मंदसौर: इंडिया न्यूज़ को ये एक्सक्लूसिव जानकारी मिली है कि मंदसौर फायरिंग का राज़ सीसीटीवी कैमरे से खुल सकता है. ये सीसीटीवी कैमरा उस थाने में लगा है जिसके बाहर कल फायरिंग हुई थी. फायरिंग का आरोप टीआई अनिल सिंह ठाकुर पर है.
किसानों का आरोप है कि अनिल सिंह ठाकुर ने उन्हें बातचीत के बहाने नजदीक बुलाया और फिर गोली चला दी. मंदसौर में फायरिंग के बाद किसान आंदोलन की आग आज और भड़क गई. इस आग में पूरा प्रदेश झुलसने लगा. किसानों की मौत के गुस्से का शिकार मंदसौर के कलेक्टर भी हुए जिन्हें भीड़ ने तमाचा तक जड़ दिया.
किसानों से बातचीत करने पहुंचे कलेक्टर स्वतंत्र सिंह को भीड़ ने घेर लिया. कुछ स्थानीय लोगों की मदद से वो जल्द से जल्द वहां से निकलने की कोशिश कर रहे थे. तभी पीछे से सफेद शर्ट वाले एक शख्स ने उन्हें तमाचा जड़ दिया. कलेक्टर ने पलट कर देखा लेकिन तब तक वो ओझल हो चुका था.
दरअसल, मंगलवार को मंदसौर में हुई फायरिंग में बरखेड़ा गांव के एक किसान की मौत हो गई थी. किसानों ने उसका शव रख कर सड़क जाम कर दिया और सीएम को बुलाए जाने की मांग करने लगे. मध्य प्रदेश में किसानों के उग्र होते आंदोलन पर सियासत भी तेज हो गई है. शिवराज सरकार जहां कांग्रेस पर किसानों को उकसाने के आरोप लगा रही है वहीं कांग्रेस ने शिवराज सरकार को मौत पर बोली लगाने वाली सरकार कह दिया है.
फायरिंग में मरने वाले ज्यादातर किसान पाटीदार हैं. इस बीच किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ पाटीदार नेता हार्दिक पटेल बुधवार को मंदसौर पहुंचेंगे. जानकारों की मानें तो अगर किसान आंदोलन की आंच कम नहीं हुई तो जीत की हैट्रिक लगाने वाले शिवराज के लिए अगले साल होने वाले चुनावों में वापसी मुश्किल हो सकती है.
शिव’राज’ में विकास तो आंदोलन क्यों?
शिवराज सरकार ये दावा करती है कि उनके शासन में राज्य में कृषि विकास की दर 5 फीसदी से बढ़कर 20 फीसदी तक पहुंच गई. आंकड़े भी यही बताते हैं. साल 2004-2005 में कृषि विकास दर 4.7 फीसदी थी. ये 2015-16 में बढ़ कर 20 फीसदी हो गई.
अगर कृषि विकास की दर इतनी अच्छी हो गई तो किसान आंदोलन पर क्यों उतर आए हैं? असल में हुआ ये है कि फसलों का उत्पादन तो जबरदस्त हो गया लेकिन बाजार में उसकी सही कीमत नहीं मिल रही थी. सरकार भी जितनी कीमत तय करती है उस पर फसल को नहीं खरीदती है.
आंदोलन के बाद ही क्यों जागी सरकार?
उसने गेहूं खरीदने की कीमत 1625 रुपए प्रति क्विंटल तय की लेकिन इस कीमत पर वो गेहूं नहीं खरीद रही है. मजबूरी में किसान उसे 1200 और 1300 रुपए क्लिंटल बेच रहे हैं. जब किसान सही कीमत के लिए मरने-मारने पर उतारू हो गए तब सरकार ने फसल खरीदने के लिए 1000 करोड़ का फंड बनाया.
सरकार ने तय किया कि मंडी में किसानों को 50 फीसदी कैश पेमेंट तुरंत होगा बाकी 50 फीसदी RTGS से खाते में जाएगा. सवाल ये है कि सरकार पहले क्यों नहीं जागी? अगर उसने पहले ही मंडियों में सही इंतज़ाम किए होते तो आज एक भी किसान की जान नहीं जाती.