नई दिल्ली: चीन-पाकिस्तान से सीमा पर तनाव के बीच भारतीय सेना ने तय किया है कि अब वह विदेशी उपकरणों और हथियारों के स्पेयर के आयात पर निर्भर नहीं रहेगा. दरअसल विदेशी उपकरणों और हथियारों के स्पेयर के आयात में काफी समय लगता है ऐसे में सेना ने लड़ाकू टैंकों और अन्य सैन्य प्रणालियों के महत्वपूर्ण उपकरणों और कलपुर्जों को तेजी से स्वदेशी तरीके से विकसित करने की योजना है.
सेना के एक अधिकारी ने बताया है कि वर्तमान में 60 फीसदी लड़ाकू हथियार विदेशों से आयात किए जाते हैं. इस लिहाज से देश की 41 आयुध फैक्ट्रियों के संगठन ‘दि ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड’ ने लड़ाकू टैंकों और हथियारों के स्पेयर को अगले तीन सालों में 30 फीसदी कम करने का फैसला किया है.
अधिकारी ने बताया कि आयुध महानिदेशक और बोर्ड प्रतिवर्ष 10 हजार करोड़ रुपये कीमत के कलपुर्जे खरीदते हैं. सैन्य बलों को ज्यादातर परेशानी रहती है कि रूस से खरीदे जाने वाले महत्वपूर्ण कलपूर्जों और उपकरणों में बहुत देरी होती है, इससे मॉस्को से खरीदे गए सैन्य उपकरणों की देखरेख काफी प्रभावित हो जाती है. भारत को सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रूस है.
सीमावर्ती चौकियों पर लड़ाकू टैंकों और अन्य सैन्य सामग्री की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार आयुध डायरेक्टर जनरल ने टैंकों और अन्य आयुध प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण सैन्य पार्ट्स स्वदेशी तरीके से विकसित करने की रणनीति बनाने के लिए देश के डिफेंस फर्मों से बातचीत भी शुरू कर दी गई है. अधिकारी ने कहा कि अब आयुध डायरेक्टर जनरल और बोर्ड हर साल 10 हजार करोड़ रुपए कीमत के सैन्य पार्ट्स खरीदते हैं.