जानिए, कौन थी रुखसाना जिसका आखिरी खत में भी जिक्र करना नहीं भूले कैप्टन विजयंत थापर

नई दिल्ली: ऐ मेरे वतन के लोगों…जरा आंख में भर लो पानी…जो शहीद हुए हैं उनकी… जरा याद करो कुर्बानी… लता मंगेशकर का गाया ये गाना जब भी कहीं सुनाई देता है तो हर भारतवासी की आंखें नम हो जाती है. हमें याद आते हैं हमारे वो जवान जिन्होंने हमारे कल के लिए अपना आज कुर्बान कर दिया. वो जवान जो जिस्म तो क्या रूह तक को गला देने वाली सर्दी में बर्फ की चोटियों पर हमारी सीमाओं की दुश्मनों से रक्षा कर रहे हैं ताकि हम आराम से अपने घरों में रजाई में सो सकें. ऐसे वीर जवानों के बलिदान को भारत का नागरिक ना भूला है और ना ही भूलेगा.
ऐसे ही एक बहादुर जवान थे कैप्टन विजयंत थापर जिन्होंने महज 22 साल की उम्र में देश के लिए लड़ते हुए अपनी जान निछावर कर दी. कैप्टन विजयंत थापर कारगिल के युद्ध में शहीद हुए थे. कारगिल की उनकी आखिरी लड़ाई से पहले उन्होंने अपने परिवार को एक खत लिखा था. वो खत आज हम आपको पढ़ाने जा रहे हैं.
परिवार को लिखे आखिरी खत में कैप्टन विजयंत थापर ने लिखा था.
प्रिय पापा, मम्मी, बिरदी और ग्रैनी,
जबतक आपको ये खत मिलेगा तबतक मैं आप लोगों को आसमान से देख रहा होउंगा और अप्सराओं की मेहमान नवाजी का लुत्फ उठा रहा होउंगा. मुझे कोई पछतावा नहीं है. यहां तक की अगर मैं कभी दोबारा इंसान बना, तो मैं सेना में भर्ती होउंगा और देश के लिए लडूंगा. अगर आप आ सकते हैं तो प्लीज आइए और देखिए कि भारतीय सेना आपके बेहतर कल के लिए किन दुर्गम जगहों पर दुश्मनों से लड़ाई लड़ रही है.
जहां तक यूनिट का संबंध है तो इस बलिदान को सेना में भर्ती हुए नए जवानों को जरूर बताया जाना चाहिए. मेरे शरीर का जो भी हिस्सा निकालकर इस्तेमाल किया जा सकता है उसे निकाल लिया जाना चाहिए. अनाथालयों में दान करते रहिएगा और सुखसाना को हर महीने 50 रूपये जरूर भेज दीजिएगा और योगी बाबा से मिलते रहिएगा.
बेस्ट ऑफ लक बिरदी, इस बंदे की कुर्बानी को कभी मत भूलना. मम्मी-पापा आप गर्व करना.
मामाजी मैने जो भी गलत किया हो उसे माफ करना. ओके अब समय है अपनी असाल्ट पार्टी को ज्वाइन करने का.
बेस्ट ऑफ लक टू यू ऑल
लिव लाइफ किंग साइज
रॉबिन
29 जून 1999 को 2 राजपूताना राइफल्स की टुकड़ी का नेतृत्व करते 22 साल के कैप्टन विजयंत थापर दुश्मनों पर टूट पड़े और टोलोलिंक की चोटी पर भारत का तिरंगा लहरा दिया. इस दौरान कई गोलियां लगने की वजह से वो वीरगति को प्राप्त हुए. मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
अपने आखिरी खत में उन्होंने जिस रुखसाना का जिक्र किया है, जाहिर है आप उसके बारे में जानना चाहेंगे.
रुखसाना और विजयंत थापर का रिश्ता जानकर कम से कम उन लोगों का मुंह जरूर बंद हो जाएगा जिन्हें लगता है कि कश्मीर में सेना वहां के लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करती है.
रुखसाना दरअसल 6 साल की कश्मीरी बच्ची है जिसके माता पिता को सलाफी आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था. अपने माता-पिता की मौत का रुखसाना के जेहन पर इतना गहरा असर पड़ा कि वो सदमें में चली गई. वो बात करना भूल गई.
रुखसाना से कैप्टन थापर की मुलाकात गांव के एक स्कूल में हुई. उस नन्ही सी बच्ची को सदमें में देखकर कैप्टन थापर को बहुत दुख हुआ और उन्होंने तय किया वो इस बच्ची के चेहरे पर फिर से मुसकान लाकर रहेंगे.
लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. टोलोलिंक पर भारी गोलीबारी हो रही थी और कैप्टन थापर की कंपनी टोलोलिंक पर कब्जा करने के लिए दुश्मनों से दिन रात युद्ध कर रही थी. कैप्टन विजयंत थापर टाइगर हिल और टोलोलिंक के पास कनॉल कॉम्पलेक्स में 22 जून 1999 को दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए. मगर शहीद होने से पहले उन्होंने अपने दोस्त और कंपनी कमांडर मेजर पदंपनी आचार्य के साथ मिलकर टोलोलिंक पर तिरंगा गाड़ दिया.
कैप्टन विजयंत थापर  परिवार को लिखे अपने आखिरी खत में भी रुखसाना का जिक्र करना नहीं भूले. उन्होंने अपने परिवार से कहा कि वो रुखसाना को प्रति महीना 50 रूपये भेजते रहें. गौरतलब है कि 1999 में 50 रूपये की कीमत आज के मुकाबले कहीं ज्यादा थी. उनके परिवार ने भी हमेशा ख्याल रखा कि कैप्टन विजयंत थापर की इच्छा के मुताबिक हर महीने रुखसाना तक पैसे पहुंच जाएं. करीब एक दशक के बाद वो रुखसाना से व्यक्तिगत रूप से भी मिले. आपको जानकर खुशी होगी कि रुखसाना अब 16 साल की हो चुकी है और वो उर्दू, इंग्लिश और कश्मीरी भाषा पढ़ लिख और बोल सकती है.
कैप्टन थापर के परिवार ने रुखसाना को एक मोबाइल फोन भी गिफ्ट किया ताकि वो उनसे कभी भी बात कर सके. कैप्टन थापर के पिता कर्नल वी एन थापर भी फौजी रहे हैं. उनके मुताबिक रुखसाना को सबकुछ याद है और वो विजयंत थापर को बहुत याद करती है और उन्हें उन तमाम चीजों के लिए धन्यवाद देती है जो उन्होंने उसके लिए किया.
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