कुरान में आखिर कहां लिखा है ट्रिपल तलाक जायज़ है ?

ट्रिपल तलाक पर फैसले की घड़ी आ गई है. देश की सबसे बड़ी अदालत मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगी. मंगलवार को साफ हो जाएगा कि ट्रिपल तलाक रहेगा या जाएगा? मुस्लिम महिलाओं के लिए मान-सम्मान के साथ जीने का संवैधानिक अधिकार बड़ा है

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कुरान में आखिर कहां लिखा है ट्रिपल तलाक जायज़ है ?

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  • August 21, 2017 4:59 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: ट्रिपल तलाक पर फैसले की घड़ी आ गई है. देश की सबसे बड़ी अदालत मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगी. मंगलवार को साफ हो जाएगा कि ट्रिपल तलाक रहेगा या जाएगा? मुस्लिम महिलाओं के लिए मान-सम्मान के साथ जीने का संवैधानिक अधिकार बड़ा है या तीन तलाक की प्रथा जिसके लिए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला दिया जा रहा है? 
 
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट कल अपना फैसला सुनाएगा. चीफ जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच का फैसला सुबह साढ़े दस बजे आएगा. मंगलवार को ये तय हो जाएगा कि तीन तलाक वैध है या अवैध. इस ऐतिहासिक फैसले से पहले हम इस केस के तमाम पहलुओं को खंगालेंगे. हम ये जानेंगे कि कुरान में आखिर कहां लिखा है ट्रिपल तलाक जायज़ है?
 
मंगलवार की सुबह पूरा देश एक ऐतिहासिक फैसले का गवाह बनेगा. चीफ जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी समुदाय के जज शामिल हैं. अदालत सुबह बैठेगी और तीन तलाक पर फैसला सुनाएंगी. ये तय हो जाएगा कि संविधान की कसौटी पर तीन तलाक खरा उतरता है या नहीं? 
 
कोर्ट को ये फैसला सुनाना है कि ट्रिपल तलाक संविधान से अनुच्छेत 14 के तहतमिले समानता और भेदभाव के खिलाफ अधिकार का उल्लंघन तो नहीं करता ? ट्रिपल तलाक महिलाओं के मान-सम्मान का उल्लंघन तो नहीं करता जो संविधान से आर्टिकल 21 के तहत मिले जीने के अधिकार का अहम हिस्सा है ? 
 
पूरे मामले में एक तरफ कोर्ट पहुंची मुस्लिम महिलाएं हैं जो संविधान से मिले अधिकारों का हवाला देकर तीन तलाक का विरोध कर रही हैं. वहीं केंद्र की मोदी सरकार उनके साथ डटकर खड़ी है जिसने चुनावी मैदान से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक तीन तलाक को मुस्लिम महिलाओं के मान-सम्मान के खिलाफ और संविधान के विरुद्ध बताया है. 
 
दूसरी तरफ, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है जिसने अपने एक हलफनामे में यहां तक कह दिया कि तीन तलाक आपत्तिजनक होते हुए भी जायज़ है. पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील है कि ये आर्टिकल 25 के तहत मिले धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे में आता है लिहाजा अदालत दखल न दे.
 
जबकि केंद्र सरकार ने इसका पुरजोर विरोध ये कह कर किया कि वो धार्मिक प्रथा वैध ही नहीं हो सकती जो संविधान की कसौटी पर खरा न उतरे. इन तमाम दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 11 मई से 17 मई तक सुना और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट को अब यही फैसला मंगलवार को सुनाना है.

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