हिन्दुस्तान का एक ऐसा अनोखा गांव जहां घर-घर वास करते हैं भगवान भोले नाथ

नई दिल्ली: शिव आदि हैं…शिव अनंत हैं…सृष्टि के कण-कण में बसे हैं शंकर. लेकिन आज स्पेशल करसपॉन्डेंट में कहानी ऐसे गांव की जहां के हर पत्थर में महादेव दिखते हैं. कहीं त्रिशूल के रूप में तो कहीं ओंकार के स्वरूप में हर जगह भोले नाथ दिखते हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक हिन्दुस्तान का एक ऐसा अनोखा गांव है जहां नर्मदा नदीं के किनारे एक गांव बसा है जहां हर शख्स नर्मदा नदी में मिलने वाले उन खास पत्थरों से शिव को गढ़ने के व्यवसाय में लगा है. शिव की शिल्पकारी से ही उनकी रोजी रोटी चलती है. नर्मदा से निकले अनोखे पत्थरों को तराशकर शिव का स्परूप देना ही उनका हर दिन का काम है.
शिव ही उस गांव के लोगों के लिए जीने का एकमाकत्र सहारा हैं. बता दें कि मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में यह हिन्दुस्तान का इस अनोखा गांव नाम बंकावा है. बता दें कि गांव के घर घर में लोग पत्थरों से भगवान भोले नाथ को गढ़ने में लगे हैं.
बता दें कि पत्थरों से शिवलिंग बनाना ही इस गांव के लोगों का पेशा है. यही इनकी कमाई का जरिया है. बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक और नौजवानों से लेकर महिलाएं तक. सभी बड़ी शिद्दत से शिवलिंग बनाते हैं और यही वजह है की जब आप गांव की गलियों में गुजरेंगे तो आपको जगह जगह पत्थर कटते और उनसे शिवलिंग बनते नजर आ जाएंगे.
खरगोन के बंकावा गांव में जहां तक नजर जाएगी वहां तक नजर आएंगे सिर्फ और सिर्फ शिवलिंग छोटे, बड़े हर आकार के शिवलिंग.इन शिवलिंग को बनाना कोई आसान काम नहीं है. इन्हें बनाना बड़ी ही मेहनत और हुनर का काम है.
सालों से इन्हें बनाने के काम में लगे सधे हुए हाथ ही इन्हें ऐसा रुप दे पाते हैं. एक पत्थर को शिवलिंग बनाने तक की इस कारीगरी की शुरूआत होती है नर्मदा नर्मदा नदी के तट से सबसे पहले नावों में बैठ कर नर्मदा के तटों से खास पत्थरों को ढूंढा जाता है.
इस तलाश में पत्थरों पर बने खास निशान का विषेश ध्यान रखा जाता है. जैसे इनका रंग उन पर बनीं धारियां. नर्मदा नदी से निकले इन खास पत्थरों को इन पर बने विषेश चिन्हों की वजह ही नर्मदेश्वर बोला जाता है. इसके पीछे पौराणिक कथाएं भी हैं. इस इलाके में मिलने वाले पत्थरों के खास होने के पीछे एक वजह ये भी है यहां नर्मदा नदी ऊं के आकार में बहती है.
यहां पर बने शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि जब इन्हें तराशा जाता है तो इनमें शिव का कोई ना कोई प्रतीक चिन्ह उभर आता है. नर्मदा नदी से पत्थरों को निकालने के बाद इन्हें किनारे लाकर तोड़ने का काम शुरू होता है फिर उनकी कटाई करके उनको शिवलिंग का आकार दिया जाता है. शिवलिंग का आकार देने के बाद कारीगर शिवलिंग पर पॉलिस का काम शुरू करते हैं. शिवलिंग पर मोम की पॉलिस की जाती है. ज्यादातर ये काम महिलाओं के जिम्मे होता है.
खरगौन के बंकावा गांव मे बनने वाले ये शिवलिंग इतने खास होते हैं कि यहां से शिवलिंग देश विदेश के शिवालयों तक जाते हैं. वजह ये है कि यहां के हर पत्थर में बाबा भोले अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाते हैं. यहां बने उन शिवलिंग की बाजार में बहुत डिमांड है जिनमें ओंकार, त्रिशूल और जनेऊं के चिन्ह होते हैं.
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