नई दिल्ली. सतलुज यमुना लिंक यानि एसवाईएल नहर मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अहम सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ मामले की सुनवाई करेगी. गुरुवार को केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में बताएगी कि क्या इस मामले का कोई शांतिपूर्वक समाधान निकाला जा सकता है.
पिछली सुनवाई में अदालत ने केंद्र सरकार को इस मसले का शांतिपूर्वक समाधान निकालने के लिए दो महीने का वक्त दिया था. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था अदालती आदेश का सम्मान किया जाना चाहिए और इसका पालन होना चाहिए. अदालत ने कहा कि पंजाब और हरियाणा सरकार के लिए आदेश का पालन करना उनका दायित्व है.
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा व पंजाब सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि इस मामले को लेकर किसी तरह का धरना-प्रदर्शन न हो. इससे पहले पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा कि पिछले साल अधिसूचना के बाद किसानों को दी गई जमीनों को वापस लेना संभव नहीं है.
करार रद्द करने का एकतरफा फैसला नहीं
पंजाब सरकार ने कहा था कि ये केंद्र की जिम्मेदारी थी कि वो दो राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर मीडिएटर की भूमिका अदा करे लेकिन केंद्र ने ऐसा कभी नहीं किया. केंद्र सरकार ने कभी भी दोनों राज्यों के बीच चल रही जल बंटवारे की समस्या को खत्म करने की कोशिश नहीं की. केंद्र सरकार की ये जिम्मेदारी थी कि वो वाटर ट्रिब्यूनल का गठन करे लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया.
गौरतलब है कि 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब द्वारा पड़ोसी राज्यों के साथ सतजुल यमुना लिंक नहर समझौता निरस्त करने के लिए 2004 में बनाए गए कानून को असंवैधानिक करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रेफरेंस पर दिए फैसले में कहा था कि वह राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए सभी रेफरेंस पर अपना नकारात्मक जवाब देते हैं. पंजाब सरकार करार रद्द करने के लिए एकतरफा फैसला नहीं ले सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 सुप्रीम कोर्ट के फैसलों, इंटर स्टेट नदी जल विवाद एक्ट और अन्य संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने साफ किया कि पंजाब अन्य राज्यों से किए गए एग्रीमेंट के बारे में एकतरफा फैसला नहीं ले सकता.