नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाते हुए पूछा कि लोकसभा चुनाव हुए 3 साल हो चुके है और आपके पास अभी तक ये डाटा नही है कि किस उम्मीदवार ने चुनाव के दौरान कितने पैसे खर्च किये. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद कहता है कि अगर किसी उम्मीदवार ने चुनाव के दौरान अगर तय सीमा से ज्यादा पैसे खर्च किये है तो चुनाव आयोग करवाई करता है लेकिन यहाँ तो चुनाव आयोग के पास डाटा ही नही है तो कारवाई कैसे होगी ?
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आपको कैसे पता चलेगा कि लोकसभा में किसी उम्मीदवार ने पैसे ज्यादा खर्च किये? कोर्ट ने कहा आप कह रहे है कि डाटा डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर के पास है लेकिन 3 साल बीत गए डाटा आपके पास क्यों नही है ? वही चुनाव आयोग की तरफ से कहा गया कि डाटा डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर के पास है और तीन हफ़्तों का समय चाहिए ताकि डाटा मंगाया जा सके.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट NGO लोकप्रहरी की याचिका पर सुनवाई कर रहा है. लोक प्रहरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधारों को लेकर आदेश दे कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और परिवार की आय के स्त्रोत का खुलासा भी करे. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.
अप्रैल 2017 में अपने हलफनामे में चुनाव सुधारों को लेकर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी द्वारा अपनी, अपने जीवन साथी और आश्रितों की आय के स्त्रोत की जानकारी जरूरी करने को केंद्र तैयार है। केंद्र ने कहा कि काफी विचार करने के बाद इस मुद्दे पर नियमों में बदलाव का फैसला लिया गया है। जल्द ही इसके लिए नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा। इससे पहले चुनाव आयोग भी इस मामले में अपनी सहमति जता चुका है। चुनाव आयोग ने कहा था कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए नियमों में ये बदलाव जरूरी है।
अभी तक के नियमों के मुताबिक प्रत्याशी को नामांकन के वक्त अपनी, जीवनसाथी और तीन आश्रितों की चल-अचल संपत्ति व देनदारी की जानकारी देनी होती है. लेकिन इसमें आय के स्त्रोत बताने का नियम नहीं है.
इसी को लेकर NGO लोकप्रहरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधारों को लेकर आदेश दे कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और परिवार की आय के स्त्रोत का खुलासा भी करे. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. अपने हलफनामें केंद्र ने ये भी कहा है कि उसने याचिकाकर्ता की ये बात भी मान ली है जिसमें कहा गया था कि प्रत्याशी से स्टेटमेंट लिया जाए कि वो जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत अयोग्य करार देने वाले प्रावधान में शामिल नहीं है. इससे जनता और रिटर्निंग अफसर ये जान पाएंगे कि प्रत्याशी चुनाव लडने के योग्य है या नहीं.
हालांकि अपने हलफनामे में केंद्र इस मुद्दे पर चुप्पी साधे है कि कोई जनप्रतिनिधि अगर किसी सरकारी या पब्लिक कंपनी में कांट्रेक्ट वाली कंपनी में शेयर रखता है तो उसे अयोग्य करार दिया जाए. केंद्र ने कहा है कि ये पोलिसी का मामला है. हालांकि केंद्र ने नामांकन में गलत जानकारी देने पर प्रत्याशी को अयोग्य करार देने के मामले का विरोध किया, कहा ये फैसला लेने का अधिकार विधायिका का है.