नई दिल्ली: बुधवार को नीतीश कुमार ने महागठबंधन के बंधन से खुद को अलग करके बीजेपी का दामन थाम लिया. नीतीश की इस सियासी चाल ने सबको हक्का-बक्का करके रख दिया. लेकिन ऐसा नहीं है कि नीतीश और बीजेपी के बीच ये गठजोड़ दो या चार दिन से शुरू हुआ. इसकी पटकथा सात महीने से लिखी जा रही थी.
बीजेपी और नीतीश की नजदीकी जनवरी में ही देखने को मिली थी जब गुरू गोविंद सिंह जी के 350वीं जन्म शताब्दी के मौके पर पटना साहिब गुरूद्वारे में पीएम मोदी और नीतीश कुमार साथ-साथ नजर आए थे.
इस दौरान नीतीश कुमार और पीएम मोदी एक दूसरे से खूब हंसकर और हाथों में हाथ डालकर बातें करते हुए कैमरे में कैद हुए थे.
इसके बाद बीजेपी और नीतीश के बीच जमी रिश्तों की बर्फ गलने लगी और दोनों एक दूसरे के करीब आने लगे. विपक्ष में रहते हुए भी पीएम मोदी ने गुरू पर्व पर शानदार आयोजन के लिए नीतीश कुमार को बधाई दी तो नीतीश कुमार ने भी गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए शराबबंदी का फैसला लेने को लिए पीएम मोदी की तारीफ की.
इसके बाद गांधी मैदान में रैली के दौरान नीतीश कुमार ने नोटबंदी का भी समर्थन किया और फिर सर्जिकल स्ट्राइक के फैसले पर भी पीएम मोदी की सराहना की. रैली के कुछ दिनों बाद नीतीश कुमार की बीजेपी नेताओं के साथ मीटिंग हुई और फिर दिल्ली में भी बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से नीतीश कुमार की मुलाकात हुई.
ये भी कहा जा रहा है कि बीजेपी के एक नेता नीतीश कुमार से लगातार संपर्क में थे और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को मामले पर हर अपडेट दे रहे थे. नीतीश कुमार के करीबी मंत्री और तेजस्वी यादव के बीच रक्सौल के एक सरकारी प्रोजेक्ट को लेकर हुए मतभेदों ने भी महागठबंधन के ताबूत में कील का काम किया. राष्ट्रपति चुनावों के लिए अलग-अलग उम्मीदवारों का समर्थन संभवत महागठबंधन की आखिरी कड़ी टूटने का संकेत था.