नई दिल्ली: देश बहाकर ले जाते पानी का भी और देश का पैसा पानी की तरह बहानेवालों का भी जून जुलाई का महीना आएगा तो साथ बारिश लाएगा ये सब जानते हैं.बारिश आएगी तो शहर की सड़कों पर नदियां बहती दिखेंगीं और जो देश की नदियां हैं वो यूं उफान पर होंगीं कि कई गांव बाढ़ में बह जाएंगे.
घरों में पानी घुसेगा, गाडियां बहेंगीं, हादसे होंगे लोग अपना डूबता गांव और घर छोड़कर भागेंगे. इनमें से ऐसा क्या है जो हर साल नहीं होता और इनमें से ऐसा क्या है जो हमें और आपको पता नहीं लेकिन आज प्रश्नकाल में सवाल ये कि जब सब पता है तो फिर हर साल का नुकसान क्यों मुसीबत से निपटने का इंतजाम क्यों नहीं ?
आप सोच भी सकते हैं क्या कि हर साल बारिश और बाढ़ देश का 2.5 लाख करोड़ बहा ले जाते हैं और इनमें दोष कुदरती कम इंसानी ज्यादा है. आज प्रश्नकाल में आपको ये भी दिखाएंगे कि बारिश और बाढ़ की मुसीबत से दुनिया कैसे लड़ती है. कैसे नुकसान को फायदे में बदलती है.
कैसे हिन्दुस्तान में बाढ़ और बारिश से निपटने की प्लैनिंग होती तो सड़कें बन सकती थीं, मेट्रो चल सकती थी और भी न जाने क्या क्या हो सकता था. लेकिन पहले ये देख लीजिए कि अभी हो क्या रहा है. ये तस्वीरें बदलती क्यों नहीं. साल दर साल ये बाढ़ और बर्बादी से हालात बदतर क्यों होते जा रहे.
एक अनुमान कहता है कि हिन्दुस्तान में हर तरह की प्राकृतिक आपदा से होने वाली तबाही ढाई लाख करोड़ तक पहुंच चुकी है. ढाई लाख करोड़. और जो हालात दिख रहे हैं.उसे देखकर कहीं से नहीं लगता कि हाल के दिनों में इसे रोक पाने का कोई ठोस प्लान है या कह लीजिए कि आपकी कोई प्लानिंग ही नहीं.