नई दिल्ली: आज प्रश्नकाल में हम ऐसा मुद्दा लेकर आपके सामने आए हैं.जो देश के करोड़ों लोगों से सीधे जुड़ा है. आज सवाल इस बात का कि क्या हमारा औऱ आपका पैसा सरकारों के उड़ाने के लिए है क्या आप भी जानते हैं कि सरकारों की जेब में एक रुपया भी अपना नहीं होता.
पाई- पाई हमारे और आपके जेब से जाती है तो सरकारी खज़ाना भरता है.लेकिन पैसा हमारा है तो सरकार उसे जैसे मन वैसे बर्बाद कैसे कर सकती है. प्रश्नकाल में आपको समझाएंगे कि हम ये सवाल क्यों पूछ रहे हैं. आज का मुद्दा हर उस आम आदमी से जुड़ा है जो बाजार से हरी सब्जियां, फल, आलू-प्याज खरीदता है और हर उस किसान से भी जुडा है.जो उसे उपजाता है.
बता दें कि मध्य प्रदेश में सैकड़ों टन प्याज खुले आसमान के नीचे बारिश में सड़ रहा हैं. उस सड़ते प्याज़ की 2 रुपय किलो के भाव से नीलामी हो रही है.फिर भी कोई खरीदने वाला नहीं हजारों टन प्याज तालाब, गड्ढो में फेंके जा रहे हैं. जबकि दिल्ली-मुंबई,लखनऊ-पटना में प्याज 20 रुपय किलो है.
इस पूरे बात से यह मतलब निकलता है कि उपजाने वाले का प्याज 2 रुपय किलो, खरीदने वाले को प्याज 20 रुपय किलो. यही हाल दूसरे फलों का भी है. आलू का भी है, हरी सब्जियों का भी है लेकिन कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों है. क्या अपने देश की उपज को स्टोरेज फैसिलिटी नहीं दे सकते ?