नई दिल्ली. दो साल या उससे अधिक की सज़ा का सामना कर रहे लोगों के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी के सवाल पर चुनाव आयोग के गोल-मटोल जवाब से सुप्रीम कोर्ट भड़क गया है. कोर्ट ने आयोग को फटकार लगाते हुए कहा कि वो हां या ना में बताए कि ऐसे लोगों को बैन करना है या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वो अपना पक्ष साफ क्यों नही करता कि दो वर्ष या इससे अधिक की सजा पाने वालों पर आजीवन चुनाव लडऩे की पाबंदी का वो समर्थन करता है या नही.
कोर्ट ने कहा कि आयोग ने अपने हलफ़नामे में कहा कि वो याचिका का समर्थन करता है लेकिन सुनवाई के दौरान कह रहा है कि उसने बस राजनीति से अपराधीकरण की मुक्ति का समर्थन किया है. इसका क्या मतलब निकाला जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा- “आप इस पर कहना क्या चाहते हैं? आप खमोश क्यों हैं? ये कोई विकल्प नहीं होता. देश के एक नागरिक ने याचिका दाखिल की है और कहा है कि ऐसे लोगों पर आजीवन पाबंदी लगानी चाहिए. आप इसका समर्थन करते हैं या विरोध, जो भी है, इसका जवाब हां या ना में दें”.
कोर्ट में 18 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई होगी जब चुनाव आयोग को अपना रुख और साफ करना होगा और कोर्ट को सीधे-सीधे ये बताना होगा कि वो 2 साल से ज्यादा सजा पा चुके लोगों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के पक्ष में है या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें आपराधिक मामलों में दो वर्ष या इससे अधिक की सजा पाने वालों पर आजीवन चुनाव लडऩे की पाबंदी लगाने की अपील की गई है.
याचिका में राजनेताओं के ऐसे मामलों का ट्रायल एक साल के अंदर पूरा करने के लिए विशेष अदालत का गठन करने की भी मांग की गई है. याचिका में चुनाव लडऩे के लिए अधिकतम उम्र और न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करने की भी मांग की गई है.
इससे पहले केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा था कि वो आपराधिक मामले में दोषी नेताओं के चुनाव लडऩे पर आजीवन पाबंदी के पक्ष में नहीं है. सरकार का कहना था कि इस मामले में कोर्ट को दखल देने की जरूरत नहीं है.
सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि दोषियों की अयोग्यता को लेकर पहले ही जनप्रतिनिधित्व कानून में पर्याप्त प्रावधान हैं. ऐसे में और प्रावधान जोडऩे की जरूरत नहीं है.
सरकार ने कहा था कि आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को राजनीति से दूर रखने के लिए पिछले कुछ समय से कानून प्रभावी हैं जिससे उद्देश्य पूरा हो रहा है.
सरकार ने कहा था कि संवैधानिक कोर्ट को तभी दखल देना चाहिए कि जब जनहित के किसी मामले में विधायिका ने काम न किया हो. सरकार ने कहा था कि यह मसला न्यायिक परीक्षण के दायरे से बाहर है. सांसद और विधायकों की अयोग्यता को लेकर पहले ही संवैधानिक और कानूनी प्रावधान हैं इसलिए अयोग्यता को लेकर और पाबंदी उचित नहीं है.
मौजूदा प्रावधान के तहत अगर किसी को दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की सजा होती है तो उस पर सजा पूरी करने के छह वर्ष बाद तक चुनाव लडऩे पर पाबंदी है.