नई दिल्ली : भले ही बीजेपी नेता वेंकैया नायडू का देश का उपराष्ट्रपति बनना तय है. जिसको देखते हुये आज उनको एनडीए के हर बड़े नेता ने शुभकामनायें देना शुरू भी कर दिया है लेकिन सिक्के के दो पहलू की तरह इस खबर का भी एक दूसरा पहलू है. सूत्रों की मानें तो खुद वेंकैया नायडू उपराष्ट्रपति बनना ही नही चाहते थे.
लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से उनको मैसेज गया कि अब वो अपनी दूसरी पारी की तैयारियां शुरू कर दें तो नायडू समझ गये कि अब उनकी राजनीतिक पारी की कहानी अंतिम पड़ाव पर आ गई है और उसका लास्ट चैप्टर लिखना शुरू हो गया है. लेकिन सूत्रों के मुताबिक नायडू अभी भी मोदी मंत्रीमंडल का हिस्सा बने रहना चाहते थे लेकिन वो सीधे तौर पर इस प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री मोदी को इनकार ना कर सके.
सूत्रों के मुताबिक अपने राजनीतिक पारी को खत्म होने से बचाने के लिये अंतिम प्रयास के तौर पर नायडू ने एक अलग योजना बनाई और उस योजना के तहत अपने संसदीय बोर्ड के कुछ खास साथी सदस्यों से मदद मांगी. और उनसे गुहार लगाई कि यदि उनके नाम का प्रस्ताव संसदीय बोर्ड की मीटिंग में उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर सामने लाया जाता है तो उस पर अपनी सहमति ना जतायें. जिससे वो उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनने से बच जायें.
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की इच्छा को देखते हुये नायडू का एक भी साथी उनके समर्थन में मीटिंग में सामने नही आया बल्कि उल्टे उनके नाम पर सहमति देते हुये सभी ने नायडू को पार्टी से विदाई की मिठाई भी अपने हाथों से खिला दी. पार्लियामेंट्री बोर्ड के इस फैसले के बाद नायडू के सामने और कोई विकल्प नही बचा था और फिर उन्होंने भी आखिरकार इस फैसले को स्वीकार कर लिया.
हालांकि मिली जानकारी के अनुसार नायडू देश का राष्ट्रपति बनने की इच्छा जरूर रखते थे लेकिन पार्टी आलाकमान ने रामनाथ कोविंद के नाम पर मुहर लगाकर उनकी इस इच्छा पर भी बुलडोजर चला दिया था.
दरअसल नायडू के नाम पर सहमति 13 जुलाई को दिल्ली में झंडेवालान के पास दीनदयाल शोध संस्थान में हुई बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और संघ के सरकार्यवाह भईया जी जोशी और सहसरकार्यवाह डॉ कृष्णगोपाल की मीटिंग में ही बन गई थी.
सूत्रों के मुताबिक तय रणनीति और दक्षिण भारत के राज्यों में बीजेपी का जनाधार बढ़ाने के लिये उपराष्ट्रपति पद के लिये दक्षिण भारतीय उम्मीदवार देने पर सहमति बनी थी, जिसके चलते इस मीटिंग में प्रमुखत: 3 नामों पर चर्चा हुई थी जिसमें केरल से बीजेपी के एकमात्र विधायक ओ राजगोपाल, दक्षिण भारतीय महिला के नाम पर केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमन और कैबिनेट मिनिस्टर वैंकेया नायडू के नाम पर चर्चा हुई.
नियमानुसार देश का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति भी होता है इसलिये इसके लिये एक अनुभवी नेता के तौर पर ओ राजगोपाल और निर्मला का नाम शुरूआती चरण में ही हट गया था. क्योंकि ओ राजगोपाल को राज्यसभा का कोई अनुभव ही नही था और निर्मला सीतारमन अभी पहली ही बार राज्यसभा की सदस्य बनी हैं. इन दोनों के मुकाबले नायडू काफी परिपक्व और मंझे हुये राजनेता के तौर पर सामने आये क्योंकि नायडू को राज्यसभा का भी एक लम्बा अनुभव है, इसके साथ ही नायडू के विरोधी दलों के नेताओं से भी मधुर संबंध रहे हैं.
नायडू की ये खूबियां ही नायडू की उपराष्ट्रपति ना बनने की इच्छा पर भारी पड़ गई और आखिरकार उनको अपने प्रधानमंत्री, आलाकमान और संघ की इच्छा के आगे अनुशासित स्वयंसेवक की तरह समर्पण करना पड़ा.