नई दिल्ली: राइट को प्राइवेसी मौलिक अधिकार है या नहीं इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संवैधानिक खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि संवैधानिक पीठ सिर्फ ये तय करेगी कि निजता मौलिक अधिकार है या नहीं. संवैधानिक पीठ ने आगे कहा कि हम ये तय नहीं करेंगे कि आधार मौलिक अधिकारों का हनन करता है या नहीं.
दरअसल केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए अटॉर्नी जनरल बार-बार प्राइवेसी की जगह आधार पर बहस करने की मांग कर रही थी जिसपर बैंच ने ये टिप्पणी की.
राइट टू प्राइवेसी मामले में क्या है केंद्र सरकार की दलील?
राइट टू प्राइवेसी मामले में केंद्र सरकार की दलील है कि प्राइवेसी को पूरी तरह से मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता. सरकार ने ये भी कहा है कि कोर्ट को प्राइवेसी का वर्गीकरण करना चाहिए. सरकार का ये भी कहना है कि राइट टू प्राइवेसी के कुछ हिस्सों को मौलिक अधिकारों के तरह संरक्षण दिया जा सकता है. जवाब में कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि आपके हिसाब से किस हिस्से को मौलिक अधिकार माना जा सकता है?
क्या राइट टू प्राइवेसी के लिए राइट टू लिव का उल्लंघन कर सकते हैं?
इससे पहले वर्ल्ड बैंक का हवाला देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वर्ल्ड बैंक का कहना है कि सभी विकासशील देशों को गरीबों के खाने के लिए जारी किए जाने वाले फंड के दुरुपयोग को रोकने के लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल करना चाहिए. अटॉर्नी जरनल ने पूछा कि क्या कोई राइट टू प्राइवेसी को बचाने के लिए राइट टू लिव यानी जीने के अधिकार का उल्लंघन कर सकता है?