नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने तीन तलाक को तो खत्म कर दिया, लेकिन मुस्लिम महिलाओं ने बराबरी का हक पाने के लिए जो आवाज़ उठाई थी और जिसके लिए तीन तलाक के खिलाफ कानूनी जंग छेड़ी, वो सवाल जस का तस है कि क्या तीन तलाक खत्म होने के बाद मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक मिल गया ?
सवाल ये भी है कि तीन तलाक खत्म होने के बाद अब मुस्लिम समाज में तलाक के मामलों का निपटारा कैसे होगा ? क्या तलाक के जो बाकी तरीके हैं, उनमें महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक हासिल है ? इन्हीं सवालों पर आज होगी महाबहस.
तीन तलाक खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या मुस्लिम महिलाओं के हालात वाकई बदल गए हैं ? ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक को संविधान से मिले बराबरी के अधिकार के खिलाफ बताया था.
अब तीन तलाक खत्म होने के बाद जो तरीके पर्सनल लॉ में हैं, उनमें भी पुरुषों को एकतरफा तलाक देने का हक है, महिलाओं को नहीं. तीन तलाक खत्म होने के बाद सिर्फ ये फर्क आया है कि एकतरफा और मनमाना तलाक जो सिर्फ तीन सेकंड में हो जाता था, वो अब तीन महीने में होगा.
जिस वक्त सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ तीन तलाक खत्म होने का फैसला सुना रही थी और मुस्लिम महिलाएं इसका जश्न मना रही थीं, ऐन उसी दौरान मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में तीन तलाक का एक मामला शरीयत और कानून के पेंच में उलझा था. होशंगाबाद के इमरान ने अपनी पत्नी को चिट्ठी के जरिए 16 अगस्त तीन तलाक दिया और अब इमरान की पत्नी फरहीन इस तलाक को मानने के लिए तैयार नहीं हैं.
तीन तलाक खत्म होने के बाद मुस्लिम समाज में तलाक के मसले कैसे निपटाए जाएंगे, इसका साफ-साफ जवाब ना तो सरकार दे रही है और ना ही मुस्लिम धर्म गुरू. मुस्लिम समाज में कुरान के हिसाब से तलाक की प्रक्रिया कम से कम 90 दिन में पूरी होती है और इस दौरान पति-पत्नी में सुलह की कोशिश करने का हुक्म भी है.
लेकिन, सवाल ये है कि सुलह कराने की जिम्मेदारी कौन उठाएगा ? एक महीने में एक तलाक का हक भी पुरुषों को हासिल है. उसमें महिलाओं की रज़ामंदी या विरोध मायने नहीं रखता. महिलाओं को खुला के जरिए पति से अलग होने की छूट है, लेकिन खुला भी तभी हो सकता है, जब पति इसके लिए तैयार हो. ऐसे में ये सवाल जस का तस है कि तीन तलाक खत्म होने से क्या मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक मिल गया.
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