नई दिल्ली: सुबह के वक्त सूरज की पहली किरण के साथ ही शुरू हो जाती है फौलाद बनने की ट्रेनिंग. दुश्मनों को थर्रा देने वाली आवाज, बूट की धमक ऐसी कि जमीन कांप जाए. मकसद ये कि वो खुद को शारीरिक रूप से इतना मजबूत कर लें कि जंगल की बड़ी से बड़ी परेशानियां भी उनके सामने घुटने टेक दे.
ये कमांडो की ट्रेनिंग है. उन कोबरा कमांडोज की जो नक्सलियों के लिए काल सरीखे हैं. उन नक्सलियों के लिए जो कभी निहत्थे तो कभी हथियारों से लैस सुरक्षाबलों के जांबाज जवानों पर घात लगाकर धोखे से वार करते हैं और भारत माता के आंचल को लहूलुहान कर अपनी कायरता दिखाते हैं लेकिन अब देश के उन दुश्मनों की खैर नहीं.
गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच जिस्म को लोहा बनाने की इस ट्रेनिंग में कमांडोज संकरे रास्ते से निकलने, पथरीली जमीन पर पेट के बल रेंग-रेंग कर आग बढ़ते हैं. जवानों को जंगल के हर हालात के लिए तैयार किया जाता है.
जवानों को चारों तरफ से गोलीबारी और बमबारी के बीच दुश्मनों का सामना करने और उन्हें ढेर करने की ट्रेनिंग दी जाती है. 12 हफ्ते में एक जवान कोबरा कमांडो बन जाता है. हर साल हर कोबरा कमांडो को 6 हफ्ते की ट्रेनिंग दी जाती है.
कीचड़ में कभी लेफ्ट टू राइट तो कभी सिर के बल लेटकर खुद को महफूज रखने की ट्रेनिंग. हथेलियों के सहारे बैठकर पीछे की तरफ भागने के इस करतब को देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे तो पीठ के बल पीछे रेंगने के इस अभ्यास को देखकर आप दंग रह जाएंगे. इस कठिन ट्रेनिंग का मकसद है खुद को हर सूरत में बचाना और दुश्मन को हर कीमत पर मार गिराना.
ये ट्रेनिंग इतनी कठिन है कि कभी-कभी सांसें उखड़ने लगती हैं लेकिन इनका सब्र और हिम्मत बेमिसाल है. ये न रुकते हैं न थकते हैं. कहते हैं जंगल में जीना है तो जंगल के कायदे-कानून को अपनाना पड़ेगा. ये कोबरा कमांडो भी जंगल के कायदे से पूरी तरह वाकिफ हो चुके हैं.
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