नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट और डिस्टिक कोर्ट से रिटायर होने वाले जजों को सुरक्षा देने वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है. इस मामले के सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के याचिकाकर्ताओं को नोटिस भेजकर 8 हफ्तों के भीतर जवाब मांगा है. दरअसल जम्मू-कश्मीर सरकार ने रिटायर्ड जजों और पूर्व एडवोकेट जरनलों को सुरक्षा देने के हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. जम्मू कश्मीर सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने हाई कोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि रिटायर्ड जजों को सुरक्षा देने का आदेश ठीक नहीं है.
अपनी दलील में उन्होंने कहा था कि पूरे देश मे वीआईपी और अन्य किसी को भी सुरक्षा गृह मंत्रालय द्वारा तय दिशा-निर्देशों जिनमें उस व्यक्ति की जान को होने वाले खतरे को देखते हुए दी जाती है. सरकार ने कहा कि इस बारे में विस्तृत दिशानिर्देश और व्यापक तंत्र बना हुआ है और पूरा देश में उसी का पालन होता है. सरकार ने ये भी कहा कि ये कार्यपालिका का विशेषज्ञता वाला काम है और इसमें हाई कोर्ट इस तरह का आदेश नहीं दे सकता.
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी अपने आदेशों मे कह चुका है कि किसी को सुरक्षा देनी चाहिए और किसे नहीं, ये विशेषज्ञता का मसला है और कोर्ट इस बारे में आदेश नहीं दे सकता.
जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने किया दिया था आदेश?
जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने रिटायर्ट जजों को चौबीस घंटे सुरक्षा देने का आदेश दिया था. कोर्ट के आदेश के मुताबिक हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और सेवानिवृत न्यायाधीशों के घर सुरक्षा गार्ड तैनात किये जाएं और साथ में एक पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर यानी पीएसओ भी दिया जाए. कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि उनकी जान के खतरे को देखते हुए सुरक्षा और बढ़ाई भी जा सकती है.
इसके अलावा हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को रिटायर होने के एक साल बाद तक सुरक्षा दी जाए इसके बाद सुरक्षा समिति उनकी सुरक्षा के बारे में समीक्षा करके निर्णय लेगी कि उन्हें आगे सुरक्षा दी जाए या नहीं. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी आदेश दिया था कि सरकार राज्य पूर्व एडवोकेट जनरलों के घर पर चौबीस घंटे सुरक्षा गार्ड तैनात करे इसके अलावा अगर जरूरत पड़े तो पीएसओ की तैनाती की जाए.