नई दिल्ली: कल देश आजादी की 70वीं सालगिरह मनाएगा. आज़ादी के इस पर्व का जश्न शुरू हो चुका है. लेकिन इन दिनों हमारे ही देश का बड़ा हिस्सा बाढ़ की गुलामी में डूबा है. यहां घर, खेत-खलिहान, चूल्हा-चक्की सबकुछ सैलाब में डूब चुके हैं. ऐसे में करोड़ों की आबादी कैसे जश्न-ए-आजादी मनाएगी.
बिहार के 16 जिले में बाढ़ ने आज़ादी के जश्न में खलल डाल दी है. 35 लाख लोग पानी की गुलामी में जीने को मजबूर हैं. घर-बार, ज़मीन जायदाद सब कुछ सैलाब निगलता जा रहा है. आज़ादी के पर्व पर मिठाई, पूड़ी-पकवान की बात तो दूर दो जून की रोटी पर आफत टूट पड़ी है.
नेपाल से पानी का प्रहार हुआ तो बस्ती-बस्ती बाढ़ का हाहाकार मचा है. देखिए पूर्वी चंपारण जिले मोतिहारी में खेतों में सैलाब आया तो एक बुजुर्ग महिला बहने लगी है. किस्मत अच्छी थी कि वो झाड़ी में जाकर अटक गई है. कुछ लड़कों ने दौड़कर उसे पकड़ा और तबाही के पानी से बाहर निकाला. लगातार बारिश और नेपाल के छोड़े गए पानी से यहां बागमती, बूढ़ी गंडक और लालबकया नदी में बाढ़ आ गई है.
नदियों का पानी किनारों का काटता बस्ती तक पहुंच चुका है. घर, खेत-खलिहान सब लहरों में समाते जा रहे हैं. देखिए किस तरह लोग आंसू भरी आंखों से नदी के पेट में अपनी जमीन जायदाद को जाते देख रहे हैं. लालबकया नदी का बांध कई गावों के पास बह चुका है, दर्जनों गांवों को बाढ़ डुबो चुकी है. गांव की सड़कों पर पानी लहरें इतनी तेज हैं कि यहां से गुजरना खतरे से खाली नहीं है. बाढ़ में डूबे लोग यहां लाठी लेकर चल रहे हैं.
महंगुआ गांव के तीन भाई दुकान बंद कर घर लौट रहे थे, तभी पानी के तेज बहाव तीनों बहने लगे. तीनो भाइयों ने एक दूसरे का हाथ थामा. लेकिन पानी ने उनके पांव उखाड़ दिए. एनडीआरफ की टीम अब उनती तलाश कर रही है. पूर्वी चंपारण के रक्सौल में बाढ़ से त्राहिमाम मचा है. घर, मुहल्ले, बस्ती सब पानी पानी हो चुके हैं.
घर के अंदर पानी घुस चुका है परिवार के परिवार सामान समेटकर सुरक्षित जगहों पर जा रहे हैं. लेकिन लगातार बारिश ने इनकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं. जिन रास्तों पर लोग पैदल और गाड़ियों से चलते थे.
वहां कमर भर पानी है और उसी सैलाब से इंसान जरूरत के सामान लेकर निकल रहा है. सीतामढ़ी में बागमती नदी तटबंध को तोड़कर कई गांवों में तबाही मचा रही है. गांवों में बर्बादी की बाढ़ आ चुकी है. सैकड़ों लोग उदासी भरी नजरों से जल-प्रलय को देख रहे हैं.