नई दिल्ली: अगले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को लेकर सत्ता पक्ष की ओर से सोमवार को पहली बार एक गंभीर पहल शुरु हुई है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत के लिए एक तीन सदस्यों वाली समिति बनाई है. इस समिति में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और केंद्रीय शहरी विकास और सूचना-प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू शामिल हैं.
ये तीनों ही नेता सभी दलों से बातचीत कर किसी एक नाम पर सर्वसम्मति बनाने की कोशिश करेंगे. अगर बात नहीं बनी तो फिर चुनाव होगा. 17 जुलाई को चुनाव कराए जाएंगे और वोटों गिनती 20 जुलाई को होगी. इस चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख 28 जून है.
नामांकन में महज 16 दिन बाकी
दरअसल, 24 जुलाई को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का पांच साल का कार्यकाल खत्म हो रहा है. उससे पहले नए राष्ट्रपति पर आम सहमति बनाने या फिर चुनाव से जुड़ी प्रक्रिया को पूरा कर लेना जरूरी है. अगर चुनाव की नौबत आई तो नामांकन के लिए महज 16 दिन बाकी हैं. लेकिन राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम अब तक तय नहीं हुआ है. ना ही पक्ष-विपक्ष में कोई बातचीत शुरु हुई है.
शाह की समिति का मकसद क्या ?
ऐसे में अमित शाह ने आज अपना अरुणाचल दौरा टाला और तीन सदस्यों वाली कमेटी गठित कर दी. अमित शाह दिल्ली में ही मौजूद रहेंगे ताकि विपक्ष के साथ होने वाली बातचीत को लेकर ये तीनों सदस्य उनसे सलाह-मशवरा कर सकें. वैसे इस तरह की कमेटी हर बार बनाई जाती है. जानकारों की मानें तो इस तरह की कमेटी की कोशिश होती है कि वो बिना अपने पत्ते खोले दूसरे पक्ष के नाम की जानकारी हासिल कर सके.
सोनिया ने विपक्ष का सब-ग्रुप बनाया
इस वक्त विपक्ष भी अपने पत्ते नहीं खोल रहा और एनडीए की ओर से उम्मीदवार के ऐलान का इंतज़ार कर रहा है. वैसे विपक्ष का एक धड़ा ये मानता है कि अगर सरकार कोई सर्वसम्मत उम्मीदवार चुनती है तो विपक्ष उसका समर्थन करेगा. हालांकि, सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव को लेकर इस महीने की शुरुआत में विपक्षी पार्टियों के दस सदस्यों वाले उपसमूह का गठन किया था.
14 जून को होगी उप-समूह की औपचारिक बैठक
इस उप-समूह की औपचारिक बैठक 14 जून को होगी. इस उपसमूह में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और मल्लिकार्जुन खड़गे, जेडीयू नेता शरद यादव, आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, टीएमसी नेता डेरेक ओब्रायन, समाजवादी पार्टी के नेता रामगोलपाल यादव, बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्रा, डीएमके नेता आर एस भारती और एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल शामिल हैं.
राष्ट्रपति की रेस में सबसे आगे !
सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार दलित और आदिवासी कार्ड खेल सकते हैं. इस लिहाज से राष्ट्रपति पद के लिए केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत का नाम सबसे आगे चल रहा है. गहलोत दलित हैं, पीएम मोदी के साथ ही संघ के करीब हैं और अनुभवी भी हैं. थावर चंद गहलोत के बाद झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम भी रेस में आगे चल रहा है.
द्रौपदी मुर्मू संवैधानिक पद पर हैं, महिला होने का लाभ मिल सकता है और अनुसूचित जनजाति से भी आती हैं. ऐसे में उनके नाम पर विपक्ष के साथ आम सहमति भी बन सकती है. वैसे सूत्र ये भी बता रहे हैं कि बाबरी ढांचा ढहाने में साजिश का आरोप लगने के बावजूद लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के नाम खारिज नहीं हुए हैं. बीजेपी की कोशिश है कि इनमें से किसी एक नाम पर आम सहमति बन जाए. अगर चुनाव की नौबत आई तो स्पष्ट संकेत हैं कि एनडीए ने ज़रूरी आंकड़ा जुटा लिया है.