नई दिल्ली: कभी अखलाक, कभी पहलू खान, कभी जुनैद. ऐसे नामों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है, जिन्हें गोरक्षा के नाम पर भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला. ऐसी घटनाएं अगर अपवाद जैसी होतीं, तो शायद देश के प्रधानमंत्री को सार्वजनिक मंच से चिंता नहीं जतानी पड़ती.
ये नहीं कहना पड़ता कि गोरक्षा के नाम पर हत्या करना कहां की गोरक्षा है ? अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम के शताब्दी समारोह में हिंसक गोरक्षकों को प्रधानमंत्री की चेतावनी का मतलब क्या है ? क्या प्रधानमंत्री के बयान के बाद गोरक्षा के नाम पर हो रहा खून-खराबा बंद होगा.
गोरक्षा इस देश में कभी बड़ा पविक्ष काम माना जाता था, लेकिन आज गोरक्षा और गोरक्षकों की खबर जब आती है, तो सिर्फ खौफ पैदा होता है. पहले भी गोरक्षा के नाम पर भीड़ हिंसक होती थी, लेकिन पिछले तीन साल में गोरक्षा के नाम पर हिंसा इस कदर बढ़ी है कि प्रधानमंत्री मोदी को एक साल में दूसरी बार कहना पड़ा है कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा और हत्या बर्दाश्त नहीं की जा सकती.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज दो दिन के दौरे पर गुजरात पहुंचे. साबरमती आश्रम के शताब्दी समारोह में उनका कार्यक्रम ऐसे वक्त में था, जब गोरक्षा के नाम पर हिंसा की खबरें दिल्ली से लेकर झारखंड तक गूंज रही थीं.
दिल्ली से सटे हरियाणा के बल्लभगढ़ में जुनैद नाम के नौजवान की हत्या हो या फिर झारखंड में गो हत्या के शक में उस्मान नाम के शख्स की पिटाई और उसका घर जलाने की घटना. पूरा देश गोरक्षा के नाम पर मुट्ठी पर लोगों के खूनी पागलपन से परेशान है. इन घटनाओं पर राजनीति भी हो रही है और आंदोलन भी. जुनैद की हत्या के विरोध में बल्लभगढ़ के लोगों ने काली पट्टी बांधकर ईद की नमाज अदा की, तो 28 जून को कई शहरों में नॉट इन माई नेम के नाम पर लोगों ने प्रदर्शन किया.
देश के बिगड़ते माहौल और गो रक्षा के नाम पर समाज में बढ़ती नफरत पर प्रधानमंत्री मोदी को दखल देना पड़ा. उन्होंने साबरमती आश्रम से दो टूक चेतावनी दी कि गो भक्ति के नाम पर हो रही हत्याएं स्वीकार्य नहीं हैं. उन्होंने कथित गोरक्षकों से पूछा कि हम कैसे लोग हैं. गाय के नाम पर इंसान को मारते हैं. क्या किसी इंसान को मारने का हक मिल जाता है. क्या ये गोरक्षा है ? आज इसी मुद्दे पर होगी बड़ी बहस.
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