राम रहीम की राजनीतिक ताकत की कहानी, वोट के लिए डेरा में हर कोई लगाता था हाजिरी

पंचकुला: यूं तो हरियाणा-पंजाब में कई डेरे ऐसे हैं, जिनके लाखों फॉलोअर्स हैं. तमाम राजनेता उन डेरों पर मिलने, गुरुओं का आशीर्वाद लेने इसलिए जाते रहे हैं कि उनके समर्थकों का वोट मिल जाए. लेकिन बाबा गुरमीत राम रहीम ने एक नई शुरुआत की, सीधे-सीधे पॉलटिकल पार्टियों को समर्थन देकर. नतीजा ये हुआ कि बाबा के तमाम दोस्त बने तो तमाम दुश्मन भी. वैसे भी तेईस साल की उम्र में ही डेरे की कमान पाने वाले बाबा राम रहीम की महत्वाकांक्षाएं शुरू से ही अलग थीं. जो बाबा के कॉन्सर्ट शोज, रॉक स्टार लुक, एलबम्स और फिल्मों में दिखती भी रही हैं. हालांकि बाबा को लगता रहा है कि इससे डेरा की फैन फॉलोइंग भी बढ़ी है. डेरा पॉलटिक्स की शुरूआत ज्ञानी जेल सिंह से मानी जाती रही है. अकालियों की पॉलटिक्स धर्म के इर्द गिर्द घूमती थी, और कांग्रेस के पास उससे निपटने का कोई और उपाय नहीं सूझा. उस वक्त पंजाब में कांग्रेसियों के नेता ज्ञानी जेल सिंह ने इन डेरों पर जाना शुरू कर दिया. इस तरह डेरों पर नेताओं का जाना 1972 से ही शुरू हो गया था. हालांकि डेरे के गुरू खुलकर राजनीतिक पार्टियों के समर्थन से बचते रहे. 2002 में मुख्यमंत्री बनने के बाद यही फॉर्मूला कैप्टन अमिरंदर सिंह ने भी आजमाया, उन्होंने डेरों पर जाना शुरू कर दिया.
2007 के चुनावों में अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल ने भी बाबा राम रहीम के डेरे पर बाबा से मुलाकात की, लेकिन उसी साल गुरु गोविंद सिंह जैसे कपड़े पहनने की वजह से विवाद भी हो गया. बाबा राम रहीम ने पहली बार अपने समर्थकों से कांग्रेस को वोट देने की अपील की, हालांकि बाबा को किसी ने फिर भी उस तरह खुल कर कभी नहीं देखा जैसे बीजेपी के लिए करते देखा गया. उधर बाबा की दिक्कत ये हो गई कि पंजाब में सरकार अकालियों की बन गई और बाबा को कांग्रेस को समर्थन देने के चलते मुश्किलों का सामना करना पड़ा. हालांकि बाबा राम रहीम की कांग्रेस से नजदीकी उनके समधी पंजाब के कांग्रेस नेता हरमिंदर सिंह जस्सी के चलते हुई थी, बाबा के बेटे जसमीत की शादी जस्सी की बेटी से हुई है. डेरा का प्रभाव पंजाब के मालवा क्षेत्र की 65 सीटों पर है, जिसमें से बाबा के समर्थन से 37 सीटें कांग्रेस को मिलीं और अकाली 19 पर ही सिमट गई. ये अलग बात है कि कांग्रेस फिर भी पंजाब हार गई. इधर 2009 में बाबा ने राजनीतिक पार्टियों से दूरी बरतीं लेकिन माना जाता है कि बाबा ने बादल की पुत्रवधू हरसिमरत बादल की अमरिंदर के बेटे रणिंदर के खिलाफ बठिंडा से पहला ही चुनाव जिताने में काफी मदद की.
उसका फायदा डेरा को मिला भी, अकालियों ने डेरा की तरफ अपना रुख थोड़ा नरम कर लिया, पंजाब के कई इलाकों में आश्रम खुलने में मदद की। बाद में डेरा ने 2012 के विधानसभा चुनावों में अकालियों-बीजेपी के उम्मीदवारों को समर्थन दिया और उसी मालवा क्षेत्र में गठबंधन को 14 सीटें ज्यादा आईं. यहीं से बाबा राम रहीम की बीजेपी से नजदीकियां बढ़ीं जो हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में समर्थन के बाद और भी ज्यादा बढ़ गईं. हालांकि ये आसान नहीं था, बाबा की ताकत के बारे में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को समझाया गया कि कैसे दलित सिखों के बीच बाबा की मजबूत पकड़ है, कि कैसे 5 करोड़ लोग बाबा के समर्थक हैं, भक्त हैं, जिनमें से 25 लाख तो हरियाणा में ही हैं. 25 लाख महाराष्ट्र में हैं. पंजाब में 13 जिलों की 65 सीटों पर बाबा का सिक्का चलता है, राजस्थान, यूपी और बिहार में भी बाबा के समर्थकों की अच्छी खासी तादाद है. हालांकि जिस केस के चलते बाबा को दोषी ठहराया गया है, उसकी पीड़ित ने पीएम बाजपेयी को ही एक चिट्ठी के जरिए बाबा पर आरोप लगाए थे. सो बीजेपी कुछ संशकित थी. लेकिन बीजेपी 2014 का चुनाव जीतने के लिए जी जान से जुटी थी. हालांकि हरियाणा जीतने की तो बीजेपी को भी उम्मीद नहीं थी.
कहा जाता है कि हरियाणा की प्रभारी सुषमा स्वराज और अमित शाह ने बाबा राम रहीम से मुलाकात की और उस मुलाकात के 6 दिन बाद यानी हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक एक हफ्ता पहले हरियाणा में पार्टी के 90 में से 44 विधायकों ने कैलाश विजयवर्गीय की अगुआई में बाबा से डेरे पर जाकर मुलाकात की. ये मामला चौंकाने वाला था, इससे बाबा की हैसियत और इज्जत अपने समर्थकों में और भी ज्यादा बढ़ गई. बीजेपी की चिंता थी कि बाबा खुद पर चल रहे केसों में कहीं मदद ना मांग लें, लेकिन बाबा ने केवल एक ही एफीडेबिट बदले में बीजेपी से लिया कि बीजेपी उनके सोशल वैलफेयर के कामों में उनकी मदद करेगी. बीजेपी को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था. फिर तो वो हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ, बाबा ने खुलकर बीजेपी को वोट करने की अपील कर दी. बाबा मोदी के मुरीद थे और मोदी को बाबा की जरूरत थी. मोदी भी जब हरियाणा चुनाव प्रचार को पहुंचे तो बाबा के सोशल वैलफेयर के कामों की तारीफ की. दिलचस्प बात तो ये रही कि इन चुनावों में बाबा ने पहली बार खुद वोट डाला और अपने परिवार के साथ वोटिंग के बाद एक तस्वीर खींच कर ट्विटर पर भी शेयर की. वैसे भी बाबा में अब कैमरा और मीडिया फ्रेडली गुण पैदा हो गए थे. बाबा का फिल्मों से नाता जुड़ गया था, एक महानायक, एक लेखक, एक गायक और एक निर्देशक के तौर पर.
इधर सितम्बर 2015 में बाबा का माफीनाम अकाल तख्त ने मंजूर कर लिया और बाबा को माफी दे दी. जिसके चलते कट्टर सिख संगठन अकालियों से भी नाराज हो गए. जिसका खामियाजा भी अकालियों ने 2017 के चुनाव में भुगता और सत्ता चली गई. हालांकि तमाम आप समर्थकों ने बाबा के कहने पर आप को वोट नहीं किया और वो पंजाब में सरकार नहीं बना पाई. फायदा कैप्टन को मिला. इधर बाबा का जलवा कायम था. मोदी के मुरीद बाबा ने नोटबंदी के बाद उसके सपोर्ट में एक बड़ा सा बयान जारी कर दिया, इतना ही नहीं पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद बाबा की फिल्म ‘हिंद का नापाक को जवाब’ में बाबा ने खुद पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक का सीन रखा. हालांकि बाबा गुरमीत राम रहीम को अच्छे से पता है कि मोदी के लिए और बीजेपी के केन्द्रीय नेताओं के लिए बाबा रामदेव नंबर वन पर हैं तो धीरे धीरे बाबा ने रामदेव की जगह लेने की योजना भी शुरू कर दी.
शुरूआत हुई 2016 के शुरूआत में, बाबा ने 150 स्टोर्स और करीब इतने ही प्रोडक्ट्स के साथ अपने फूड प्रोडक्ट्स लांच कर दिए. गौमूत्र की बात करने वाले बाबा रामदेव के जवाब में बाबा राम रहीम ने बीजेपी को खुश करने के लिए दिल्ली में हाल ही में एक विशाल काउ मिल्क पार्टी आयोजित की, जिसमें बीजेपी के कई बड़े नेताओं को भी बुलाया. 19000 लोगों ने इस पार्टी में गाय का दूध पिया, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी इस ईवेंट को शामिल करने के लिए भेजा गया है. हरियाणा की योगा एसोसिएशन ने जब हरियाणा सरकार को बाबा का नाम द्रोणाचार्य अवॉर्ड के लिए भेजा तो ये भी उसी रणनीति का हिस्सा था. बाबा रामदेव इस वक्त योग के सबसे बड़े चेहरे हैं. बाबा रामदेव तो लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी की राजनीति से दूर हो गए और बाकी कामों में व्यस्त हो गए, लेकिन राम रहीम नहीं रुके. हरियाणा के बाद बाबा ने 2015 के दिल्ली चुनावों में भी बीजेपी को खुलकर समर्थन किया. बाबा ने दावा किया कि उनके दिल्ली में बीस लाख समर्थक हैं, जो बीजेपी को वोट देंगे. बाबा ने भी एक बड़ा मेगा क्लीनिंग कैम्पेन दिल्ली में लांच किया और खुद भी दिल्ली की सड़कों पर झाड़ू लगाई. इतना ही नहीं बाबा गुरमीत ने बिहार में भी बीजेपी को सपोर्ट किया, दावा किया कि उनके तीन हजार समर्थक प्रचार के लिए यहां से बिहार गए हैं.
बिहार और दिल्ली में भले ही बीजेपी की सरकार नहीं बनी, केन्द्र में भी बाबा को वो तबज्जो नहीं मिलती जितनी कि बाबा रामदेव या श्री श्री रविशंकर को मिलती है, लेकिन बाबा ने हरियाणा सरकार के मंत्रियों पर अपनी पकड़ बना रखी है. शायद ये बाबा के समर्थक वोट बैंक का ही जलवा है. आलम ये है कि हरियाणा के शिक्षा मंत्री रामविलास शर्मा ने बाबा के जन्मदिन पर डेरे को 51 लाख का अनुदान देने का ऐलान किया. इससे पहले रूमाल छू प्रतियोगिता को बढ़ावा देने के लिए खेल मंत्री अनिल विज 50 लाख रुपए और सहकारिता राज्यमंत्री मनीष ग्रोवर खेल लीग के दौरान 11 लाख का अनुदान दे चुके हैं. केन्द्रीय खेल मंत्री विजय गोयल भी बाबा को स्टेडियम बनाने के लिए 30 लाख रुपए की मदद कर चुके हैं. बात यही नहीं रुकती, बाबा के सपोर्ट में चीफ मिनिस्टर खट्टर से लेकर उनके मंत्रियों तक के बयान अक्सर ट्विटर पर या चैनल्स में दिखते रहते हैं। हरियाणा चुनाव के बाद विज ने बाबा को जीत का क्रेडिट दिया था, वहीं चौटाला ने भी माना था कि उनकी हार के पीछे बाबा का बीजेपी को समर्थन देना था. राम विलास शर्मा ने चैनल्स पर साफ साफ बयान दे दिया कि धारा 144 भक्तों पर लागू नहीं होती है. इससे समझा जा सकता है कि हरियाणा बीजेपी के नेता बाबा के कितने प्रभाव में हैं और कोर्ट के इस फैसले के बाद उनको ही सबसे ज्यादा भुगतना भी पड़ेगा.
दरअसल बाबा की ताकत डेरा के समर्थकों में हैं, इस विरासत की नींव उनसे पहले के दो गुरूओं ने रख दी थी. हरियाणा के करीब 9 जिलों में करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर बाबा के समर्थक बड़ी तादाद में हैं और सीटों पर हार-जीत तय करते हैं. बाबा के समर्थन से इस इलाके में बीजेपी ने नारनोंद, हिसार, बवानी खेड़ा, अंबाला सिटी, टोहाना, उचाना कलां, नारनोंद, भिवानी, शाहबाग, थानेसर, लाड़वा, मौलाना और पेहवा सीटों पर जीत दर्ज की थी. इससे पहले बीजेपी के खाते में केवल इन सभी सीटों में से केवल भिवानी की ही सीट थी. अब तो डेरा का प्रभाव यूपी के बागपत, मेरठ वाली जाट बैल्ट पर, दिल्ली के जहांगीर पुरी, सीमापुरी, जैसे इलाकों में, राजस्थान में उदयपुर, श्रीगंगानगर, हनुमान गढ़, कोटा, बीकानेर, जयपुर, मध्यप्रदेश के सीहोर, छत्तीसगढ़ के कोरबा, उडीसा के पुरी, महाराष्ट्र के सतारा, गुजरात के भुज, हिमाचल का कांगड़ा और कर्नाटक के मैसूर जैसे इलाकों तक में अपने आश्रमों के जरिए पहुंच चुका है। कोर्ट के फैसले के बाद ये देखना वाकई में दिलचस्प होगा कि हरियाणा बीजेपी के नेताओं का रुख क्या रहता है और बाबा का प्रभाव अपने भक्तों पर कितना कम होता है.
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