नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखने से संबंधित एक संगठन की याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गया है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीत मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने फोरम टू इंगेज मैन (एफईएम) के हस्तक्षेप करने वाले आवेदन को विचारार्थ स्वीकार कर लिया. अब इस अर्जी पर 4 सितंबर को बहस होगी.
इससे पहले केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा देकर कहा है कि मैरिटल रेप को अपराध नहीं घोषित किया जाना चाहिए. क्योंकि ऐसा करने से विवाह संस्था की नींव हिल जाएगी. सरकार इससे पहले भी कह चुकी है कि भारत जैसे परंपरावादी विकासशील देश में मैरिटल रेप की अवधारणा को मान्यता देना इसकी सदियों पुरानी संस्कृति के खिलाफ जाएगा.
केंद्र सरकार ने कहा कि किसी भी कानून में वैवाहिक दुष्कर्म को परिभाषित नहीं किया गया है, जबकि दुष्कर्म भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 में परिभाषित है और वैवाहिक दुष्कर्म को परिभाषित करना समाज में वृहत सहमति की मांग करता है. केंद्र सरकार ने कहा कि दुनिया के अन्य देशों, खासकर पश्चिमी देशों द्वारा वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने का यह मतलब नहीं है कि भारत को अनिवार्य रूप से उनका अंधानुकरण करना चाहिए.
मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में बुधवार को लगातार दूसरे दिन भी सुनवाई जारी रही. इस मामले में याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वकील कोलिन गोंजाल्विस ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि शादी का यह मतलब नहीं है कि औरतों को दास बना दिया जाए.
शादी के लाइसेंस को इस तरह नहीं देखा जा सकता कि पति को इस बात के लिए लाइसेंस मिल गया है कि वह पत्नी के साथ जबरन सेक्स संबंध बनाए. कानून के तहत 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ संबंध रेप नहीं है और इस प्रावधान को चुनौती दी गई है और इसे अपराध की श्रेणी में लाने की दलील दी गई है.