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जब बाल विधवा शिवरानी से शादी कर प्रेमचंद ने समाज को दिखाया था ‘ठेंगा’

ऐसा हो ही नहीं सकता कि हिंदी साहित्य की बात हो और प्रेमचंद का नाम ना लिया जाए. हिंदी साहित्य में उपन्यास सम्राट के नाम से मशहूर प्रेमचंद की आज जयंती है. 31 जुलाई 1880 को जन्म लेने वाले प्रेमचंद हिंदी साहित्य के महान लेखकों में से एक हैं.

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  • July 31, 2017 4:34 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली : ऐसा हो ही नहीं सकता कि हिंदी साहित्य की बात हो और प्रेमचंद का नाम ना लिया जाए. हिंदी साहित्य में उपन्यास सम्राट के नाम से मशहूर प्रेमचंद की आज जयंती है. 31 जुलाई 1880 को जन्म लेने वाले प्रेमचंद हिंदी साहित्य के महान लेखकों में से एक हैं. 
 
प्रेमचंद ने अपनी जिन रचनाओं से जहां देश और दुनिया का दिल जीता था वहीं उन्होंने अपने जीवन में भी अपनी रचनाओं के मूल भाव को उतारा था. बेहद सरल स्वभाव के प्रेमचंद ने ना केवल अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया ही था बल्कि उन्होंने अपने कर्मों से भी समाज के कई बंधनों को तो़ड़ा था. उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से शादी करके समाज की कुरीतियों को ठेंगा दिखाया था.
 
बेहद ही अभाव में जीवन व्यतीत करने वाले लेखक प्रेमचंद का असली नाम धनपतराय श्रीवास्तव था, लेकिन उन्हें मुंशी प्रेमचंद और नवाब राय के नाम से जाना जाता है. उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था.
 
हिंदी साहित्य का बड़ा हिस्सा तो प्रेमचंद ही हैं. प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया. आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी. उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा. वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा विद्वान संपादक थे. 
 
प्रेमचंद का प्रारंभिक जीवन बेहद ही संघर्षमय रहा. जब वह सात साल के थे तब उनकी मां का देहांत हो गया था. जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली, लेकिन सौतेली मां से प्रेमचंद को कभी भी ममता नहीं मिली. वह महज 14 साल के थे तभी उनके पिता का भी निधन हो गया. जिसके बाद प्रेमचंद के ऊपर दुखों और जिम्मेदारियों का पहाड़ टूट पड़ा था, लेकिन प्रेमचंद ने हिम्मत नहीं हारी, वह अपनी राह पर आगे बढ़ते चले गए. 
 
1898 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद प्रेमचंद एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए. नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी. 1910 में उन्‍होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और 1919 में बीए पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए.
 
उनका पहला विवाह उन दिनों की परंपरा के अनुसार पंद्रह साल की उम्र में हुआ जो सफल नहीं रहा, जिसके बाद प्रेमचंद ने दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया. 
 
प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने कई लेख, उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, सम्पादकीय, संस्मरण आदि लिखे. उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की, लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी.
 
सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मंगलसूत्र इनके मुख्य उपन्यास हैं. प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर, 1936 को हुआ, इस वक्त वह ‘मंगलसूत्र’ उपन्यास की रचना कर रहे थे, लेकिन उसे पूरा नहीं कर सके. जिसे बाद में उनके बेटे अमृत राय ने पूरा किया. 
 
प्रेमचंद ने सप्‍त सरोज, नवनिधि, प्रेमपूर्णिमा, प्रेम-पचीसी, प्रेम-प्रतिमा, प्रेम-द्वादशी, समरयात्रा, मानसरोवर: भाग एक व दो और कफन जैसी कहानियां लिखीं. ‘संग्राम’, ‘कर्बला’ और ‘प्रेम की वेदी’ प्रेमचंद के नाटक हैं. 
 

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