नई दिल्ली: पीएम की वाशिंगटन यात्रा और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उनकी पहली मुलाकात से ठीक पहले हिन्दुस्तान को बड़ी कामयाबी मिली है. अमेरिका ने भारत को 22 गार्जियन मानवरहित ड्रोन की बिक्री को मंजूरी दे दी है. इस मंजूरी ने भारत और अमेरिका के बीच द्रीपक्षीय रक्षा संबंधों में नई जान फूंकी है.
मुंबई में 26/11 का हमला ये देश कभी नहीं भूल सकता. पड़ोसी देश पाकिस्तान से 10 दहशतगर्दों की टोली इसी समुद्र के रास्ते से मुंबई में दाखिल हुई थी. उसके बाद जिस तरह से उन आतंकियों ने पूरी मुंबई को बंधक बनाया और बेगुनाहों की जान ली. वो मंजर दिल दहला देने वाला था.
साउथ चाइना सी में दादागीरी दिखाने वाला चीन हिंद महासागर में अपना दबदबा बनाने की फिराक में है. चीन चोरी छिपे कई बार ऐसी कोशिशे कर चुका है. चीन ने कुछ ऐसी ही कोशिश पिछले साल फरवरी महीने में की थी, लेकिन तब हिंदुस्तान ने उसकी समुद्री साजिश को दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया.
अब ना तो चीन और ना ही पाकिस्तान. इस कोशिश में कामयाब हो पाएंगे क्योकि हिन्दुस्तान के समंदर पर निगरानी रखने के लिए दुनिया के सबसे बड़े देश अमेरिका से वो 22 बाज आ रहे है जो पलक झपकते ही दुश्मनों की हरकत को भांप लेंगे.
मानव रहित ये प्रीडेटर गार्जियन यूएवी आसमान में 50 हजार फीट की उंचाई पर उडने वाला टोही ड्रोन है. उच्चतकनीक से लैस ये प्रीडेटर गार्जियन यूएवी आसमान में लगातार 27 घंटे उड़ान भर सकता है. बड़े इलाकों की निगरानी और खूफिया अभियानों में इस प्रीडेटर गार्जियन यूएवी को महारथ हासिल है.
पड़ोसी देश पाकिस्तान में आतंक की नर्सरियों को जड़ से उखाड़ फेंकने में अमेरिका के इस प्रीडेटर गार्जियन यूएवी ने अहम भूमिका निभाई है. अफगानिस्तान और वजीरिस्तान के पहाड़ी इलाके की गुफाओं में छिपे बैठे आतंकियों की छोटी सी हरकत को भी ये प्रीडेटर गार्जियन यूएवी भांप लेता है.
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में फल-फूल रहे रिश्तो में ट्रंप के आने के बाद गर्मजोशी की कमी आई थी. ट्रंप के चीन की तरफ झुकाव से ये लगने लगा था कि अमेरिका की प्राथमिकता में अब इंडिया नहीं रहा लेकिन इस डील को हरी झंडी मिलने के बाद अमेरिका और भारत के रिश्तों में नई उर्जा का संचार होगा.
अपने तीन साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी पांच बार अमेरिका के दौरे पर गए और अमेरिका के राष्ट्रपति बारक ओबामा अपने दोनों कार्यकाल में दो बार भारत आए. पहली बार 2010 में जब देश में मनमोहन सरकार थी और दूसरी बार 2015 में जब देश में मोदी सरकार थी.
इस दौरान हर क्षेत्र में फिर चाहे वो सैन्य हो आर्थिक हो या राजनयिक हो. अमेरिका ने भारत का समर्थन और सहयोग किया. ओबामा ने प्रेसिडेंट रहते हुए भारत को एनएसजी में शामिल करने का भी समर्थन किया. इन सब से अलग ओबामा और मोदी की दोस्ती की खूब चर्चाएं रही. सितम्बर 2014 में ओबामा के बुलावे पर प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार मोदी जब मोदी वाशिंगटन गए तो ओबामा खुद उनके स्वागत के लिए पहुंचे थे.
ठीक एक साल बाद जनवरी 2015 में ओबामा गणतन्त्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने भारत आमत्रित किए गए. चाय पर चर्चा से लेकर मन की बात तक में ओबामा और मोदी के रिश्तों की गर्मजोशी देखी गई. आखिरी तक इसकी चर्चाएं जोरो पर रही कि ओबामा ने आठ साल के अपने कार्यकाल के दौरान भारत के साथ एक ऐसा रास्ता तैयार किया जिसके जरिए दोनों देशों के लोगों को फायदा पहुंचेगा.
लेकिन जैसे ही अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हुआ और ट्रंप अमेरिका के राष्ट्पति बने तो..भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों की गर्मजोशी में गिरावट आ गई. पीएम मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ नीति और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति में टकराव दिखाई देने लगा.
ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद मोदी से उन्की मात्र तीन बार फोन पर बात हुई है. लगने लगा कि भारत और अमेरिका के बीच अब रिश्तों में वो बात नहीं रही. दरअसल ट्रम्प ने नॉर्थ कोरिया के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर रोक लगाने के लिए अपने एशियाई विरोधी चीन से समर्थन मागकर इसे और हवा दे दी.
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