नई दिल्ली: इन दो तस्वीरों को ध्यान से देखिए, अगर उलटा करके देखेंगे तो एक को तो आप पक्का ही पहचान जाएंगे. जी हां, ये पंडित जवाहर लाल नेहरू हैं, देश के पहले प्रधानमंत्री. मोदी को तो आपने योगा करते कई बार देखा होगा लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि पंडित नेहरू भी योगा के सिद्धहस्त थे, यहां तक कि इस फोटो में उनके शीर्षासन पोज से आप जान सकते हैं.
सोचिए जिस वक्त इनकी फोटो खींची गई, उस वक्त भी वो पीएम मोदी की उम्र से ज्यादा के ही रहे होंगे और मोदी की कोई भी तस्वीर आज तक शीर्षासन में नहीं मिलती और नेहरू शीर्षासन तो अक्सर कर लिया करते थे. लेकिन इजरायल के मामले में मोदी नेहरू जैसी गलतियां करने के मूड में नहीं है और वो इस दोस्ती को काफी आगे ले जाने के मूड में हैं. नेहरू को शीर्षासन का इतना अभ्यास था कि कभी भी कर लिया करते थे, एक बार ऐसे ही किसी मौके पर पूल में नहाने से पहले उन्होंने शीर्षासन किया तो किसी फोटोग्राफर ने मौका नहीं चूका और फौरन ये फोटो खींच ली.
अब आप दूसरी तस्वीर पर नजर डालिए, ये जनाब भी योगा कर रहे हैं और शीर्षासन के पोज में हैं. इनकी उम्र भी इस तस्वीर में अच्छी खासी नजर आ रही है, इस उम्र में शीर्षासन करना आसान नहीं हैं. समुद्र किनारे शीर्षासन कर रहे ये शख्स भी एक देश के प्रधानमंत्री रहे हैं और वो भी नेहरू की तरह ही पहले. दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही लगभग एक समय पर अपने अपने देशों के प्रधानमंत्री रहे हैं.
पंडित जवाहर लाल नेहरू जहां 1947 से 1964 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, वहीं दूसरी तस्वीर में नजर आ रहे शख्स डेविड बेन गुरियन अपने देश इजरायल के 1955 से 1963 तक प्रधानमंत्री रहे. हालांकि 1954-55 में कुछ वक्त को छोड़कर वो 1948 से ही अपने देश की कमान संभाल रहे थे. एक तरह से दोनों की ही अपने देश को आजादी के बाद अपने पैरों पर खड़ा करने की लिए नींव में पत्थर बिछाने का योगदान रहा है. फिर भी गुरियन को अपनी संसद में नेहरू की आलोचना करनी पड़ी थी.
इस कहानी की शुरुआत होती है 1947 से, दुनिया के जाने माने साइंटिस्ट ने भारत के डेसिगनेटेड पीएम नेहरू को एक खत लिखकर आजादी की जंग लड़ रहे इजरायल को मदद की बात लिखी. हालांकि नेहरू ने उस वक्त कुछ कारण बताते हुए मना कर दिया था, जिसे बाद में इजरायल के अखबारों ने भारत में बड़ी मुस्लिम आबादी की वजह से नेहरू की अरब देशों से नजदीकी को जिम्मेदार बताया था. उसके बाद नेहरू 1949 में लंदन में आइंस्टीन के घर भी गए और उन्हें अपनी मजबूरी समझाई.
फिर हुआ 1962 का भारत-चीन युद्ध, भारत की हालत इस युद्ध में ठीक नहीं थी, नेहरू ने मदद मांगी तो इजरायल तैयार भी हो गया. शायद हथियारों की कुछ खेप भारत पहुंची भी, लेकिन नेहरू नहीं चाहते थे कि इजरायल से हथियार मंगाने की बात सार्वजनिक हो, इसलिए उन्होंने इजरायल से शर्त रख दी कि एक तो जिस शिप से हथियार आ रहे हैं, उन पर इजरायल का फ्लैग ना हो, दूसरे सभी हथियारों पर इजरायल की मार्किंग ना की जाए. दोनों देशों में इस बातचीत का पूरा श्रेय उन दिनों अमेरिका में राजदूत बीके नेहरू के हिस्से में गया. इजरायली पीएम को नेहरू की शर्तें मंजूर ना हुईं और बात बिगड़ गई.
इस बात पर इजरायली पीएम बेन गुरियन ने अपनी संसद में नेहरू की आलोचना भी की थी. बेन इस बात से भी नाराज थे कि नेहरू ने मिडिल ईस्ट के देशों की यात्राओं में इजरायल से परहेज किया. हालांकि निर्गुट देशों के संगठन NAM में शामिल मिश्र के खिलाफ इजरायल के एक्शन के चलते भी नेहरू ने इजरायल से दूरियां बरतीं. इधर नेहरू के बाद 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी इजरायल से इंदिरा गांधी ने हथियार मंगाए. इस काम में इंदिरा के करीबी हक्सर ने मदद की. 1965 के युद्ध में भी इजरायल से हथियारों की मदद की बात कही जाती है.
अब फिर भारत में एक नया पीएम आया है, नए के बजाय नए तरीके का कहना ज्यादा ठीक होगा. ये पीएम भले ही सार्वजनिक तौर पर पहले पीएम की तरह शीर्षासन करता कभी नहीं देखा गया, लेकिन उसने योगा को उस जगह पहुंचा दिया है, जहां किसी ने सोचा भी नहीं था, पूरी दुनियां के देश अब 21 जून को योगा जरूर करते हैं. मोदी को भारत और इजरायल के रिश्तों की भरपूर जानकारी है और उनकी पार्टी की इमेज को देखते हुए उन्हें अरब देशों या देश के मुस्लिमों की नाराजगी की भी कोई खास चिंता नहीं.
तभी तो डिफेंस और एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी के फील्ड में खासतौर से इजरायल का सहयोगी मोदी के सत्ता संभालते ही लिया जाने लगा है. मोदी पहले ऐसे भारतीय पीएम बनने जा रहे हैं जो पांच-छह जुलाई में इजरायल का दौरा करेंगे और फिलीस्तीन नहीं जाएंगे. सबसे दिलचस्प है कि ये दौरा योगा डे के आसपास है और मोदी के लिए भी इजरायल में लोकप्रिय हो चुके ‘बीच योगा’ और ‘योगा रिट्रीट’ को करीब से देखने का अच्छा मौका है.
विष्णु शर्मा