बोइंग 777 उड़ाने वाली दुनिया की इस यंगेस्ट महिला कमांडर की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं

ऐसी बहुत सी कहानी हमारे आस-पास होती हैं, जो हमें ये एहसास कराती हैं कि हमें कभी अपने सपने को मरने नहीं देना चाहिए. अगर हमारी इच्छा शक्ति मजबूत हो तो कोई भी सफलता पाई जा सकती है. चाहे वो कठिन और लंबी क्यों न हो. कुछ ऐसी ही सफलता की कहानी है अन्नी दिव्या की. दिव्या दुनिया की सबसे यंगेस्ट महिला कमांडर हैं, जो बाइंग 777 विमान उड़ाती हैं.

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बोइंग 777 उड़ाने वाली दुनिया की इस यंगेस्ट महिला कमांडर की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं

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  • July 6, 2017 4:37 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली : ऐसी बहुत सी कहानी हमारे आस-पास होती हैं, जो हमें ये एहसास कराती हैं कि हमें कभी अपने सपने को मरने नहीं देना चाहिए. अगर हमारी इच्छा शक्ति मजबूत हो तो कोई भी सफलता पाई जा सकती है. चाहे वो कठिन और लंबी क्यों न हो. कुछ ऐसी ही सफलता की कहानी है अन्नी दिव्या की. दिव्या दुनिया की सबसे यंगेस्ट महिला कमांडर हैं, जो बाइंग 777 विमान उड़ाती हैं. 
 
पठानकोट में जन्मीं दिव्या बचपन से ही पायलट बनना चाहती थीं. हालांकि, इस लक्ष्य को हासिल करना उनके लिए इतना आसान नहीं था. मगर उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और कठिन लगन-परिश्रम से अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया. उन्होंने खुद अपनी सफलता की कहानी को हिंदुस्तान टाइम्स के साथ बयान किया है. 
 
संघर्षपूर्ण रहा शुरुआती सफर :  
पठानकोट में जन्मीं दिव्या के पिता आर्मी में थे और वे वहीं पोस्टेड थे. हालांकि, वॉलंटरी रिटायरमेंट के बाद उनका परिवार विजयवाड़ा बस गया. दिव्या की स्कूल की पढ़ाई विजयवाड़ा में ही हुई. वो बचपन से ही पायलट बनना चाहती थीं और उनकी इस बात के लिए दूसरे बच्चे इनका मजाक उड़ाया करते थे. उन्होंने बताया कि उस वक्त उन पर इंजीनियर या डॉक्टर बनने के लिए दवाब बनाया जाता था. 
 
दोस्त और रिश्तेदार पायलट बनने के फैसले के खिलाफ :
हालांकि, वो लक्की रहीं कि उनके पैरेंट्स कभी उन पर ये दवाब नहीं बनाते थे. उनके माता-पिता काफी सपोर्टिव और प्रोग्रेसिव सोच के थे. उनकी मां उनका हमेशा हौसला बढ़ाया करती थीं. मगर उनके रिश्तेदार और दोस्त हमेशा उनके पायलट बनने के निर्णय के खिलाफ रहते थे. उनका कहना है कि दुख की बात ये है कि आज भी महिलाओं का पायलट जैसे प्रोफेशन में आना अच्छा नहीं माना जाता.
 
साधारण परिवार से आती हैं दिव्या :
दिव्या साधारण परिवार से आती हैं और इनके परिवार ने फिनांसियल संकट का भी सामना किया है. दिव्या की मानें तो जब वो विजयवाड़ा में बड़ी हो रही थीं, तब वो इंग्लिश लिख-पढ़ लेती थीं, मगर उनके लिए इंग्लिश में बोलना एक कठिन चुनौती थी. हालांकि, 12वीं के बाद जब 17 साल की थीं, उत्तर प्रदेश के फ्लाइंग स्कूल इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी में उनका एडिमिशन हो गया. इस पढ़ाई के लिए उनके परिवार ने कर्ज लिया था. 
 
खराब अंग्रेजी के कारण लोग मजाक उड़ाते थे : 
एक छोटे से शहर से एक बड़े शहर का सांस्कृतिक परिवर्तन उनके लिए काफी भारी था. उन्हें इग्लिश में बोलने और उस माहौल में एडजस्ट करने में कठिनाई भी हुई. आपको जानकर हैरानी होगी कि दिव्या की खराब अंग्रेजी का लोग मजाक उड़ाया करते थे और ये बात उन्हें काफी हर्ट करती थीं. कई बार तो उन्होंने अकादमी छोड़ने और घर जाने का मन बना लिया, मगर वो ऐसा नहीं कर पाईं. उन्होंने अपने पैरेंट्स की सपोर्ट से स्कॉलरशिप जितने के लिए काफी कठिन मेहनत कीं.  
 
बोइंग 777 चलाना जैसे सपना साकार हो गया :
19 साल की उम्र में उन्होंने अपनी ट्रेनिंग पूरी कर लीं. ट्रेनिंग खत्म होने के तुरंत बाद ही उन्हें एयर इंडिया में नौकरी मिल गई. इसी दौरान वो पहली बार विदेश गईं. उन्हें ट्रेनिंग के लिए स्पेन भेजा गया. वापस लौटने के बाद उन्हें बोईंग 737 उड़ाने का मौका मिला. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. जब वो 21 साल की हुईं उन्हें ट्रेनिंग के लिए लंदन भेजा गया और यही वह समय था, जब उन्होंने बाईंग 777 उड़ाना शुरू किया. 
 
बचपन के सपने ने जिंदगी बदल दी:
उसके बाद तो जैसे दिव्या की जिंदगी ही बदल गई. उनके लिए विदेशों में यात्रा करना किसी बड़े अवसर और अनुभव से कम नहीं था. हालांकि, इस पेशे में अभी भी पुरुषों का वर्चस्व रहा है. यह धारणा है कि यह पेशा महिलाओँ के लिए नहीं है. मगर पहले से स्थिति काफी हद तक बदली है. 
 
दिव्या को इस बात पर गर्व है कि भारत ने विकसित देशों के साथ कदम मिलाया है. जब महिला पायलटों की संख्या की बात आती है तो भारत में 15% महिलाएं विमान पायलटों के उड़ान भरती हैं, जबकि विश्व स्तर पर यह आंकड़ा महज 5% फीसदी है. दिव्या का कहना है कि पैरेंट्स ही हमारे सबसे बड़े सपोर्ट होते हैं.  

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