विधवाओं की हालत पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, बनाई पांच सदस्यीय समिति

सुप्रीम कोर्ट ने विधवाओं की हालात पर पांच लोगों की कमिटी बनाई है. इस कमिटी में सामाजिक कार्यकर्ता और वकीलों को शामिल किया गया है.

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विधवाओं की हालत पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, बनाई पांच सदस्यीय समिति

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  • August 11, 2017 7:13 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने विधवाओं की हालात पर पांच लोगों की कमिटी बनाई है. इस कमिटी में सामाजिक कार्यकर्ता और वकीलों को शामिल किया गया है. 
 
कोर्ट ने कहा है कि पांच सदस्यीय कमिटी देशभर में विधवाओं की हालात सुधारने के लिए उठाए जाने वाले कदमों को लेकर सिफारिशें देगी. 18 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि सामाजिक बंधनों की परवाह ना करते हुए वो ऐसी विधवाओं के पुनर्वास से पहले पुनर्विवाह के बारे में योजना बनाए जिनकी उम्र कम है.
 
कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि पुनर्विवाह भी विधवा कल्याकारी योजना का हिस्सा होना चाहिए. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रोडमैप पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमें सफाई, पौष्टिक भोजन, सफाई समेत कई मुद्दों पर खामियां हैं. कोर्ट ने यहां तक कहा कि विधवा महिलाओं से बेहतर खाना जेल के कैदियों को मिलता है.
 
जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने मंगलवार को कहा था कि विधवाओं के पुनर्वास की बात तो की जाती है लेकिन उनके पुनर्विवाह के बारे में कोई नहीं बात करता. सरकारी नीतियों में विधवाओं के पुनर्विवाह की बात नहीं है जबकि इसे नीतियों का हिस्सा होना चाहिए.
 
वास्तव में सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि वृंदावन सहित अन्य शहरों में विधवा गृहों में कम उम्र की विधवाएं भी हैं. पीठ ने कहा कि यह दुख की बात है कि कम उम्र की विधवाएं भी इन विधवा गृहों में रह रही हैं.
 
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति में भी बदलाव करने की बात कही है. अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय नीति 2001 में बनी थी और इसे 16 वर्ष बीत चुके हैं. लिहाजा इसमें बदलाव की जरूरत है. कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि हमें नहीं लगता कि महिलाओं का सशक्तिकरण हो पाया है. जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि स्थितियों में सुधार हो रहा है. सरकार लगातार प्रयास कर रही है. हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार राष्ट्रीय नीति में बदलाव करेगी.
 
इसके अलावा ने कहा कि महिलाओं को पौष्टिक भोजन की भी दरकार है. पीठ ने कहा कि देश में कुपोषण एक बड़ी समस्या है. पीठ ने कुछ रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि विधवा गृहों में रहने वाली महिलाओं से तो अधिक पौष्टिक खाना तो जेल में बंद कैदियों को मिलता है. इस मामले में मंगलवार को सुनवाई पूरी हो गई और अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
 
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने पीठ को सरकार की योजनाओं से अवगत कराया. सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी(सीएसआर) में विधवाओं के कल्याण पर खर्च करने की शामिल करने की योजना है. उन्होंने कहा कि सरकार को पूरा भरोसा है कि सार्वजनिक उपक्रम इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे. साथ ही सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि विधवाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा की योजना है. विधवा गृहों में रहने वाली महिलाओं के लिए वोकेशनल ट्रैनिंग की भी योजना है. 
 
इस दौरान पीठ ने यह भी सुझाव दिया कि क्यों नहीं इन होम में रहने वाली महिलाओं को पास स्थित बाल सुधार गृह या वृद्धाश्रम में काम करने का मौका दिया जाए. पीठ ने कहा कि आपकी योजनाएं सिर्फ कागजों पर दिखती है जमीनी हकीकत कुछ और ही दिखती है. जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि स्थिति में सुधार हो रहा है. 
 
पिछली सुनवाई में विधवाओं के लिए रोडमैप तैयार कर ना देने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र पर एक लाख का जुर्माना लगाया था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाते हुए कहा था कि आपको विधवाओं की कोई चिंता नहीं है. आप खुद काम नहीं करते औप बाद में कहते हैं की सुप्रीम कोर्ट देश चला रहा है. आपको विधवा महिलाओं के लिए कुछ सोचना चाहिए.
 
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार हफ्ते में रोडमैप लाने के लिए कहा था. दरअसल देश में विधवा महिलाओं के कल्याण को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वृंदावन में रहने वाली विधवा महिलाओं के रहने और मेडिकल आदि के लिए आदेश जारी किए थे और फिर मामले को सारे राज्यों से जोड दिया था.
 
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग को सभी राज्यों में जाकर विधवा महिलाओं के हालात पर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था. रिपोर्ट दाखिल होने के बाद कोर्ट ने सभी राज्यों से मीटिंग कर रोडमैप दाखिल करने को कहा था, लेकिन मीटिंग होने के बावजूद केंद्र ने रोडमैप सुप्रीम कोर्ट को नहीं दिया था.

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