नई दिल्ली: कहते हैं जिसने चंबल का पानी पीया वो बागी हो गया. वैसे, चंबल की फिजाओं में वो बगावत आज भी जिंदा तो है. लेकिन उसकी शक्ल खुद को बागी कहने वाले डकैतों वाली नहीं है. आज बगावत मुफलिसी से है, आज बगावत बेरोजगारी से है, आज बगावत पिछड़ेपन से है और ये बगावत असर दिखा रही है. लिहाजा, चंबल की शक्ल-ओ-सूरत बदल रही है.
सालों पहले ये घाटी घोड़ों की टाप और बंदूकों की धमाकों से गूंजा करती थी. खामोश पड़े इन बीहड़ों में खौफ अब भी कायम है. करीब 1000 किलोमीटर लंबी चंबल का पानी अब भी साफ है. लेकिन इतने दिनों में यहां से जो चीज साफ नहीं हो सकी है. वो है यहां पर छाया हुआ खौफ.
इंडिया न्यूज़ एक कोशिश कर रहा है बदलते चंबल की कहानी आप तक सामने लाने की. इन बीहड़ों में एक कहानी है कि यूपी की चतुराई और एमपी की दबंगई का मेल देखने को मिलता है. तो क्या ये चंबल के बदलते वक्त की कहानी है या फिर यहां पर फैली हुई शांति कुछ वक्त की मोहताज है. बहरहाल, जो भी हो चंबल की जिंदगी आसान तो किसी के लिए भी नहीं ही है.
6 लाख एकड़ से भी ज्यादा दूर तक फैला एक ऐसा वीरान इलाका है. जिसकी बंजर जमीन पर कदम-कदम पर कंदराएं और खोह हैं. जिन्हें सालों तक खुद को बागी कहने वाले डकैतों ने अपनी पनाहगाह के तौर पर इस्तेमाल किया. इन बीहड़ों में कभी सिर्फ खौफ का कारोबार करने वाले डकैतों की हुकूमत चलती थी.