वान किया. वहीं बाप्सा ने लेफ्ट पर निशाना साधते हुए कहा कि उसे बीजेपी यानी एबीवीपी से कोई डर नहीं है क्योंकि उसके लिए ब्राह्मणवाद भी बीजेपी से कम नहीं है.
एबीवीपी ने हिन्दू राष्ट्रवाद का पुरजोर बचाव किया. सवाल-जवाब के दौरान राम रहीम प्रकरण को लेकर एबीवीपी से सवाल पूछा गया तो उसने लेफ्ट सरकार के दौरान बंगाल के सिंगुर और नंदीग्राम से लेकर तापसी मलिक रेप तक से पलटवार किया.