क्या तुरुप का इक्का साबित होंगे रामनाथ कोविंद?

नई दिल्ली: एक बार फिर से मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने पूरी पार्टी और नेशनल मीडिया को चौंकाते हुए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए एक नितांत अपरिचित नाम का ऐलान करके हलचल मचा दी है.
बिहार के गर्वनर रामनाथ कोविंद का नाम पार्टी कैडर के लिए काफी चौंकाने वाला था, हालांकि माना जा रहा है कि पिछले दो-तीन साल में जिस तरह से मोदी सरकार को दलित विरोधी साबित करने के प्रयास चल रहे हैं, उन लोगों को ये मोदी का जवाब है. इसी के चलते पार्टी ने आडवाणी और जोशी जैसे दिग्गजों को किनारे करते हुए रामनाथ कोविंद नाम के दलित चेहरे का नाम आगे किया है.
रामनाथ कोविंद उनका घर कानपुर देहात की डेरापुर तहसील के गांव परौख में हैं. अमित शाह से उनकी नजदीकियां तब बढ़ीं जब वो यूपी के प्रभारी बने. उन दिनों रामनाथ कोविंद भाजपा के यूपी अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी की टीम में महामंत्री थे. अमित शाह की पैनी नजर उनकी योग्यता को तभी परख चुकी थी. उनको बिहार का राज्यपाल चुनना इसका सुबूत था. दरअसल रामनाथ को काफी मेधावी माना जाता है.
पढ़ाई के दौरान वो आईएएस की तैयारी कर रहे थे, तीसरी बार में आईएएस अलाइड सर्विसेज के लिए उनका सलेक्शन हुआ भी, लेकिन उन्होंने ज्वॉइन नहीं किया. कोविंद उसी डीएवी कॉलेज से पढ़े हैं, जहां से कभी अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने पिता के साथ हॉस्टल के एक ही कमरे में रहकर लॉ की पढ़ाई की थी. रामनाथ ने भी वहीं से एलएलबी की.
पढ़ाई के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से वकालत शुरू कर दी, यहीं से उनकी मुलाकात मोरारजी देसाई से हुई, उनके सचिवों की टीम में भी काम किया. जनता पार्टी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जूनियर काउंसलर के बतौर काम किया. फिर बीजेपी से उनकी नजदीकियां बढ़ने लगीं. 1990 में उन्हें पार्टी ने घाटमपुर लोकसभी सीट से टिकट भी दिया, लेकिन वो हार गए.
1993 और 1999 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में एमपी बनाकर भी भेजा. उसके बाद वो लगातार पार्टी के दलित चेहरे के तौर पर काम करते रहे. बीजेपी ने उन्हें अनुसूचित जाति का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया, नेशनल पार्टी प्रवक्ता भी बनाया. यूपी के रहने वाले थे, सो यूपी भाजपा ने भी उनको अपने साथ जोड़ा. 2007 में बाजपेयी ने उन्हें भोगिनीपुर सीट से टिकट दिया, लेकिन वो जीत नहीं पाए.
रामनाथ तीन भाई थे, एक भाई की मौत हो चुकी है, रामनाथ सबसे छोटे थे. बेटे का नाम प्रशांत है, बेटी का नाम स्वाति है. रामनाथ भी शुरू से ही काफी सादगी पसंद रहे हैं, समाज के लिए अपना पैतृक मकान भी दान कर चुके हैं. उस मकान की जगह पर अब गांव वालों के लिए बारातघर बना दिया गया है. यूपी बीजेपी प्रवक्ता डा. चंद्रमोहन ने इनखबर को दलित चेहरे को चुनने की बात पर बताया कि, ‘’मोदीजी की सरकार सबका साथ सबका विकास में भरोसा करती है, दलित चेहरे को राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के तौर पर चुनना इसी दिशा में एक कदम है.
मोदी जी पहले ऐसे पीएम हैं, जिनके राज में नाम केवल बाबा साहब का लंदन वाला घर खरीद लिया गया, बल्कि मुंबई में इंदु मिल की जमीन खरीदकर स्मारक का काम शुरू कर दिया गया. इसलिए हर चीज को राजनीति से जोड़ना ठीक नहीं.
हालांकि ये पहले से तय माना जा रहा था कि कोई नाम चौंकाने वाले ही सामने आ सकता है, कुछ दिन पहले अमित शाह ने एक पीसी में कहा भी था. वैसे भी बीजेपी यूपी पर बहुत फोकस कर रही है, जब ठाकुर सीएम, बाह्मण और ओबीसी को डिप्टी सीएम चुना गया, तब भी ये बात उठी थी कि इसकी भरपाई दलित यूपी बीजेपी अध्यक्ष बनाकर की जाएगी. लेकिन उसके बाद सहारनपुर कांड भी हो गया.
इसलिए जहां पहले पहली एसटी प्रेसीडेंट के तौर पर द्रोपदी मुर्मू का नाम चला था, वो धीरे धीरे किनारे हो गया और 2019 के चुनावों में फिर परचम लहराने के लिए यूपी और दलित फैक्टर का मेलजोल सबसे बेहतर साबित हो सकता है और रामनाथ कोविंद इस फैक्टर के लिहाज से सबसे परफैक्ट माने जा रहे हैं.
छवि अच्छी है, विद्वान हैं, यूपी के भी हैं और दलित भी, उनकी राजनीति पिछडे क्षेत्र बुंदेलखंड में रही है, बड़ी पोस्ट के लिहाज से कानून के जानकारी भी हैं और दो साल तक राज्यपाल रहने का तजुर्बा भी और सबसे खास बात मोदी-शाह के अपने आदमी संघ के करीबी तो हैं हीं, लुटियन जोन के लफड़ों से भी दूर ही रहे हैं. वैसे भी यूपीए के पास मोदी-शाह के इस अविवादित दलित कार्ड का अभी तक कोई जवाब नहीं है.
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