Advertisement
  • होम
  • देश-प्रदेश
  • राष्ट्रपति चुनाव : वोटिंग कल, पढ़ें चुनाव की पूरी प्रक्रिया, साथ ही किसका पलड़ा है भारी

राष्ट्रपति चुनाव : वोटिंग कल, पढ़ें चुनाव की पूरी प्रक्रिया, साथ ही किसका पलड़ा है भारी

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन 17 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग होनी है. इस चुनाव को लेकर दोनों धड़े अपने-अपने उम्मीदवार की जीत का दावा कर रहे हैं.

Advertisement
  • July 16, 2017 9:32 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली : संसद के मानसून सत्र के पहले दिन 17 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग होनी है. इस चुनाव को लेकर दोनों धड़े अपने-अपने उम्मीदवार की जीत का दावा कर रहे हैं. लेकिन आइए जानते है, दोनों उम्मीदवारों के बारे में, राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया और साथ ही इस चुनाव में किसका पलड़ा भारी है.
 
कौन हैं मीरा कुमार और रामनाथ कोविंद?
 
मीरा कुमार 
पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार 1973 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुईं. करीब 80 के दशक में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और 1985 में पहली बार बिजनौर से सांसद चुनी गईं.  मीरा कुमार 1990 में कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्य और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की महासचिव चुनी गईं. 1996 में वो दूसरी बार सांसद बनीं और फिर साल 1998 में भी उन्होंने चुनाव जीता. साल 2004 में उन्होंने बिहार के सासाराम से लोकसभा सीट जीती. 
 
साल 2004 में उन्हें यूपीए सरकार में सामाजिक न्याय मंत्रालय दिया गया. साल 2009 में वो पांचवी बार लोकसभा चुनाव जीतीं और उन्हें लोकसभा स्पीकर बनाया गया.दूसरी तरफ एनडीए की तरफ से रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति चुनाव के मैदान में उतारा गया है. 
 
 
रामनाथ कोविंद
रामनाथ कोविंद उनका घर कानपुर देहात की डेरापुर तहसील के गांव परौख में हैं. अमित शाह से उनकी नजदीकियां तब बढ़ीं जब वो यूपी के प्रभारी बने. उन दिनों रामनाथ कोविंद भाजपा के यूपी अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी की टीम में महामंत्री थे. उनको बिहार का राज्यपाल चुनना इसका सुबूत था. दरअसल रामनाथ को काफी मेधावी माना जाता है. 
  
पढ़ाई के दौरान वो आईएएस की तैयारी कर रहे थे, तीसरी बार में आईएएस अलाइड सर्विसेज के लिए उनका सलेक्शन हुआ भी, लेकिन उन्होंने ज्वॉइन नहीं किया. पढ़ाई के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से वकालत शुरू कर दी, यहीं से उनकी मुलाकात मोरारजी देसाई से हुई, उनके सचिवों की टीम में भी काम किया. 
 
जनता पार्टी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जूनियर काउंसलर के बतौर काम किया. फिर बीजेपी से उनकी नजदीकियां बढ़ने लगीं. 1993 और 1999 में बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा में एमपी बनाकर भी भेजा. बीजेपी ने उन्हें अनुसूचित जाति का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया.
 
 
राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया
राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज करता है. संविधान के आर्टिकल 54 के अनुसार जनता अपने प्रेजिडेंट का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके वोट से चुने गए लोग करते हैं. इस चुनाव में सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के विधायकों और लोकसभा तथा राज्यसभा के सांसदों को वोट डालने का अधिकार होता है.
 
वहीं संसद के नॉमिनेटेड मेंबर वोट नहीं डाल सकते. साथ ही राज्यों की विधान परिषदों के सदस्यों को भी वोटिंग का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे जनता द्वारा चुने गए सदस्य नहीं होते. 
 
जनप्रतिनिधियों के वोट की कीमत
लोकसभा और राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या को मिला दिया जाए तो इसका आंकड़ा 776 पहुंच जाता है. यानि 776 सांसद इसमें वोट दे सकते हैं. इन सांसदों के पास कुल 5,49,408 वोट हैं, जबकि पूरे देश में 4120 विधायक हैं, जिनके पास 5,49, 474 वोट हैं. इस तरह कुल वोट 10,98,882 हैं और जीत के लिए आधे से एक ज्यादा यानी 5,49,442 चाहिए होते हैं.
 
MLA की वोट की कीमत
विधायकों के मामले में वो जिस राज्य का विधायक हो, उसकी आबादी देखी जाती है. इसके अलावा प्रदेश के एमएलए सदस्यों की संख्या भी मायने रखती है. वोट की कीमत निकालने के लिए राज्य की जनसंख्या को विधायकों की कुल संख्या सेभाग किया जाता है. उसके बाद निकले परिणाम को 1000 से फिर भाग किया जाता है. अंत में जो टोटल निकलता है, वो विधायक के वोट की कीमत होती है.   
 
MP के वोट की कीमत
सांसदों के वोट की कीमत अलग ढंग से तय की जाती है. पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के इलेक्टेड मेंबर्स के वोटों की कीमत को जोड़ा जाता है. परिणाम को राज्यसभा और लोकसभा के इलेक्टेड मेंबर्स की कुल संख्या से भाग किया जाता है. अंत में आया नंबर मिलता है, वह एक सांसद के वोट की कीमत होता है.
 
कोविंद और मीरा में किसका पलड़ा भारी
अगर आंकड़ों की बात करें तो फिलहाल राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक मंडल में वोटों के मामले में एनडीए को बढ़त हासिल है. एनडीए के 5.27 लाख वोट हैं वहीं और यूपीए के 3.53 लाख वोट है. यानि आंकड़ों के आधार पर कांग्रेसनीत यूपीए एनडीए से 1.74 लाख वोट पीछे है. अगर बीजेपी विरोधी पार्टियों और यूपीए के वोट एक साथ जोड़ दें तो भी एनडीए 93 हजार वोटों से आगे दिखता है.  

Tags

Advertisement