नई दिल्ली: अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद मामले में उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के हलफनामे को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बेबुनियाद बताया है. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि वक्फ बोर्ड का इस मामले में कोई कानूनी महत्व नहीं है. वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि बाबरी मस्जिद शियाओं ने नहीं बनाई थी, वो सुन्नी मस्जिद थी और इस पर शिया वक्फ बोर्ड केस हार चुका है. ऐसे में उसके हलफनामे का कोई महत्व नहीं है. दरअसल उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि अगर उन्हें थोड़ी दूर पर मस्जिद बनाने के लिए सरकार जमीन दे तो वो जन्मभूमि पर दावा छोड़ने को तैयार हैं. शिया वक्फ बोर्ड ने हालांकि ये सीधे तौर पर नहीं कहा है कि विवादित जमीन पर राम मंदिर बने लेकिन इस जमीन के तीन दावेदारों में अगर मुसलमान पक्ष दावा छोड़ दें तो बचे हुए दो पक्ष हिन्दू हैं जो वहां मंदिर बनाने की कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. मुस्लिमों के दावा छोड़ने का सीधा मतलब राम मंदिर बनने का रास्ता साफ होना होगा.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था. हाईकोर्ट ने एक तिहाई जमीन यानी राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़ा को, एक तिहाई हिस्सा यानी रामलला मूर्ति वाली जगह रामलला विराजमान को और बचा हुए एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला किया था.इस हिसाब से देखें तो शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामा और विवादित जमीन पर मुसलमानों को मिले एक तिहाई हिस्से पर दावा छोड़ देने का बयान फिलहाल कोई खास महत्व नहीं रखता क्योंकि इस जमीन के लिए इस समय सुन्नी वक्फ बोर्ड लड़ रहा है और कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड जो कहेगा, उसका ज्यादा महत्व होगा. शिया वक्फ बोर्ड इस जमीन को लेकर सुन्नी वक्फ बोर्ड से 1945 में ही केस कार गया था और तब से राम जन्मभूमि पर चल रहे केस में मुसलमानों का पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड ही रख रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ रामलला विराजमान और हिन्दू महासभा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. सुन्नी वक्फ बोर्ड भी कोर्ट पहुंचा. फिर सुुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर अमल रोक दिया. यही सुनवाई 11 अगस्त से शुरू हो रही है. इलाहाबादा हाईकोर्ट ने 2010 में विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था. हाईकोर्ट ने एक तिहाई जमीन यानी राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़ा को, एक तिहाई हिस्सा यानी रामलला मूर्ति वाली जगह रामलला विराजमान को और बचा हुए एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला किया था. इस हिसाब से देखें तो शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामा और विवादित जमीन पर मुसलमानों को मिले एक तिहाई हिस्से पर दावा छोड़ देने का बयान फिलहाल कोई खास महत्व नहीं रखता क्योंकि इस जमीन के लिए इस समय सुन्नी वक्फ बोर्ड लड़ रहा है और कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड जो कहेगा, उसका ज्यादा महत्व होगा. शिया वक्फ बोर्ड इस जमीन को लेकर सुन्नी वक्फ बोर्ड से 1945 में ही केस कार गया था और तब से राम जन्मभूमि पर चल रहे केस में मुसलमानों का पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड ही रख रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ रामलला विराजमान और हिन्दू महासभा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. सुन्नी वक्फ बोर्ड भी कोर्ट पहुंचा. फिर सुुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर अमल रोक दिया. यही सुनवाई 11 अगस्त से शुरू हो रही है.
शिया वक्फ बोर्ड ने कहा- सुप्रीम कोर्ट कमिटी बनाए जो मामले का हल निकाले
शिया वक्फ बोर्ड ने अपने हलफनामे में कहा है कि मस्जिद को मुस्लिम बहुल इलाके में राम जन्मभूमि से थोड़ी दूर पर वो बना सकते हैं. शिया वक्फ बोर्ड ने ये भी कहा है कि इसके लिए सुप्रीम कोर्ड खुद एक कमिटी गठित करे और उसके रिपोर्ट देने की समय सीमा तय करे. शिया बोर्ड ने हलफनामे में ये भी कहा है कि कमिटी का अध्यक्ष SC के रिटायर्ड जज हों और कमिटी मे इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2 जज भी हों. शिया वक़्फ़ बोर्ड ने SC से कहा है कि आपसी सहमति से हल निकालने के लिए कोर्ट एक कमिटी बनाए. शिया वक़्फ़ बोर्ड ने हलफ़नामे में कहा है कि वह मामले के शांतिपूर्ण हल का पक्षधर है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे पर शिया वक़्फ़ बोर्ड ने कहा है कि बाबरी मस्जिद मीर बकी ने बनवाई थी जो कि शिया था इसलिए उसे मामले में सुना जाए. शिया बोर्ड ने कहा कि 1946 तक बाबरी मस्जिद उनके पास थी जिसे अंग्रेज़ों ने ग़लत क़ानून प्रक्रिया से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दे दिया था.
हिन्दू महासभा ने कहा- जमीन का एक हिस्सा भी नहीं देंगे
सुप्रीम कोर्ट में शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामा पर हिन्दू महासभा की प्रतिक्रिया आ गई है. हिन्दू महासभा के वकील विष्णु शंकर जैन ने इंडिया न्यूज से कहा कि मंदिर के एवज में शिया वक्फ बोर्ड को जमीन का एक हिस्सा भी नहीं देंगे.
शिया वक्फ बोर्ड का इस मामले में जवाब देने का कोई मायने नहीं- सुन्नी वक्फ बोर्ड
शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामा पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि शिया वक्फ बोर्ड का इस मामले में कोई कानूनी महत्व नहीं है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि बाबरी मस्ज़िद शियाओं ने नहीं बनाई थी, वो सुन्नी मस्जिद थी और इस पर शिया वक्फ बोर्ड केस हार चुका है.सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है उसमें शिया वक्फ बोर्ड पक्ष ही नहीं है. वो इसी मामले से संबंधित रामलला विराजमान मामले में हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता थे.
शिया वक्फ बोर्ड ने कहा- सुप्रीम कोर्ट कमिटी बनाए जो मामले का हल निकाले
शिया वक्फ बोर्ड ने अपने हलफनामे में कहा है कि मस्जिद को मुस्लिम बहुल इलाके में राम जन्मभूमि से थोड़ी दूर पर वो बना सकते हैं. शिया वक्फ बोर्ड ने ये भी कहा है कि इसके लिए सुप्रीम कोर्ड खुद एक कमिटी गठित करे और उसके रिपोर्ट देने की समय सीमा तय करे. शिया बोर्ड ने हलफनामे में ये भी कहा है कि कमिटी का अध्यक्ष SC के रिटायर्ड जज हों और कमिटी मे इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2 जज भी हों. शिया वक़्फ़ बोर्ड ने SC से कहा है कि आपसी सहमति से हल निकालने के लिए कोर्ट एक कमिटी बनाए.शिया वक़्फ़ बोर्ड ने हलफ़नामे में कहा है कि वह मामले के शांतिपूर्ण हल का पक्षधर है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे पर शिया वक़्फ़ बोर्ड ने कहा है कि बाबरी मस्जिद मीर बकी ने बनवाई थी जो कि शिया था इसलिए उसे मामले में सुना जाए. शिया बोर्ड ने कहा कि 1946 तक बाबरी मस्जिद उनके पास थी जिसे अंग्रेज़ों ने ग़लत क़ानून प्रक्रिया से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दे दिया था.
हिन्दू महासभा ने कहा- जमीन का एक हिस्सा भी नहीं देंगे
सुप्रीम कोर्ट में शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामा पर हिन्दू महासभा की प्रतिक्रिया आ गई है. हिन्दू महासभा के वकील विष्णु शंकर जैन ने इंडिया न्यूज से कहा कि मंदिर के एवज में शिया वक्फ बोर्ड को जमीन का एक हिस्सा भी नहीं देंगे. शिया वक्फ बोर्ड का इस मामले में जवाब देने का कोई मायने नहीं- सुन्नी वक्फ बोर्ड शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामा पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि शिया वक्फ बोर्ड का इस मामले में कोई कानूनी महत्व नहीं है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि बाबरी मस्ज़िद शियाओं ने नहीं बनाई थी, वो सुन्नी मस्जिद थी और इस पर शिया वक्फ बोर्ड केस हार चुका है.सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है उसमें शिया वक्फ बोर्ड पक्ष ही नहीं है. वो इसी मामले से संबंधित रामलला विराजमान मामले में हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता थे.
इलाहाबाद HC जमीन को तीन पार्टी को बांटने का दिया था फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में विवादित जमीन को तीन पार्टी के बीच बांटने का फैसला दिया था. ये तीन पार्टी थे निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड. कोर्ट की नजर में जमीन पर मुसलमानों का जो हक है उसका प्रतिनिधित्व सुन्नी वक्फ बोर्ड करता है जो सुप्रीम कोर्ट में केस का एक पक्ष है. शिया वक्फ बोर्ड 1945 में सुन्नी वक्फ बोर्ड से केस हार गया था इसलिए कानूनन सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या मामले में बोलने का हक है. बता दें कि इस केस में सुन्नी वक्फ बोर्ड ही असल पार्टी है.