नई दिल्ली : दिल्ली में आधी रात अपहरण होता है और जिसको अगवा किया गया उसे भनक तक नहीं लगती. इसके बाद 13 दिन तक दिल्ली पुलिस यूपी के 20 ठिकानों की खाक छानती है. फिर किडनेपर के साथ एनकाउंटर होता है और तब कहीं जाकर पुलिस को कामयाबी मिलती है.
सुनने में अपहरण कांड की ये दास्तान जितनी सीधी समझ आती है उससे कहीं ज्यादा इसमें पेंच हैं. दिल्ली में जिस वक्त इस किडनैप कांड को अंजाम दिया गया उस वक्त डॉक्टर को भी नहीं पता था कि उन्हें किडनैप किया जा रहा है, क्योंकि अपहरण की ये साजिश करीने से बुनी गई थी.
ओला कैब ड्राइवर मेट्रो स्टेशन पर कैब लेकर पहुंचता है. किडनैपिंग से अनजान डॉक्टर खुशी-खुशी कैब में सवार हो जाता है. फिर डॉक्टर को उसकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए कैब निकल पड़ती है और साजिशकर्ताओं को लगता है कि उनका काम हो गया.
गुनाह से पहले गुनहगार यही सोचता है कि वो कानून से बच जाएगा. इस मामले में भी ऐसा ही था. किडनैपर ने गहरी साजिश बुनी थी और पुलिस से बचने का ऐसा इंतजाम किया था कि एक बार के लिए ड़ॉक्टर का अपहरण पुलिस के लिए पहेली बन गया, क्योंकि तकनीक के सहारे आगे बढ़ रही पुलिस पैदल हो चुकी थी, लेकिन कानून से बचना इतना आसान नहीं होता. लिहाजा एकबार फिर गुनहगार सलाखों के पीछे पहुंच गए.
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