17 साल का इंतजार खत्म, समंदर में उतरेगा हिंदुस्तान का ये नया लड़ाका

नई दिल्ली: 17 साल के इंतजार के बाद हिन्दुस्तान को समंदर में सबसे बड़ी ताकत मिलने जा रही है. भारत की समुद्री सीमा में चीन और पाकिस्तान की घुसपैठ को करारा जवाब देने के लिए भारतीय नौसेना की सबमरीन आईएनएस कलवरी बिलकुल तैयार है. टाइगर शार्क के नाम से मशहूर ये सबमरीन कैसे हिन्दुस्तान की ताकत को समुद्री सीमा पर दोगुना कर देगी. पानी के अंदर दुश्मन के लिए ये शार्क है और पानी के उपर दुश्मन के लिए ये शेर है. इसीलिए ये कहलाता है समंदर का टाइगर.
अब समंदर में हिंदुस्तान की ताकत को चुनौती देने वालो को सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि अब ऐसी हिमाकत करने वालो को करारा जवाब मिलने वाला है. खासियत ऐसी कि दुश्मन के जंगी जहाज को कानों कान खबर भी नहीं होगी और वो देखते ही देखते गहरे समंदर में गुम हो जाएगा.
इस पनडुब्बी को एक बेहद अहम ऑपरेशन का जिम्मा सौंपा गया है. थोड़ी देर तक पानी के ऊपर तैरने के बाद ये पनडुब्बी समंदर की गहराई में उतर जाती है और धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगती है. अब इसे टार्गेट पर निशाना लगाना है.
हिन्दुस्तान की नौसेना की सबसे खतरनाक सबमरीन आईएनएस कलवरी की जो समंदर में अपनी ताकत और तकनीक का जलवा दिखाने को तैयार है. समंदर में पूरी ताकत के साथ उतरने से पहले INS कलवरी बीते 10 महीने से समुद्र में अभ्यास कर रहा था और वो अब अपने सारे टेस्ट में पास हो चुका है.
कलवरी को दुश्मन का काल इसीलिए भी कहा जाता है क्योकि कलवरी न सिर्फ अपने टार्गेट पर मिसाइल फायर कर सकती है. बल्कि समंदर के अंदर बेहद खुफिया तरीके से बारुदी सुरंग बिछाकर दुश्मन का नामोनिशान मिटा सकती है. ये आईएनएस कलवरी की ऐसी खासियतें हैं जो इसे दुनिया की सबसे उन्नत और ताकतवर पनडुब्बियों की फेहरिस्त में शामिल करती है. Stealth feature की वजह से ये सबमरीन अपने दुश्मन को किसी तरह की आहट नहीं देती.
कलवरी पनडुब्बी वायु मुक्त प्रणोदन प्रणाली पर आधारित है इसलिए जंग की सूरत में ये लंबे समय तक समंदर के अंदर दुश्मन सेना से लोहा ले सकती है. उस पर ताबड़तोड़ वार कर मिनटों में गायब भी हो सकती है. INS कलवरी Guided Weapons के दम पर दुश्मन पर सटीक वार कर सकती है.
ये सबमरीन Torpedo और WLT यानी Weapons Launching Tubes की मदद से दुश्मन पर हमला कर सकती है. कलवरी किसी भी मौसम में काम कर सकती है, और इसमें संचार के सभी आधुनिक उपकरण लगे हुए हैं. इस सबमरीन को एक विशेष तरह के स्टील से तैयार किया गया है ताकि ये समुद्र की गहराई में भारी से भारी दबाव को भी सह सके.
बता दें कि भारत के पास इससे पहले भी 1967 से 1999 तक कलवरी नाम की पनडुब्बी थी पर सामरिक और तकनीकी रूप से दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले वो काफी पुरानी हो चुकी थी. लिहाजा साल 1999 में प्रोजेक्ट-75 के नाम से इस पनडुब्बी का निर्माण शुरू किया गया.
तकनीकी मदद के लिए साल 2005 में फ्रांस की डीसीएन कंपनी से करार किया गया. करार के मुताबिक साल 2018 तक इस सीरीज की सभी 6 पनडुब्बियां भारत की नौसेना में शामिल कर ली जाएंगी. इसके लिए फ्रांस को 300 करोड़ डॉलर का भुगतान हो चुका है जबकि इस पूरे प्रोजक्ट पर करीब 23,000 करोड़ रुपए का खर्च आने की उम्मीद है.
(वीडियो में देखें पूरा शो)
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