नई दिल्ली: वेस्टइंडीज दौरे पर टीम इंडिया दो वनडे खेल चुकी हैं और दोनों ही वनडे में एकतरफा मुकाबला देखने को मिला. कभी भी ऐसा नहीं लगा कि कैरेबियाई टीम भारतीय खिलाड़ियों को टक्कर दे पा रही है और ना ही पहले दो मुकाबले में कोई रोमांच या जुनून देखने को मिला. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या चैंपियंस ट्रॉफी के बाद ऐसी सीरीज की जरुरत थी ?
अगर ऐसा ही होना था तो क्या भारत को इस दौरे पर अपने बेंच स्ट्रेंथ की पूरी ताकत नहीं आजमा लेनी चाहिए थी. रोमांच की पराकाष्ठा और प्रतिस्पर्धा के चरम के बाद अगर एक बेहद लोकल टीम से इंटरनेशनल मैच हो तो बोरियत भी होती है और क्रिकेट से ऊब भी होने लगती है.
हम ये नहीं कह रहे कि वेस्टइंडीज़ से खेलना नहीं चाहिए. लेकिन कोहली, धोनी, युवराज, शिखर जैसे सुपरस्टार्स अगर वेस्टइंडीज जैसी कमजोर टीम के खिलाफ खेलते हैं तो ये जीत के तकाजे से ज्यादा रिकॉर्ड्स की चाह लगती है.
वेस्टइंडीज की टीम का जो स्तर है वो यंगस्टर्स के बूते भी काबू हो सकता था और 2019 वर्ल्ड कप की तैयारियों के लिए हिंदुस्तानी बेंच स्ट्रेंथ को इंटरनेशनल एक्सपोजर भी मिलता. लेकिन यहां बड़े-बड़े स्टार्स खेल रहे हैं. दर्शक फिर भी नहीं आ रहें. हर मैच से पहले ही विनर का नाम तय होता है कि जीतेगा तो हिंदुस्तान ही, वेस्टइंडीज सिर्फ हारने के लिए ही खेलता दिख रहा है.
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