पटना: बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद गुरुवार को नीतीश कुमार ने सीएम पद और सुशील मोदी ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली. उसके बाद आज नीतीश सरकार ने 26 मंत्रियों के साथ अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया.
मंत्रिमंडल के विस्तार में जातीय समिकरण का भी खासा ध्यान रखा गया है. सबसे बड़ी बात ये है कि बिहार के 26 मंत्रियों में केवल एक मुस्लिम विधायक को मंत्री बनाया गया है. मतलब साफ है कि बीजेपी का असर बिहार कैबिनेट में भी दिखने लगा है.
बिहार मंत्रिमंडल में इस बार सबसे अधिक 9 सवर्ण विधायक को मंत्री बनाया गया है. जिसमें तीन तो भूमिहार हैं. स्वभाविक है यहां भी बीजेपी को फायदा ही हुआ है, क्योंकि बीजेपी पर सवर्णों का भरोसा है. दलित से 5 विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है. क्योंकि सीएम नीतीश कुमार का दलित जातियों पर ज्यादा भरोसा है. अति पिछड़ा वर्ग के 6 विधायकों को मंत्री बनाया गया है. कुर्मी से 1, कोइरी से 2, यादव समुदाय के 3 विधायक को मंत्री बनाया गया है.
नीतीश कुमार के इस नए मंत्रिमंडल पर नजर डाले तो बीजेपी का असर साफ दिख रहा है. बीजेपी के पास बिहार में सवर्णों का बहुत बड़ा वोट बैंक हैं, तो जेडीयू पर ओबीसी, कुर्मी और महादलित का भरोसा बरकरार है. रामविलास पासवास के जरिए दलित भी इस गठबंधन में जुड़ रहे हैं. कुल मिलाकर इस गठबंधन का सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को मिलने जा रहा है.
सवर्णों को इस मंत्रिमंडल में शामिल कर बीजेपी ने खुद को बिहार में पहले से और ज्यादा मजबूत कर लिया है. मंत्रिमंडल में केवल एक महिला चेहरा मंजू वर्मा शामिल हैं. गठबंधन चला तो 2019 में होने वाले चुनाव में इसका फायदा सबसे ज्यादा बीजेपी को मिलने वाला है.
हालांकि राज्य में महादलित का चेहरा बन चुके जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ और आरएलएसपी के विधायाकों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है. अब देखना ये होगा कि इन दो पार्टी के नेताओं को बीजेपी और जेडीयू कैसे संतुष्ट करती है.
ऐसे समझे नीतीश कैबिनेट के जातीय समिकरण को
भूमिहार- 3, यादव- 3, ब्राह्मण- 2, कुशवाहा- 3 ,कुर्मी- 2 ,पासवान- 2, धानुक- 2, राजपूत- 2, दलित- 1, मुसहर- 2, बिंद- 1, बनिया- 1, मुस्लिम- 1, मल्लाह- 1, कहार से 1 विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है.