नई दिल्ली : कल यानी कि सोमवार को बाबा बर्फानी के दर्शन कर वापस लौट रहे बस में सवार यात्रियों को नहीं पता था कि रास्ते में उनके साथ इतनी बड़ी अनहोनी हो जाएगी. कल रात सवा आठ बजे के करीब अनंतनाग में आतंकियों ने दर्शन कर वापस लौट रहे बस को निशाना बनाया और अंधाधुंध गोलियां बरसाईं. इस आतंकी हमले में 7 लोगों की मौत हो गई और 15 घायल हो गये.
मगर इस हमले में अच्छी बात ये देखने को मिली कि अगर इस बस के ड्राइवर ने अपनी सूझबूझ का परिचय नहीं दिया होता तो शायद मरने वालों की संख्या भयावह होती. बस के ड्राइवर ने अपनी जान की परवाह किए बगैर ताबड़तोड़ हो रही फायरिंग के बीच गाड़ी को आगे बढ़ाता रहा है और इस तरह से ड्राइवर ने करीब 50 से अधिक लोगों की जान बचाकर एक मिसाल कायम कर दिया.
घटना के बाद से कई तरह की बातें सामने आ रही हैं. हर कोई उस कायरतापूर्ण हमले की हकीकत और उस पूरी घटना के बारे में जानना चाहता है. मगर इंडिया न्यूज पर खुद 50 से अधिक लोगों की जान बचाने वाले जांबाज ड्राइवर सलीम शेख ने अपनी जुबानी बयां किया है. तो चलिए जानते हैं कि अमरनाथ यात्रा के दौरान अनंतनाग में हुए आतंकी हमले की कहानी, सिर्फ और सिर्फ जांबाज सलीम की जुबानी.
सलीम की मानें तो उनकी बस बाबा बर्फानी के दर्शन कर लौट रही थी. उन लोगों ने 8 तारीख को बाबा बर्फानी के दर्शन किये. उसके अगले दिन वो श्रीनगर पहुंचे और वहां पर साइट सीन किया. उसके कल होकर वहां से शाम चार बजे श्रीनगर से निकले ही थे कि थोड़ी दूर पर उनकी गाड़ी पंचर हो गई. इस पंचर बनाने में दो-ढाई घंटे लग गये.
हालांकि, सलीम का कहना है कि वे जब श्रीनगर से चले थे तब उनके साथ तीन-चार गाड़ियां साथ थी, मगर गाड़ी पंचर हो जाने के कारण उनकी गाड़ी औरों से अलग हो गई. रजिस्ट्रेशन के सवाल पर सलीम ने कहा कि उन्होंने जम्मू कैंप में गाड़ी का रजिस्ट्रेशन कराया था और वहां से मिलिट्री के साथ ही निकले थे, मगर उन्हें श्रीनगर साइट सीन के लिए रुकना था इसलिए सेक्यूरिटी से से उनकी गाड़ी अलग हो गई थी.
सलीम के मुताबिक, पंचर होने के कारण हमारी गाड़ी और गाड़ियों से अलग हो गईं. हम सभी श्रीनगर से वैष्णो देवी जा रहे थे. हमारा प्लान था अनंतनाग जवाहर टर्नल से उधम पुर होते हुए वैष्णो देवी जाना. वैष्णो देवी का दर्शन कर हमलोगों का शिमला जाने का प्लान था. मगर अनंतनाग से दो किलोमीटर पहले ही अचानक से बस पर दाहिने तरफ से अंधाधुंध फायरिंग होने लगी. आतंकियों ने आगे से कांच पर गोली मारी, जिससे मैं घायल हो गया. बस में चीखें गुंजने लगीं. दो-तीन मिनट के बीच में ही इतनी तेज फायरिंग हुई कि किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.
आगे उन्होंने कहा, ‘मेरे मन में उस वक्त बस यही था कि किसी तरह खुद के साथ-साथ सबकी जान बच जाए. कुछ लोग गाड़ी रोकने को कह रहे थे तो कुछ लोग बढ़ाने को. मैंने गाड़ी आगे बढ़ाना ही उचित समझा. गोलियों की बौछारों के बीच मैंने गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और 70 से 80 किलोमीटर की रफ्तार से गाड़ी को भगाने लगा. कुछ दूर जाकर मुझे दो-तीन मिलिट्री के लोग दिखे, मगर मैंने सोचा ये दो तीन लोग आतंकियों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे. इसलिए मैं गाड़ी बढ़ाता रहा.’
हालांकि, कुछ दूर जाने के बाद सलीम को कैंप मिला जहां पर उन्होंने गाड़ी रोकी. सलीम की मानें तो उन्होंने केबिन में झूक कर गाड़ी चलाई. इसमें बस मालिक के बेटे और कंडक्टर को भी गोली लगी. सलीम ने खुद कहा कि उस वक्त उनके दिमाग में बस एक ही बात चल रही थी कि किसी तरह उन लोगों को मिलिट्री मिल जाए और उनलोगों की जान बचा जाए.
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