नई दिल्ली: बाल विवाह मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कानून में बाल विवाह को अपराध माना गया है उसके बावजूद लोग बाल विवाह करते है. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कि ये मैरेज नहीं मिराज है. मिराज का हिंदी में शाब्दिक अर्थ मृगतृष्णा होता है जिसे आसान भाषा में आप धोखा, छलावा या भ्रम कह सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह के मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि हमारे पास तीन विकल्प हैं, पहला इस अपवाद को हटा दें जिसका मतलब है की बाल विवाह के मामले में 15 से 18 साल की लड़की के साथ अगर उसका पति संबंध बनाता और उसे रेप माना जाए.
कोर्ट ने कहा दूसरा विकल्प ये है कि इस मामले में पॉस्को एक्ट लागू किया जाए यानी बाल विवाह के मामले में 15 से 18 साल की लड़की के साथ अगर उसका पति संबंध बनाता है तो उसपर पॉस्को के तहत करवाई हो.
वहीं तीसरा विकल्प ये है कि इसमें कुछ न किया जाए और इसे अपवाद माना जाए जिसका मतलब ये है कि बाल विवाह के मामले में 15 से 18 साल की लड़की के साथ अगर उसका पति संबंध बनाता तो वो रेप नही माना जायेगा.
इससे पहले याचिकाकर्ता की तरफ से मंगलवार को दलील दी गई कि बाल विवाह से बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. याचिका में कहा गया कि बाल विवाह बच्चों पर एक तरह का जुर्म है क्योंकि कम उम्र में शादी करने से उनका यौन उत्पीड़न ज्यादा होता है, ऐसे में बच्चों को प्रोटेक्ट करने की जरूरत है.
इस मामले पर पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बाल विवाह के मामले में 15 से 18 साल की लड़की के साथ अगर उसका पति संबंध बनाता है और उसे रेप मान लिया जाता है तो ऐसे में बच्चों का भविष्य क्या होगा? कोर्ट ने कहा कि भारत में बाल विवाह बड़े पैमाने पर हुए है. ऐसे में इसको अवैध माना जाता है तो बच्चों की वैधता क्या होगी?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई लडक़ी 15 से 18 के बीच है और उसकी शादी नही हुई है और उसकी मर्जी से भी उसके साथ कोई संबंध बनाता है तो उसे रेप माना जाता है, लेकिन बाल विवाह के मामले में ऐसा नही है.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि 15 से 18 साल की लड़की से उसका पति अगर उसकी सहमति से सम्बंध बनाता है तो वो बलात्कार के तहत नही आएगा. ऐसे में या तो हम इस कानून को सही ठहरा दें जिसका मतलब है कि 15 से 18 के बीच शादीशुदा लड़की के साथ उसकी मर्जी से उसका पति सम्बंध बनाता है तो उसे रेप ना माना जाए, या फिर उसे रेप की कैटेगरी में माना जाए, या फिर इसे 18 साल ही कर दें.
दरअसल अदालत उस संगठन की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें कहा गया कि 15 से 18 वर्ष के बीच शादी करने वाली महिलाओं को किसी तरह का संरक्षण नहीं है. याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि एक तरह लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष हैं लेकिन इससे कम उम्र की लड़कियों की शादी हो रही है. याचिका में कहा गया है कि 15 से 18 वर्ष की लड़कियों की शादी अवैध नहीं होती है लेकिन इसे अवैध घोषित किया जा सकता है. याचिका में ये भी दलील दी गई है कि इतनी कम में उम्र में लड़कियों की शादी से उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.
याचिका में 15 से 18 वर्ष के बीच लड़कियों की शादी को असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए. इसके पीछे ये दलील दी गई है कि 18 से कम उम्र की लड़कियों को यह नहीं पता होता है कि शादी के क्या परिणाम होंगे? उन्होंने कहा कि शादी का एक ही बेंचमार्क होना चाहिए। लड़कियों की शादी के लिए संसद ने न्यूनतम 18 वर्ष है, जो मानसिक आयु है। ऐसे में इसका कोई अपवाद नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे लेकर सीआरपीसी में तो बदलाव कर दिया गया लेकिन भारतीय दंड संहिता में संशोधन नहीं किया गया।