नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में दलित कार्ड कितना कारगर है इसकी बानगी राष्ट्रपति चुनावों में भी देखने को मिल रही है. एनडीए और विपक्ष दोनों ने ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए दलित नेता को उम्मीदवार बनाया है.
एनडीए ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया क्योंकि वो बीजेपी का सबसे बड़ा दलित चेहरा हैं. इसके जवाब में विपक्ष ने भी नहले पर दहला मारते हुए अपनी तरफ से पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया जो कांग्रेस पार्टी की बड़ी दलित नेता हैं.
कौन हैं मीरा कुमार?
पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार 1973 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुईं. करीब 80 के दशक में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और 1985 में पहली बार बिजनौर से सांसद चुनी गईं. मीरा कुमार 1990 में कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्य और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की महासचिव चुनी गईं.
1996 में वो दूसरी बार सांसद बनीं और फिर साल 1998 में भी उन्होंने चुनाव जीता. साल 2004 में उन्होंने बिहार के सासाराम से लोकसभा सीट जीती.
साल 2004 में उन्हें यूपीए सरकार में सामाजिक न्याय मंत्रालय दिया गया. साल 2009 में वो पांचवी बार लोकसभा चुनाव जीतीं और उन्हें लोकसभा स्पीकर बनाया गया.दूसरी तरफ एनडीए की तरफ से रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति चुनाव के मैदान में उतारा गया है.
कौन हैं रामनाथ कोविंद ?
रामनाथ कोविंद उनका घर कानपुर देहात की डेरापुर तहसील के गांव परौख में हैं. अमित शाह से उनकी नजदीकियां तब बढ़ीं जब वो यूपी के प्रभारी बने. उन दिनों रामनाथ कोविंद भाजपा के यूपी अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी की टीम में महामंत्री थे. अमित शाह की पैनी नजर उनकी योग्यता को तभी परख चुकी थी. उनको बिहार का राज्यपाल चुनना इसका सुबूत था. दरअसल रामनाथ को काफी मेधावी माना जाता है.
पढ़ाई के दौरान वो आईएएस की तैयारी कर रहे थे, तीसरी बार में आईएएस अलाइड सर्विसेज के लिए उनका सलेक्शन हुआ भी, लेकिन उन्होंने ज्वॉइन नहीं किया. कोविंद उसी डीएवी कॉलेज से पढ़े हैं, जहां से कभी अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने पिता के साथ हॉस्टल के एक ही कमरे में रहकर लॉ की पढ़ाई की थी. रामनाथ ने भी वहीं से एलएलबी की.
पढ़ाई के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से वकालत शुरू कर दी, यहीं से उनकी मुलाकात मोरारजी देसाई से हुई, उनके सचिवों की टीम में भी काम किया. जनता पार्टी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जूनियर काउंसलर के बतौर काम किया. फिर बीजेपी से उनकी नजदीकियां बढ़ने लगीं. 1990 में उन्हें पार्टी ने घाटमपुर लोकसभी सीट से टिकट भी दिया, लेकिन वो हार गए.
1993 और 1999 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में एमपी बनाकर भी भेजा. उसके बाद वो लगातार पार्टी के दलित चेहरे के तौर पर काम करते रहे. बीजेपी ने उन्हें अनुसूचित जाति का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया, नेशनल पार्टी प्रवक्ता भी बनाया. यूपी के रहने वाले थे, सो यूपी भाजपा ने भी उनको अपने साथ जोड़ा. 2007 में बाजपेयी ने उन्हें भोगिनीपुर सीट से टिकट दिया, लेकिन वो जीत नहीं पाए.