नई दिल्ली: विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) पर ग्रीनपीस इंडिया ने एक अनोखी यात्रा शुरु की है. दिल्ली के छतों पर सौर ऊर्जा के लाभ के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए ग्रीनपीस ने सौर धूमकेतु को चौपहिया वाहन के घरनुमा छत पर लगाया है जो सभी आधुनिक उपकरणों से लैस है, जो दर्शाता है कि कितनी आसानी से पूरे घरेलू उपकरणों को सौर ऊर्जा से चलाया जा सकता है.
बिजली की बचत वाली बल्बों से सजी इस घरनुमा गाड़ी में मोबाइल चार्जिंग के लिए प्वाईंट है, उसमें एक एयर कूलर लगा है, एक फ्रीज है और साथ ही, एक एयर कंडीशन भी है. आगामी बीस दिनों तक सौर धूमकेतु छत पर सौर पैनलों से होनेवाले फायदों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए दिल्ली के विभिन्न रेसिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन (आर डब्लू ए) के साथ बातचीत करने पूरे शहर का दौरा करेगा.
ग्रीनपीस इंडिया की जलवायु और ऊर्जा कैंपेनर पुजारिनी सेन का कहना है, “दिल्ली सरकार पिछले साल सौर ऊर्जा नीति लेकर आई थी. लेकिन तरह-तरह के लाभ दिए जाने के वायदे के बावजूद दिल्ली के अधिकांश लोगों ने इसके बारे में सोचा ही नहीं है. इसलिए आवासीय इलाकों में इसका विस्तार नहीं के बराबर हुआ है.”
दिल्ली की कुल सौर क्षमता 2500 मेगावाट है जिसमें 1250 मेगावाट सौर ऊर्जा छत से मिल सकती है. राज्य सरकार का 2020 तक का सौर ऊर्जा का अधिकारिक लक्ष्य 1000 मेगावाट है और 2025 तक इसे बढ़ाकर 2000 मेगावाट करने की है. लेकिन दिसबंर 2016 तक मात्र 35.9 मेगावाट सौर ऊर्जा ही स्थापित किया जा सका है और 2016 के मार्च तक तो सिर्फ 3 मेगावाट सौर ऊर्जा ही आवासीय इलाकों से उत्पादन होता था.
पुजारिनी सेन कहती हैं, “हम आशा करते हैं कि सौर ऊर्जा से सुसज्जित बस अधिक से अधिक लोगों को सौर ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाने में मदद करेगा. आर डब्लू ए के साथ जब हमारी शुरूआती बातचीत हो रही थी तो हमें ऐसा लगा कि सौर ऊर्जा के बारे में कई गलतफहमियां हैं जिसे खत्म करने की जरूरत है. एक व्यापक मान्यता यह है कि रूफटॉप सौर ऊर्जा के लिए बहुत अधिक पूंजी की जरूरत पड़ती है जबकि हकीकत यह है कि राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा दिए जा रहे लाभ को मिला दिया जाए तो अब यह कोई समस्या ही नहीं रह गई है.”
पुजारिनी बताती हैं कि दिल्ली में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा 30 फीसदी का प्रोत्साहन राशि मिलती है. इसके अलावा सौर ऊर्जा पर आनेवाले कुल खर्च पर पचास फीसदी तक का ऋृण लिया जा सकता है. इसके साथ-साथ, नेट मीटरिंग के माध्यम से ग्रिड कनेक्टिविटी उपभोक्ताओं को मुख्य ग्रिड से उत्पन्न अतिरिक्त बिजली की बिक्री और अपने बिजली के बिल को बचाने की अनुमति भी देता है. चार से पांच वर्षों के बीच उपभोक्ता अपना पैसा वसूल कर सकता है. जबकि सोलर पैनल का जीवन 25 वर्षों तक होता है और रखरखाव पर न्युनतम खर्चा है.
अपार्टमेंट्स में रहनेवालों के लिए सबसे बड़ी समस्या छत पर अधिकार को लेकर होता है कि छत पर किसका अधिकार है क्योंकि समान्यतया जो परिवार टॉप फ्लॉर पर रहते हैं छत का स्वामित्व उसी का होता है. पुजारिनी दिल्ली के अलकन्दा के ऋृषि अपार्टमेंट्स का उदाहरण देते हुए बताती हैं, “ऐसे मामलों में आर डब्लू ए कॉलनी के कॉमन एरिया में एक सौर ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने का सामूहिक निर्णय ले सकते हैं जहां के लोगों ने 21 केडब्लूपी सिस्टम स्थापित करने का वायदा किया है.”
पुजारिनी कहती हैं, “हमें सिर्फ दिमाग खुला रखने की जरूरत है. रूफटॉप ऊर्जा कोयला से उत्पन्न होने वाली बिजली का अनुकुल विकल्प है जो पर्यावरण के लिए हितकर है. यह बार-बार साबित हुआ है कि थर्मल विद्युत संयंत्र सबसे अधिक वायु प्रदूषण फैलाता है और इससे हर साल तकरीबन 12 लाख लोगों की मौत होती है. दिल्ली हमारे देश का सबसे प्रदूषित शहर है अगर हम सौर ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाते हैं तो एक छोटी सी पहलकदमी से हम शहर की अावोहवा में बेहतर ढ़ंग से सांस ले पाएगें.”