पटना: सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बिहार के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी के फैसले के खिलाफ लालू यादव की पार्टी आरजेडी ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. लालू की दलील है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सबसे पहले उन्हें सरकार बनाने का न्योता मिलना चाहिए था. हालांकि संविधान के जानकार राज्यपाल के फैसले को सही बता रहे हैं.
क्या है एसआर बोम्मई केस ?
कोर्ट जाने से पहले गुरुवार को लालू ने एसआर बोम्मई केस का हवाला दिया. दरअसल एसआर बोम्मई जनता पार्टी के नेता थे और 1988 से 1989 के बीच कर्नाटक के सीएम रहे थे. 1989 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने कर्नाटक की एस आर बोम्मई की सरकार बर्खास्त कर दी थी. उन्हें विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका नहीं दिया था.
1994 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने बोम्मई मामले में फैसला दिया कि विशेष परिस्थितियों में ही राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल होना चाहिए. हालांकि बिहार का ताजा मामला इससे बिल्कुल अलग है. लालू चाहते थे कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते गवर्नर सबसे पहले उन्हें सरकार बनाने का न्योता देते. लेकिन जानकारों के मुताबिक ये मामला पूरी तरह से राज्यपाल के विशेषाधिकार का है.
क्या कहा था लालू ने ?
रांची में लालू ने कहा था कि आरजेडी के पास सबसे अधिक विधायक है, इस हिसाब से राज्यपाल को सबसे पहले सरकार बनाने के लिए हमको न्यौता देना चाहिए था. हम सदन में बहुमत साबित करते. हमने राज्यपाल से समय भी मांगा था, समय मिला भी. लेकिन उससे पहले बीजेपी और जेडीयू को गठबंधन सरकार बनाने का मौका दे दिया. यह संवैधानिक रुप से सही नहीं है.