नई दिल्ली: गुरमीत राम रहीम को सीबीआई की स्पेशल कोर्ट से यौन उत्पीड़न के मामले में 20 साल की सजा सुनाई जा चुकी है. राम रहीम जेल में बंद हो चुका है. उसका पूरा साम्राज्य खत्म हो चुका है, लेकिन डेरा के नाम पर राम रहीम के इस साम्राज्य को खत्म कर पाना पहाड़ चढ़ने से कम नहीं था. राम रहीम के केस की जांच करने वाले सीबीआई के पूर्व स्पेशल डॉयरेक्टर एम एल शर्मा के मुताबिक इस केस की सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि यौन उत्पीड़न की पीड़िता का ना तो नाम था और ना ही पता.
ये पूरा मामला एक गुमनाम चिट्ठी पर टिका हुआ था जिसकी जांच हाई कोर्ट ने सीबीआई को सौंपी थी. एम एस शर्मा के मुताबिक सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि पीड़ित की पहचान की जाए और उनके नाम और पते ढूढे जाएं. उनके मुताबिक डेरे से किसी तरह की मदद की उम्मीद करना बेकार था क्योंकि ये पूरा केस ही उनके खिलाफ था. ऐसे में पीड़ित को बिना किसी मदद के ढूढ़ना और फिर उसके बयान दर्ज कराना काफी चुनौतीपूर्ण काम था.
एम एल शर्मा के मुताबिक ‘ हमारी टीम बेहद काबिल थी जिसमें नारायण थे, अरमान सिंह और डागर थे जिन्होंने कड़ी मेहनत करके सुराग ढूढे. इस पड़ताल में 35 से 40 साध्वियों का पता चला और उनके बयान दर्ज किए गए लेकिन इनमें से सिर्फ दो ही पीड़ित ऐसी थीं जिन्होंने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराया.’ एम एल शर्मा के मुताबिक ‘जब जांच चल रही थी तो लडकियां अपने घर जा चुकी थीं. लेकिन 2 साध्वी ऐसी निकलीं जिन्होंने खुलकर बयान दिया.
उन्होंने बताया कि पूछताछ के दौरान 38 लड़कियों ने कहा अब हमारा जीवन बदल चुका है. अब हमारी शादी हो चुकी है और अब हम इस मामले में नहीं पड़ना चाहते. एम एल शर्मा के मुताबिक जिन लड़कियों ने बयान दिए थे, उन्होंने ही बताया की इन लड़कियों के साथ भी यौन उत्पीड़न हुआ है. उन्होंने बताया कि सीबीआई जब इन युवतियों के बयान दर्ज कर रही थी तो लड़कियां बेहद डरी हुई थी. उन्हें समाज और अपनी शादीशुदा जिंदगी खराब होने का डर था.