नई दिल्ली: अंतरिक्ष की दुनिया में अमेरिका जैसे देश का दबदबा जल्द ही खत्म होने वाला है. ऐसा हम इसीलिए कह रहे है क्योकि भारत अंतरिक्ष में जिस मिशन पर तेजी से लगा है वो उसे दुनिया में अंतरिक्ष की महाशक्तियों में शुमार कर देगा.
राकेश शर्मा पहले भारतीय थे जिन्होने 2 अप्रैल 1984 को अंतरिक्ष में कदम रखा था. और 8 दिन स्पेश स्टेशन पर बिताए थे. लेकिन तब राकेश शर्मा ने सोवियत स्पेश स्टेशन से उड़ान भरी थी. इतने साल बीत गए और आज भी हमे अतंरिक्ष में कदम रखने के लिए दुनिया के दूसरे देशों की मदद लेनी पड़ती है. लेकिन जल्द ही..हिन्दुस्तान का ये सपना पूरा होने जा रहा है कैसे ??
ये रॉकेट ‘मेड इन इंडिया’ है फिलहाल ये डिजिटल इंडिया को सशक्त करने के मिशन पर जा चुका है. लेकिन जैसे ही इस रॉकेट की ताकत में इसरो इजाफा करेगा.यही रॉकेट अंतरिक्ष यात्रियों को भी लेकर जाएगा. अब हम आपको बताते है कि ऐसा क्या खास है इस रॉकेट में जो इसरो के नए मिशन को अंजाम तक पंहुचाने की काबिलियत रखता है.
इस रॉकेट की यही ताकत यही वजन सबसे खास है. जो दुनिया में अमेरिका और रसिया जैसे देशों की अतंरिक्ष सल्तनत को चुनौती देगा. इसीलिए इसे दानवाकार रॉकेट कहा जाता है.
भारत को अभी तक 2300 किलोग्राम से ज़्यादा के वजन वाले संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था. लेकिन अब इस दिशा में देश आत्मनिर्भर हो चला हैइस सैटेलाइट को GFX IN तैयार करने में ‘इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन’ यानी इसरो के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को 15 साल का लंबा वक्त लगा है.
इस रॉकेट के साथ खास बात ये है कि ये स्वदेशी है…और इसे भारत में ही विकसित किया गया है…इस उपग्रह को अहमदाबाद में स्थित ‘स्पेस एप्लीकेशन सेंटर’ यानी एसएसी में बनाया गया है.